Book Title: Jinabhashita 2002 10 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 20
________________ बाईजी का शिक्षा आन्दोलन धर्म, जाति, गरीबी-अमीरी | में परपदार्थ सुख-दुःख के कारण नहीं थे। जीवनमरण, सुखके भेद से परे सभी-वर्गों तथा स्त्री-पुरुषों दोनों के लिए समान | दुःख, लाभ-हानि आदि प्राणी के पूर्वोपार्जित कर्मों के फल हैं। रूप से चला। उनकी दृष्टि से नारी शिक्षा राष्ट्रीय विकास का मूल | अध्यात्मदर्शन से बाईजी ने अपना आत्मशान्ति का पथ प्रशस्त आधार है। राजसत्ता जो कार्य नहीं कर सकती वह बाईजी ने | किया। मानवीय जीवन मूल्यों को उन्होंने जीवन मे उतारा। भेदज्ञान वर्णीजी के सहयोग से सहज ही कर दिखाया। द्वारा पर पदार्थों की भिन्नता का अनुभव कर उन्होंने निजी सम्पत्ति तीर्थोद्धार भी दान कर दी। जीवन यापन के लिए मात्र रु. दसहजार रखकर बाईजी की प्रेरणा व सहयोग से वर्णीजी ने पिछड़े ग्रामीण बरुआसागर रहने लगीं। कुछ समयबाद वे सागर आ गयीं। वहाँ क्षेत्रों तथा तीर्थस्थानों में विद्यालयों व गुरुकुलों की स्थापना की | 75 वर्ष की आयु में उन्होंने वीतराग प्रभु की आराधना करते हुए जिससे वहाँ पर मन्दिर, छात्रावास, पुस्तकालय और धर्मशाला का | समताभाव पूर्वक पार्थिव देह को त्याग दिया। निर्माण हुआ। तीर्थ पूर्णरूपेण सुरक्षित व संरक्षित हो गये। मात्र बुंदेलखण्ड ही नहीं समग्र भारत में ज्ञान ज्योति जगाने उदारता व दया की जीती जागती मूर्ति का जो श्रेय चिरोंजाबाई जी को है वह किसी भी विद्यालय या वर्णीजी ने मेरी जीवन गाथा में धर्ममाता चिरोंजाबाईजी विश्वविद्यालय के संस्थापकों को नहीं मिल सकता। धर्मपुत्र श्री को गुणरूपी रत्नों का सागर, ज्ञान के प्रति जागरूकता, उदारता, | वर्णीजी के साथ किया गया उनका पुरुषार्थ निरन्तर प्रकाशमान सौम्यता आदि अनेक गुणों से सम्पन्न बतलाया है और अनेक दीपस्तम्भ है, जिससे एक करोड़ से अधिक विद्यार्थी आलोकित संस्मरण दिये है। बाईजी से प्रभावित हुई एक दसवर्षीया अछूत हो चुके हैं और आगे भी सतत धर्म, दर्शन, न्याय और संस्कृति का बालिका ने अपने मांसाहारी परिवार को पूर्णतया शाकाहारी बना आलोक प्राप्त करते रहेंगे। शिक्षा,संयम और लोक सेवा में जीवन दिया। बाईजी की उदारता और अहिंसा परिणामों से प्रभावित हो समर्पित करने वाली पूज्या बाईजी सदैव स्मरणीय रहेंगी। हिंसक प्राणी बिल्ली भी अहिंसक बन दूध-रोटी खाने लगी थी।। भगवान् महावीर मार्ग चूहों के द्वारा जब बाईजी की भोजन सामग्री खराब कर दी जाती गंजबसौदा तो एक दिन बाईजी कहने लगी कि "तुम रोज भोजन खराब कर देते हो तो मेरा बेटा भूखा रह जाता है और मैं भी। हमारे यहाँ गजल थोड़ी सी ही सामग्री रहती है, जिनके यहाँ बहुत खाने मिले वहाँ जाओ तो ठीक रहे।" बाईजी के इन वचनों से प्रभावित हो चूहे डॉ. दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय' वहाँ से चले गये। फिर उन्होंने जीवन पर्यन्त चूहों को घर में नहीं प्रवचन बैठ सुना था दिन भर, देखा ऐसा था बाईजी का प्रभाव दृढ़ता, धैर्यवसमता की मिसाल। श्रद्धा भक्ति सना था दिन भर। बाईजी दृढ़ता धैर्य और समताभाव की साक्षात् मूर्ति थीं। पंख लगा कल्पना उड़ी थी, एक बार उन्हें तीर्थवन्दना करते समय अपने आवासीय घर में स्वर्गिक स्वप्न बुना था दिन भर। चोरी होने का समाचार मिला। उस समय वे रंचमात्र भी विचलित नहीं हुईं। उन्होंने धैर्य व समता का परिचय देते हुए पाँच वन्दना खट खट भावना जुलाहे ने, अधिक कर तीर्थयात्रा पूरी कर के ही घर लौटने का निर्णय कर प्रेम कपास धुना था दिन भर । लिया। अच्छी तरह से तीर्थवन्दना कर घर पहुँची तो पाया एक भी पैसा चोरी नहीं हुआ था। अनायास चिति के मंदिर में, बाईजी में दृढ़ता इतनी अधिक थी कि शिरशूल वेदना, उत्सव पर्व मना था दिन भर । मोतियाबिंद का अंधापन या बैल के मारने पर हाथ का मांस फट जाना आदि कोई भी शारीरिक वेदना उन्हें विचलित नहीं कर पाती संकल्पों की शुचि ईंटों ने, थी। लोभी डाक्टर से आँख का ऑपरेशन कराने के बजाय उन्होंने नैतिक भवन चुना था दिन भर। जीवन भर अंधा रहना श्रेष्ठ समझा। उन्होंने एक सहृदय अंग्रेज चिकित्सक से मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया और वह चिकित्सक तन मन के सूने आँगन में भी बाईजी से अत्यन्त प्रभावित हो कर सपरिवार शाकाहारी बन नैतिक शिविर तना था दिन भर गया। बाईजी ने उसे पुत्रवत् स्नेह के साथ 'पीयूषपाणि' का मंगलमय आशीर्वाद दिया। डूब ज्ञान के सर में गहरे, बाईजी आजीवन स्वाध्याय चिन्तन, मनन, धर्माराधन में अशरण शरण गुना था दिन भर। सिविल लाइन्स कोटा (राज.)-324001 रत रहीं। वे आध्यात्म और कर्मसिद्धान्त की ज्ञाता थीं। उनकी दृष्टि । 18 अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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