Book Title: Jinabhashita 2002 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ पाउचों की सुन्दरता में मीठा जहर पान मसाला श्रीपाल जैन 'दिवा' यह बात बिल्कुल सत्य है कि जिन्दगी में मौत से ज्यादा । लोकप्रियता के इतिहास को जानें तो ज्ञात होता है कि यह संस्कृति सुनिश्चित बात और कोई दूसरी नहीं है, क्योंकि हमें यह जीवन | 90 के दशक से देश में प्रारंभ हुई। पान मसालों को पाउच का रूप मिला है तो मृत्यु भी मिलेगी। हमें जीवन में धन, संपत्ति और | दिया, जो रखने और ले जाने में बहुत आसान हो गया। इसलिए वैभव आदि मिले यह कोई नियम नहीं है, लेकिन मृत्यु हमें | आज किसी भी दुकान पर जाओ, चाहे वह पान की दुकान हो य निश्चित मिलेगी। अब प्रश्न उठता है कि जब मौत निश्चित है तो | किराने की दुकान, यहाँ तक की मेडिकल आदि की दुकानों पर उससे डरना क्यों? बिल्कुल सत्य है मौत से नहीं डरना, लेकिन | भी पान मसालों के पाउच बड़ी सुगमता से मिल जाते हैं, क्योंकि अकाल मृत्यु से तो हमें डरना चाहिए। अकाल मृत्यु से हमारा | इसका विज्ञापन ही ऐसा किया जाता है। हमारी फिल्मी दुनिया के आशय आयु कर्मों के निषेकों का अकाल खिराने से हैं। आयु कर्म | जाने-माने कलाकार ऐसे जहर के विज्ञापनों को कर रहे हैं और से निषकों को अकाल में खिराने के लिए बहुत से निमित्त कारण | हमारे युवा साथी उनकी बातों से गुमराह हो जाते हैं तथा पान बन जाते हैं, उनमें व्यक्ति की बुरी आदत या लत भी अकाल मरण | मसालों की आदतों से ग्रसित हो जाते हैं। वे तो विज्ञापन करके की ओर ले जाती है। बुरी आदत व्यक्ति के शान्तिमय जीवन में | पैसा कमा लेते हैं, लेकिन हमारे युवा वर्ग अपने पैसों की बर्बादी अशान्ति का वातावरण बना देती है। व्यक्ति की जिन्दगी अपनी | के साथ अपने शरीर को भी बर्बाद कर रहे हैं। जिन्दगी है, वह जैसा बनाना चाहे वैसा बना सकता है। कोई इन पान मसालों के बारे में मुम्बई के टाटा इंस्टीट्यूट व्यक्ति यदि बुरी आदतों से ग्रसित है, वह यदि दुनिया के तमाम | ऑफ फंडामेन्टल रिसर्च के डॉ. श्री प्रकाशजी गुप्ता कहते हैं- देश शास्त्रों को पढ़ डाले, सभी मजहबों एवं धर्मों के ग्रन्थों को पढ़ | भर में 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' तेजी से फैलता जा रहा है। डॉ. डाले, पर उस व्यक्ति को अपने जीवन का सत्य समझ में नहीं आ | गुप्ता ने चेतावनी दी कि "पान मसाला सिगरेट की तुलना में सकता। अधिक घातक होता है। सिगरेट की तुलना में गुटकों से यानि वर्तमान में हमारे युवा भाइयों का वर्ग, लौकिक शिक्षण के पान मसालों से कैंसर आधे समय में ही हो जाता है। सिगरेट में क्षेत्र में तो बहुत विकास कर रहा है, लेकिन अपने शारीरिक और | तम्बाकू होता है, लेकिन पान मसाला बिना तम्बाकू वाले भी मानसिक धर्म के क्षेत्र में विकास से बहुत दूर होता जा रहा है। | होते हैं, यानि बिना तम्बाकू वाले पाउच भी कैंसर के लिये आज हमारे युवा वर्ग को गुमराह करने के लिए, उनके मन को | कारण हैं।" 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' होने के पाँच से दस वर्ष लुभाने के लिये और उनको बुरी आदतों में फंसाने के लिए ऐसी | के भीतर कभी भी कैंसर हो सकता है। अगर पान मसालों का वस्तुओं को बाजार में लाया जा रहा है, जिनके सेवन से हमारा प्रचार-प्रसार रोका नहीं गया तो डॉक्टरों को अंदेशा है कि इससे युवा वर्ग अपना तन, मन और धन तीनों को बर्बाद करता जा रहा घातक बीमारियाँ दिन पर दिन फैलती ही जायेंगी। 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' की महामारी पान मसाले के खतरनाक स्तर तक मैं उन बुरी आदतों में से एक पान मसाले की आदत के उपभोग से सीधी जुड़ी है। डॉ. गुप्ता ने कहा- इस संबंध के बारे में कहना चाह रहा हूँ, जो सबसे अधिक मात्रा में हमारे देश | निर्विवाद सबूत हैं कि पान मसालों को खतरनाक उत्पादन करार का युवा वर्ग खाता है। इस पान मसालों की आदत ने एक 10 वर्ष | देना जरूरी है। के बच्चे से लेकर 60-70 वर्ष के दादाजी आदि को पकड़कर रखा | वर्तमान परिवेश में पान मसाले - आज पान मसालों की है, लेकिन सबसे अधिक 16 वर्ष से 35 वर्ष तक के युवाओं में | आवश्यकता इतनी बढ़ गई है कि अगर कोई भी आज पारिवारिक पान मसाला चबाने की आदत है। इसका दुष्परिणाम देखने को | या सामाजिक कार्यक्रम हो, शादी, विवाह, सभा, गोष्ठी या पार्टी मिला नासिक एवं पूना के आसपास। इसके सेवन से कुछ व्यक्ति आदि कुछ भी हो, पहले पान मसाला स्वागत के रूप में आता है। नपुंसकता जैसे रोग से ग्रसित हो गये और दिल्ली के एक परिवार के पहले पान के माध्यम से मेहमानों का स्वागत किया जाता था, पिता ने अपनी बेटी को पान मसाला खाने को मना किया तो जिसे ताम्बूल या बीड़ा भी कहा जाता है। यह पान बड़े आदरसत्कार आत्महत्या जैसा दुष्कृत्य उस बेटी ने कर डाला। एक बार ऐसी | का प्रतीक हमारी भारतीय संस्कृति में माना गया है। आज पान तो आदतें व्यक्ति के जीवन में आ जाती हैं, तो व्यक्ति का मन ही | समाप्त होते जा रहे हैं और पान मसालों का आधिपत्य होता जा दूषित कर देती है। इससे बचना आज बहुत जरूरी है। । रहा है। आज पान की जगह पान मसालों ने घुसपैठ कर ली, पान मसालों का इतिहास - इन पान मसालों की | इसलिए पान खाना भूलकर पान मसाला चबाने लगे। यह खूबसूरत है। 10 मई 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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