Book Title: Jinabhashita 2002 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ पार्श्वनाथ स्वामी की ये तीनों प्रतिमाएँ स्फटिकमणि की बनी हुई अत्यंत मनमोहक और अतिप्राचीन (चौथे काल की) है। इन प्रतिमाओं को 24 मार्च 2002 रविवार को किसी अदृश्य शक्ति की प्रेरणा से मुनि सुधासागर महाराज और उनका संघ इसी मंदिर के भूगर्भ से निकालकर लाये थे तथा उसी समय अपार जनसमूह को बता भी दिया था कि ये प्रतिमाएँ 7 अप्रैल तक दर्शनार्थ बाहर रहेंगी, इनके रक्षक देवों को इतने ही दिन का कहकर लाया हूँ। इसके बाद 24 मार्च से ही यहाँ इन मूर्तियों के दर्शन करने वालों का ताँता लगा रहा और कई घंटे कतारों में लगने के बाद भी दर्शन न होने की स्थिति बनने पर मुनिश्री के निर्देश पर 2 अप्रैल को दिन में 1बजे मंदिर के प्रवेशद्वार पर खुले स्थान में विराजमान किया गया। इस दिन यहाँ करीब 75 हजार दर्शनार्थी पहुँचे थे, कारण मध्यप्रदेश में उस दिन रंगपंचमी का त्यौहार होने से छुट्टी का दिन था। इसके साथ ही उसी दिन मंदिर में प्रवेश एकदम सीमित कर दिया गया और चाँदखेड़ी पहुँचे लोगों को चंदाप्रभु की दिव्य प्रतिमाओं के दर्शन तो हुए, लेकिन मूलनायक आदिनाथ भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा के दर्शन का मलाल रहा। इसके बाद भी आज दिव्य प्रतिमाओं को वापस भूगर्भ में स्थापित किए जाने तक यहाँ अपार जन सैलाब उमड़ा रहा। पूरे देश भर से लोग यहाँ आये और चंदाप्रभु के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य माना। इन 15 दिनों में यहाँ विराट मेले की स्थिति बनी रही। प्रबंध कमेटी ने अपनी पूरी क्षमता यात्रियों को दर्शन, भोजन-पानी की व्यवस्था में लगाई। झालावाड़ क्षेत्र के जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने भी चमत्कार भरे इस पखवाड़े में पूरा सहयोग दिया। आज सुबह मुनिश्री के मंगल प्रवचन के बाद उनके सान्निध्य में सम्मान समारोह सुशील मोदी ( मोदी इंजीनियरिंग) के मुख्य आतिथ्य में हुआ, जिसमें प्रशासन पुलिस और पत्रकारों का सम्मान किया गया। मुंगावली सेवा दल, अशोक नगर के नवयुवक मंडल, कुम्भराज के विद्यासागर नवयुवक मण्डल, खानपुर के नवयुवक मण्डल और महिला मण्डल के सेवा कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें सम्मानित किया गया। इतनी बड़ी तादाद में आए यात्रियों की भोजन-व्यवस्था को संभालने वाले चेतन जैन (ज्योति प्रेस) के सम्मान के वक्त पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा और मुनिश्री ने चेतन को आत्मीय आशीर्वाद दिया। इंजीनियर सतीश जैन का भी सम्मान किया गया। इन 15 दिनों में यह प्रतिनिधि भी चार बार चाँदखेड़ी गया और झालावाड़ से खानपुर के 35 किलोमीटर लम्बे मार्ग पर वाहनों की चैनसी बनी हुई दिखी और लोग अचंभित से लगे। इस मार्ग पर कई सैकड़ों स्थान हैं, लेकिन सभी जगह पुलिस तैनाती से यातायात सुचारु बना रहा। रोडवेज के कोटा, बारा, झालावाड़ डिपो ने भी बसों की भरपूर व्यवस्था कर लोगों को चाँदखेड़ी पहुँचाने में मदद की। रास्ते के गोलाना, मण्डावर, बाधेर के स्कूली 28 मई 2002 जिनभाषित Jain Education International छात्रों के मंडलों ने स्वेच्छा से यात्रियों को भीषण गर्मी में शीतल जल की व्यवस्था की। यह सारा चमत्कार परमपूज्य मुनि सुधासागर महाराज का था, जिन्होंने बरसों से आस कर रहे भक्तों को चंदाप्रभु के साक्षात् दर्शन करा दिये । आज दोपहर 2 बजे शांति मण्डल विधान हुआ और इसके बाद पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति को कस्तूरचंद दोतडा वाले, अरिहन्त प्रभू की मूर्ति को सुशील मोदी और चंदाप्रभु प्रतिमा को अमोलकचंद चूना वाला ने यथास्थान (गुप्तस्थान) विराजमान किया। इस अवसर पर संपूर्ण चाँदखेड़ी चंदाप्रभु और मुनि सुधासागर के जयकारे से गूँज उठा । चाँदखेड़ी प्रबंध कमेटी के महामंत्री महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि चमत्कारी पखवाड़ा समाप्त हो गया हैं और लोग चंदाप्रभु की सूरत दिल में बिठाये लौटने लगे हैं। महावीर प्रसाद जैन महामंत्री वारभारती पुरस्कार की घोषणा युवा विद्वानों व नव प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने की मूल भावना से स्थापित वाग्भारती पुरस्कार की घोषणा कर दी गयी हैं। वर्ष 2002 का वाग्भारती पुरस्कार डॉ. श्रीमती उज्ज्वला सुरेश गोसवी (जैन), औरंगाबाद को तथा वर्ष 2001 का पुरस्कार पं. श्री पवन कुमार जैन 'दीवान' शास्त्री, मुरैना को प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। पुरस्कार में 11, 111/- रु. की राशि, प्रतीक चिह्न, अभिनन्दन वस्त्र आदि भेंट किया जाता है तथा इसकी स्थापना डॉ. सुशील जैन मैनपुरी द्वारा वर्ष 98 में पू. मुनि श्री प्रज्ञा सागर जी, प्रसन्नसागर जी महाराज के सान्निध्य में की गयी थी। वर्ष 98 का पुरस्कार पं. शैलेन्द्र जैन, बीना; 99 का पुरस्कार डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' बुरहानपुर को प्रदान किया गया था। डॉ. श्रीमती उज्ज्वला को यह पुरस्कार पू. मुनि श्री प्रज्ञासागर जी के सान्निध्य में श्रुतपंचमी पर्व पर राँची में तथा पं. पवन कुमार जी को यह पुरस्कार 1 सितम्बर को प्रदान किया जाएगा। वर्ष 2002 के लिए नाम पुन: सादर आमंत्रित है। विद्वान की आयु 40 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा वह पर्व पर प्रवचनार्थ अवश्य जाते हों। For Private & Personal Use Only डॉ. सौरभ जैन (मंत्री) वाग्भारती ट्रस्ट मेधावी छात्रा श्रद्धा जैन कु. श्रद्धा जैन, मैनपुरी ने एम.एस.सी. (वनस्पति विज्ञान) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण कर गौरवशाली स्थान प्राप्त किया। कु. श्रद्धा जैन ने दयालबाग शिक्षण संस्थान, आगरा से यह परीक्षा 76.3% अंकों से उत्तीर्ण की है। कु. श्रद्धा जैन, जैन धर्म के प्रसिद्ध विद्वान एवं चिकित्सक डॉ. सुशील जैन की सुपुत्री है। इस शुभ अवसर पर डॉ. सुशील जैन के निवास पर आयोजित कार्यक्रम में अनेक लोगों ने उपस्थित होकर उनकी www.jainelibrary.org

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