Book Title: Jinabhashita 2002 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 18
________________ विष्णुकुमार मुनि ने एक बौने ब्राह्मण का रूप बनाकर उत्तम शब्दों | था। अब दूसरे प्रश्न पर विचार करते हैं- श्री धवल पु.4, पृष्ठ 44 द्वारा वेदपाठ करना शुरु किया। इस प्रकार कहा है- संजदासंजदाणं कधं वेउव्वियमुग्धादस्स 4. श्री महापुराण (पुष्पदन्त कवि विरचित, पृष्ठ-53) में | संभवो। ण, ओरालियसरीरस्स विउव्वणप्पयस्स इस प्रकार कहा है-यह सुनकर मुनि विष्णु तत्काल वहाँ से निकले- | विण्हुकुमारादिसु दंसणादो। अर्थ - प्रश्न-संयतासंयतों के ऋचाएँ पढ़ते, ओंकारध्वनि करते हुए, आसन और कमण्डलु लिए वैक्रियक समुद्धात कैसे संभव है। उत्तर-नहीं, क्योंकि विष्णुकुमार हुए,सफेद छत्री लगाये हुए, दूब और जपमाला से हाथ को अलंकृत मुनि आदि में विक्रियात्मक औदारिक शरीर देखा जाता है। कर, मीठी वाणी बोलते हुए, यज्ञोपवीत व विभूषित, गेरुये रंग का | अर्थात् श्री धवलाकार के अनुसार श्री विष्णुकुमार महामुनि ने वस्त्र पहने हुए, उपदेशक के रूप में। वस्त्र सहित वामन (ब्राह्मण) का रूप बनाया था। उस समय उनवे 5. श्री पांडवपुराण (शुभचन्द्राचार्य विरचित-अनेकान्त संयतासंयत नामक पाँचवाँ गुणस्थान था और निर्ग्रन्थ अवस्था में विद्वत परिषद प्रकाशन, पृष्ठ 122) में इस प्रकार कहा है-"ऐसा | प्राप्त विक्रिया ऋद्धि का प्रयोग उन्होंने उस सवस्त्र ब्राह्मण अवस्था बोलकर विष्णुकुमार मुनि वामन का रूप धारण करके यज्ञभूमि में पंचम गुणस्थान में किया था। को चले गए। ब्राह्मण का रूप धारण कर वे धीर विद्वान मुनि बलि | इस प्रकार निष्कर्ष यह निकलता है कि श्री हरिवंशपुराणकार को इस प्रकार कहने लगे....।" के अनुसार तो उपसर्ग निवारण एवं ऋद्धि प्रयोग निर्ग्रन्थ अवस्था उपर्युक्त प्रमाण नं. 2 से 5 के अनुसार यह स्पष्ट है कि श्री | में ही हुआ, जबकि श्री धवलाकार एवं उपर्युक्त प्रमाण नं. 2 से 5 विष्णुकुमार महामुनि ने वामन (ब्राह्मण) का रूप धारण करके | के अनुसार निर्ग्रन्थ अवस्था में प्राप्ति ऋद्धि का प्रयोग सग्रन्थ पंचम उपसर्ग का निवारण किया था, जबकि उपर्युक्त प्रमाण नं. 1 के | गुणस्थान में भी होता है। अनुसार उन्होंने मुनि अवस्था में रहते हुए उपसर्ग निवारण किया 1/205, प्रोफसर्स कॉलोनी, आगरा (उ.प्र.)-282002 ग्रन्थ समीक्षा "महायोगी महावीर" : कृति और कथ्य कपूरचन्द्र जैन 'बंसल' तीर्थंकर महावीर स्वामी के 2600वें जन्मकल्याणक वर्ष | विषय कुछ इस तरह लिपिबद्ध किये गये हैं कि इतना लम्बा के पावन अवसर पर महावीर स्वामी के जीवन और सिद्धांतों पर कथाक्रम भी चलचित्र की तरह पाठक के मानस पटल पर सहज 'महायोगी महावीर' गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ही अंकित हो जाता है। गागर में सागर सा सार समाहित करने के साहित्य मनीषी शिष्य मुनि श्री समतासागर जी महाराज द्वारा | वाली इस कृति को 'महावीर डिक्शनरी' भी कहा जा सकता है। रचित एक ऐसी तथ्यात्मक कृति है, जिसमें महावीर के जीवन, | श्रद्धालु और सुधीजन इस कृति को पढ़कर तीर्थंकर महावीर प्रभु व्यक्तित्व और कृतित्व से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण घटना/संस्मरण | को जानें, पहचानें और अपने जीवन में उसी ज्योति को जगायें, और संदेशों को अत्यन्त सरल, सुबोध और सरस भाषा में प्रस्तुत | यही महावीर के प्रति मुनि श्री का भक्ति-अर्घ है। 166 पृष्ठों में किया गया है। कृतिकार ने अपनी असाधारण प्रतिभा के द्वारा | लिखी गई आद्यन्त आकर्षक तथा सारगर्भित कव्हर पृष्ठ के साथ आद्यन्त मौलिकता और कथा के अविरल प्रवाह की जिस चिन्तन | निर्दोष मुद्रित हुई है। म.प्र. शासन के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की गहराई के साथ बनाये रखा है, वह अत्यन्त प्रभावकारी है। जी ने इस कृति के प्रथम संस्करण का विमोचन रविवार 6 मुनि श्री ने स्वयं ही अपनी लेखनी से कृति की उपादेयता पर नवम्बर 2001 को विशाल धर्मसभा में टीकमगढ़ में किया। प्रकाश डालते हुए लिखा है कि सरल और सारगर्भित कृतियाँ अल्प मूल्य में जनजन को उपलब्ध कराये जाने के साथ-साथ समाज की समसामयिक आवश्यकता है। ऐसी कृतियों के पठन | भगवान् महावीर स्वामी के 2600वें जन्म महोत्सव की प्रान्तीय और पाठन से भाषा तथा भाव पाठक के अन्तर्मन में सहज ही | एवं राष्ट्रीय समिति के विशिष्ट सदस्यों को उपलब्ध कराने का उतर जाता है। भील से भगवान् बनने तक के पूर्व भव, भवान्तर, | प्रयास मुनि श्री के भव्य श्रद्धालुजन कर रहे हैं। कृति दर्शनीय, पंचकल्याणकों से सुशोभित वर्तमान जीवन, गणधर परमेष्ठी | पठनीय, मननीय और संग्रहणीय है। और उत्तरवर्ती परम्परा, समवशरण विहार से तत्कालीन नरेशों श्री गोकुल सदन, जतारा जिला टीकमगढ़ (म.प्र.)472118 पर प्रभाव और चाँदनपुर के टीलेवाले बाबा का चमत्कार आदि 16 मई 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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