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आश्चर्यजनक एवं सात्विक व्यक्ति की सात्विकता मिटाने वाली | भोपाल 13 दिसम्बर 2000, बुधवार के 'नायिका' विशेषांक में है-जब एक व्यक्ति के पान मसाले के पाउच में छिपकली का सिर | एक सर्वेक्षण की बात पढ़ी-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल भी निकला। यह घटना कानपुर की है और सारे शहर में यह बात | रिसर्च ने एक सर्वेक्षण में यह जानकारी दी कि कैंसर के मरीजों में आग की तरह फैल गई। इसके बाद पुलिस ने खोजबीन की और | सत्तर (70%) प्रतिशत गुटखा खाने वाले हैं। गुटखे से मुख कैंसर उस पान मसाले के निर्माता की फैक्ट्री से भारी मात्रा में सूखी | होने की जानकारी नई जानकारी नहीं है, यह पुरानी बात हो गई छिपकिलियाँ बरामद की और इसी तरह सन् 1992 में इन्दौर की | और खाने वाले भी सब जानते हैं, लेकिन जानकर अनजान बने एक पान मसाले की फैक्ट्री से एक छापे में बहुत मात्रा में सूखी | हुए हैं। जैसे कोई माँ बेटे को किसी कार्य करने को मना करती है, छिपकिलियाँ बरामद की गई थीं।
लेकिन बेटा चुपके-चुपके से वही कार्य करता है बाद में माँ से जून 1995 के माह में कानपुर के एक सब इंस्पेक्टर श्री | आकर कहता है-देखो 'मैंने वही काम किया और मुझे कुछ नहीं सुरेन्द्रकुमार लौर ने अपने शहर में पान मसाले की एक ऐसी | हुआ' इसी प्रकार की दशा पान मसाले का गुटखा खाने वालों की पुड़िया पकडी, जिसमें छिपकली के बच्चे का सिर निकला था। उक्त आधार पर जब सब इंस्पेक्टर श्री लौर ने उस पान मसाले की
आज पान मसालों के गुटखे का प्रचलन बढ़ाने के लिए फैक्ट्री और घर पर छापा मारा तो वहाँ भारी मात्रा में आपत्तिजनक विज्ञापनों की भरमार मची हुई है। लोगों को भ्रमित करने के लिए सामान और स्वास्थ्य विरोधी वस्तुएँ बरामद हुईं। अपनी गिरफ्तारी बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मीडिया के माध्यम से लोगों को मोहित के बाद पान मसाला निर्माता ने स्वीकार किया कि वे अपने पान | करने का उपक्रम कर रही हैं। आम लोगों की धारणा है कि केवल मसाले में कत्थे एवं चूने की जगह खड़िया मिट्टी,गेरु, जानवरों को | तम्बाकू वाले गुटखे से ही कैंसर होता है, तो ऐसा नहीं। कैंसर खिलाई जाने वाली खली, सड़ी हुई सुपारी एवं तम्बाकू की पत्ती | विशेषज्ञों का कहना है कि बगैर तम्बाकू के गुटखे भी खाये तो की जगह जहरीले मदार के पत्तों को पीसकर मिलाते थे। पान | 'गेम्बियर' नामक रसायन चबाने वाले के मुँह को कैंसर से ग्रसित मसाले के निर्माता ने यह भी स्वीकार किया कि वह कभी-कभी | कर सकता है। ऐसे रोगियों का गाल खराब होने लगता है और अपने पान मसाले में अफीम की बोकली एवं मरी हुई छिपकली | जबड़ा पूरा नहीं खुल पाता है। एक महानगरीय शोध संस्थान का चूर्ण मिलाता था, क्योंकि ऐसा करने से मसाले में तेजी एवं | 'यूनिवर्सिटी डिपार्टमेन्ट ऑफ केमिकल टेक्नालॉजी' के शोधार्थियों नशा बढ़ता है। इंस्पेक्टर श्री सुरेन्द्र कुमार लौर ने जहर के व्यापारी | ने मार्केट में बिकने वाले बहुत तरह के गुटखों और पाउच मे को धारा 169/93,4821489/420 के अंतर्गत कानपूर जेल में भेज बिकने वाले पान मसालों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि दिया और उस समय न्यायालय ने उसकी जमानत नामंजूर कर दी सभी नमूनों में एफ्लेटॉक्सिन' नामक विष तत्त्व है, जिससे लीवर थी।
कैंसर, सिरोसिस एवं लीवर को गहरी क्षति पहुँचाने वाली अन्य इंडियन अस्थमा केयर सोसाइटी के सचिव श्री धर्मवीर | बीमारियाँ हो सकती हैं। इन नमूनों में भारी मात्रा में विषैले जीवाणु कटेवा ने बताया कि पानपराग एवं गुटखा में सीसा ही नहीं मिलाया भी पाये गये और ऐसी फफँदियाँ भी जो 'एफ्लेटॉक्सिन' निर्मित जाता, वरन् मरी हुई छिपकलियों की हड्डियाँ भी पीसकर डाली करती है जबकि विकसित देशों में तो किसी भोज्यपदार्थ में मामूली जाती है ताकि इसको खाने वाला उसका आदी हो जाए। उन्होंने मात्रा में भी 'एफ्लेटॉक्सिन' पाया जाए तो खाद्य पदार्थ को निरस्त बताया कि कंपनियाँ दो तरह के गुटखों की बिक्री करती हैं, | कर दिया जाता है और आज भारत जैसे महान राष्ट्र में ऐसे पदार्थों जिनमें से एक जर्दायुक्त एवं एक बिना जर्दा के, जिससे व्यक्ति की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इस जहर को जहररूप न बिना जर्दा का गुटखा खाते-खाते जर्दा वाला गुटखा भी खाने लग जानकर हम खाते जा रहे हैं और खिलाते जा रहे हैं। हम क्या खा जाता है।
रहे हैं ? कैसा खा रहे हैं? आज यह जानना आवश्यक है। इससे पान मसालों मे मुटाजेन नामक घातक तत्त्व पाया जाता है, ही व्यक्ति अपने जीवन का निर्वाह अच्छे ढंग से कर सकता है। जिसके प्रयोग से मुँह खुलना और बंद होना, बंद हो जाता है और | स्वयं स्वस्थ रहेगा, तो उसका परिवार भी स्वस्थ रहेगा। बोलने की शक्ति कम हो जाती है। लगातार पान मसालों के सेवन उपसंहार- यह मनुष्यभव बहुत दुर्लभ है, जिस व्यक्ति का से मुख के भीतर का भाग (श्लेष्म पटल) लाल हो जाता है। उस आचरण और खानपान शुद्ध है, ऐसा व्यक्ति ही इस दुर्लभ मनुष्य पर फुसियाँ आने लगती हैं, फिर धीरे-धीरे उनमें घाव बनते जाते जीवन का लाभ उठा पाता है। आज के व्यक्तियों की दृष्टि पैसे की हैं, जिससे रोगी को कालातंर में वहाँ पर सफेद चकते उभरने ओर होने के कारण खानपान की ओर नहीं जा पाती है। इसी का लगते हैं, जिन्हें 'ल्यूकोप्लोकिया' कहा जाता है तथा यहीं से । दुष्परिणाम है रोगों का जन्म होना है, अगर देखा जाये तो मनुष्य के प्रारंभ होती है मुँह के कैंसर की कहानी, जिससे बहुत कष्ट झेलना | पास जैसा मस्तिष्क है, वैसा किसी के पास नहीं है। मनुष्य चाहे पड़ता है।
तो कर्मों की मजबूत श्रृंखला को तोड़ सकता है और अपनी बुरी पान मसाले से कैंसर : एक सर्वेक्षण - नईदुनिया, | आदतों को छोड़ना कोई मुश्किल काम नहीं है। एक चुटकी में 12 मई 2002 जिनभाषित -
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