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से दूध शुद्ध प्राप्त किया जा सकता है।
आदि कम्पनी का घी खरीदकर आहार में देने लगे हैं। 3. घी - शुद्ध घी का प्राप्त करना वर्तमान में | उनका कहना है कि अठपहरा घी तो, मिलता नहीं और एक दम असंभव है। चारित्रचक्रवर्ती ग्रंथ में पूज्य आचार्य महाराज को घी देना ही है तो क्या करें? एक स्थान शान्तिसागर जी महाराज से यह प्रश्न किया गया कि घी पर तो चातुर्मास समिति वाले डेरी का निकला हुआ घी शुद्ध नहीं मिलता। क्या करना चाहिए तो आचार्य श्री (अशुद्ध समझते हुए भी) पूरे चार माह तक संघ को कहते हैं घी शुद्ध न मिले तो तेल का इन्तजाम करना | आहार में शुद्ध कहकर खिलाते रहे। (यह मैं बिल्कुल चाहिए। परन्तु न मालूम क्यों हम जैनभाइयों के दिगाम | सत्य घटना लिख रहा हूँ) जो नितांत अशुद्ध है। में यह बात अच्छी तरह जमी हुई है कि यदि साधुओं
इस समस्या के तीन समाधान को घी नहीं दिया जायेगा, तो उन्हें संयम साधन करने
1. सर्वोत्तम तो यही है कि बजाय घी के शुद्ध के लिए शक्ति कैसे प्राप्त होगी? जबकि यह अकाट्य
तेल अपने सामने किसी एक्सपेलर को धुलवा कर सत्य है कि दक्षिण भारत, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल आदि
निकलवा लिया जाय, (एक बार का निकला हुआ तेल प्रदेशों में अधिकांश जनता ने तो घी का स्वाद चखा ही
कई माह तक शुद्ध रहता है) और उसे ही आहार बनाने नहीं है। वे तेल पर आधारित हैं, और स्वस्थ एवं दीर्घायु |
| में प्रयुक्त किया जाए। हैं। अतः इस धारणा को हमें निकाल देना चाहिए। जहाँ |
2. घी से ज्यादा शक्ति बादाम में बतायी जाती तक शुद्ध घी का प्रश्न है वह केवल उसी परिवार को | प्राप्त हो सकता है, जिसके घर में स्वयं के पशु हों, |
है। बजाय 100 ग्राम घी के यदि साधु को आहार में
5/7 बादाम घिसकर दे दिये जायें तो हर दृष्टि से श्रेष्ठ लेकिन ऐसे घर वर्तमान में देखने में नहीं आते हैं। आज-कल जो घी इस्तेमाल होता है, वह कई प्रकार से
रहते हैं, तथा अशुद्धि का भी कोई प्रश्न नहीं उठता। ये प्राप्त किया हुआ होता है। .
बादाम दूध में मिलाकर दिये जा सकते हैं। 1. श्रावक अपने घर में जिस शुद्ध दूध का प्रयोग
3. जैन समाज को एक ऐसी दुग्ध सोसायटी बनानी करता है, उसकी मलाई एकत्रित करता जाता है। जब चाहिए जो शुद्ध घी (आगम की मर्यादा के अनुसार) मलाई 5-7 दिन की एकत्रित हो जाती है तब उसको गर्म
बनाकर श्रावकों को आहार के लिये सप्लाई किया करे। करके घी निकालता है। घी निकालते समय अत्यन्त 4. आटा - आहार के लिए जो आटा प्रयुक्त किया बदबू भी आती है, जो इस बात का लक्षण है कि मलाई जाए उसका गेहूँ अच्छी तरह धुला एवं सूखा हुआ होना सड़ चुकी है। फिर भी वह मलाई का घी निकालकर चाहिए। आज कल श्रावक मर्यादा का तो ध्यान रखते हैं अपने को "यह शुद्ध घी महाराज के लिए ठीक है" ऐसा पर गेहूँ धोने एवं सुखाने का ध्यान नहीं रखते। आज बहलाता हुआ प्रसन्न होता है। जो बिल्कुल गलत है। । विज्ञान का युग है। सभी किसान खादों में कीटाणुनाशक अशुद्ध दूध की मलाई की तो चर्चा ही व्यर्थ है। हाँ दवाइयाँ का प्रचुरता से प्रयोग करने लगे हैं। बाजार से यदि शुद्ध दूध लाकर अन्तर्मुहर्त में गर्म कर लिया गया | जो गेहूँ आता है, उसमें खाद तथा दवाइयाँ का अंश हो, तो उसकी निकाली गयी मलाई की मार्यादा अधिक मौजूद रहता ही है, जो अशुद्ध एवं अभक्ष्य है, एवं वह से अधिक 24 घंटे की है। इसके उपरान्त उसमें त्रस जीव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है। इसलिए सभी डॉ. उत्पन्न हो जायेंगे। सामान्यतः किसी भी श्रावक के घर भी आज यही कहने लगे हैं कि गेहूँ धोकर ही काम में में इतनी मलाई नहीं निकल सकती, जिसका घी बनाया लेना चाहिए। लेकिन आज का श्रावक इन कामों में बड़ा जा सके, अतः इस प्रकार शुद्ध घी बनाना संभव नहीं है।। प्रमादी है, वह गेहूँ धोने व सुखाने के पचड़े में नहीं पड़ना
2. कुछ लोग घी वालों से (हमको शुद्ध घी चाहिए | चाहता है, यदि कुछ समझदारी भी है तो गेहूँ को गीले महाराज को आहार में देना है) ऐसा कहकर घी खरीद कपड़े से पोछ लेता है। जो कि बिलकुल अनुचित है। लाते हैं और उसे शुद्ध मानते हैं। उन दाताओं को सोचना | ऐसा आटा आहार के कदापि योग्य नहीं होता। चाहिए कि जिन घीवालों से आपने घी लिया है, वे 5. मसाले आदि - भोजन में प्रयोग में लाये जाने आपकी धार्मिक सीमाओं को नहीं जानते। अतः उससे वाले मसाले धुले एवं सूखे हुए होने चाहिए और इनकी लाया हुआ घी शुद्ध कैसे हो सकता है? केवल घी वाले | मर्यादा आटे के बराबर है, इसका भी ध्यान रखना के यह कह देने से कि घी सोले का शुद्ध है", घी शुद्ध चाहिए। आजकल मसाला धोने का रिवाज बिलकुल उठ नहीं हुआ करता, वह यह नहीं जानता कि शुद्ध घी किसे | गया है, जो कि अनुचित है। उसकी शुद्धि का पूरा ध्यान कहते हैं, शुद्ध दही कैसे जमता है? अतः ऐसा घी आहार दिया जाना चाहिए। आहार के बाद जो मंजन किया जाता दान के योग्य नहीं होता।
है वह भी अमर्यादित और अशुद्ध प्रयोग में लिया जाने 3. कुछ लोग घीवालों से डेरी का या ग्लेक्सो लगा है, इसकी मर्यादा भी मसालों के बराबर ही है (यदि 14 मार्च 2002 जिनभाषित -
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