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हो जी? जानते भी हो यह गाना है किस फिल्म । इन मामलों में केवल इशारों से ही बात की जाती है।" का? अरे बच्चू! यह गीत महान देश प्रेमी फिल्मकार "तो कुछ इशारा तो कीजिए।" मनोजकुमार द्वारा निर्मित देश भक्ति से प्रेरित फिल्म | "अब यों समझ लीजिए कि यह बात हमारे देश 'जयहिंद' का है।
के दो प्रदेशों के बीच की भी हो सकती है। जैसे कि _ 'हो ही नहीं सकता", पति महोदय ने पूछा-"मनोज बंगाल की कोई प्रसिद्ध राजनेत्री यदि सत्तारूढ़ गठबंधन कुमार की फिल्मों में जो गीत होते हैं उन्हें सुनकर तो | में शामिल हो जाय तो बिहार का कोई नेता भी यह गाना भुजाएँ फड़कने लगती हैं। देश पर कुर्बान हो जाने को | गा सकता है कि पड़ोसन पकड़ी गई।" जी मचलने लगता है। जैसे कि 'मेरा रंग दे बसंती चोला
"ममता की बात कर रहे हैं न?" ओ माँ ए मेरा रंग दे बसंती चोला"
"फिर वही बात! मैं मात्र उदाहरण दे रहा हूँ। "अब होने को तो-'तेरी दो टकियाँ दी नौकरी, ममता या जयललिता की बात नहीं कर रहा हूँ। कम मेरा लक्खों दा सावन जाय रे' जैसे गीत भी मनोज से कम स्पष्ट रूप से तो मैं इसे स्वीकार नहीं करना कुमार की ही फिल्म में होते हैं। पर इनका अर्थ सही| चाहूँगा। हाँ! एक बात जरूर मैं ऐलानिया कहूँगा कि इस संदर्भ में देखना आवश्यक होता है, वरना असलियत समझ | गीत का मेरे पड़ौस से कोई संबंध नहीं है।" में नहीं आती। अच्छा यह बतलाइए, क्या आपने जयहिंद "तो भाई साब! यह तो बतला दीजिए कि यह फिल्म देखी है?"
सी.डी.प्लेयर आप कब, कहाँ से और कितने का "जी नहीं! और आपने?"
खरीदा।" "मैंने भी नहीं देखी। पर मैं कल्पना कर सकता जाहिर है कि पड़ोसन को गीत नहीं, बल्कि सी. हूँ। अंदाज लगा सकता हूँ कि यह गीत संभवतः हमारे | डी.प्लेयर चुभ रहा था! इसलिए वह पड़ौसी को उसका किसी पड़ोसी देश की महिला शासक के संदर्भ में रचा आनंद उठाते सहन नहीं कर पा रही थी। गया होगा।"
कहते हैं कि वे लोग जो इस संसार को त्याग कर, . "बेनजीर के बारे में?" पत्नी ने जो कि वार्तालाप | जन्म-मरण के चक्र से निकलने हेतु तपस्यालीन होना को रोचक होते देख अब तक एल.ओ.सी. के नजदीक चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए वन में चले जाते हैं। आ गईं थी पूछा।"
मेरी समझ से इसका प्रमुख कारण यह होता है कि, वहाँ "क्यों?" पड़ौसी ने तत्काल प्रति प्रश्न किया" | उन्हें तंग करने को कोई पड़ौसी नहीं होता! क्या हमारे पड़ौस में एक वही महिला शासक रही है?"
7/56-अ, "तो क्या हसीना या चन्द्रिका के बारे में होगा?"
मोतीलाल नेहरु नगर (पश्चिम) "देखिए, राजनीति में इस तरह लांछन नहीं लगाया
भिलाई (दुर्ग) छ.ग. - 490020 जाता। इसमें बात से मुकर जाने में परेशानी होती है।
चिन्ता नहीं, चिन्तन करो। || जिन पर लिखा सहारों के घर पं. लालचन्द्र जैन 'राकेश'
ऋषभ समैया 'जलज
जिन पर लिखा सहारों के घर चिन्ता नागिन विषभरी, उसको छोडो मित्र।
वह तो निकले खारों के घर चिन्तन अमृत-कलश है, धारो परम पवित्र।।
चहक महक मदमस्ती गुम है चिन्ता ज्वाला आग की, चिन्तन जल की धार।
भर-मधुमास बहारों के घर चिन्तन में शांति बसे, चिन्ता बसे अँगार।।
चमक दमक से दूर रहेंगे चिंता निशा अमावसी, चिंतन पूनम चंद।
नेक-नीयत खुद्दारों के घर चिन्ता सोखे योग त्रय, चिन्तन हुलस अमंद।।
दिखे नहीं घर जैसी रौनक आत्म हितेच्छु जनन को, चिंतन करे सहाय।
समझे हैं आवारों के घर चिंता से कुछ न मिले, ज्ञान गाँठ का जाय।।
शीतल हवा, महक चंदन की अतः विज्ञ! गुण-दोष निधि, सकल पक्ष चिंतन करो।
मिले नहीं, अंगारों के घर छोड़ो द्वन्द्व तमाम, चिन्ता नहीं, चिन्तन करो।।
नाव तभी कहलाती है वह
जिसमें हों पतवारों के घर नेहरु चौक, गली नं. 4,
चाहत के चिराग रख देना गंजबसौदा (विदिशा) म.प्र.
नफरत के अँधियारों के घर
-मार्च 2002 जिनभाषित
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