Book Title: Jinabhashita 2002 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ समाचार बण्डा (सागर म.प्र.) में पंचकल्याणक-गजरथ महोत्सव सम्पन्न 22 फरवरी से 28 फरवरी 2002 तक बहुप्रतीक्षित । मंदिरों के थे और कृषि मंडी वाले जगह नहीं देते, तो बंडा पंचकल्याणक त्रय गजरथ महोत्सव विशाल जन-सैलाब निष्पक्ष कार्य नहीं हो पाता, यह स्थान बीच में होने से के बीच गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी के ससंघ | ठीक हो गया। समाज में कोई भी कार्य होता है एकता सान्निध्य एवं आशीर्वाद से सम्पन्न हो गया। 300 से होता है। जिनबिम्ब प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, राष्ट्रीय स्तर के आचार्य श्री ने कहा कि हमने रथ बहुत स्थानों पर कार्यक्रम, आचार्यश्री की आत्मकल्याणी अमृतवाणी, सम्पूर्ण देखे, परन्तु बंडा में सबसे ज्यादा सुविधा यहीं पर मिली। नगर की सजावट एवं जैनेतर बंधुओं के जन-सहयोग से आज तो मंडी के भीतर ही हमारी दुकान लग गई। कोई विश्व शांति की याचना सहित बंडा नगर का महोत्सव भी बात मन के अनुरूप नहीं होने से अच्छी नहीं लगती, सालों-साल याद रखा जाएगा। इसे बंडावासी भुला न मन चंचल होता है, मन के अभाव में कोई व्यक्ति चंचल पायेंगे। नहीं हो सकता है। मन की चोट भी नहीं लगती है, 22 फरवरी से 28 फरवरी 2002 तक नर से जीवन को सर्वाग सुन्दर बनाने के लिये कष्ट सहना पड़ता नारायण बनने की जीवट प्रस्तुति देखने के साथ-साथ है। भावना पहले होती है, प्रभावना बाद में होती है। बंडा शिखरसंत आचार्य श्री विद्यासागर जी के दर्शन की वालों ने गजब कर दिया, कहने के लिये ज्यादा प्रशंसा भावना लेकर देश के ही नहीं विदेशों से हजारों धर्मप्रेमी तो नहीं कर रहे हैं। सागर के सामने बंडा तो एक बूंद बंधु आये। महोत्सव के दौरान आचार्य श्री ने दया, ही है। समाज अल्प होते हुए भी इतना अधिक किया। वात्सल्य, अहिंसा एवं सद्भाव को प्रत्येक मानव के लिये कम समूह और कम समय में बृहद् कार्य हो सकता है। अपने जीवन में उतारने का उपदेश दिया। शुरु से लेकर तन, मन धन का सदुपयोग धर्म की प्राप्ति के कार्यों में अंत तक श्रद्धालु जनों के आने-जाने का क्रम अनवरत करना चाहिए। चलता रहा। राष्ट्रीय स्तर के कवियों की कविताएँ, वीरेन्द्र कुमार शिक्षक ख्याति प्राप्त संगीतकार राजेन्द्र जैन के गीत, केन्द्रीय बण्डा (बेलई) सागर कपड़ा मंत्री बी. धनंजय कुमार का आगमन, रिमोट से चलने वाले विमान द्वारा पुष्प वर्षा, महोत्सव के प्रमुख राष्ट्रपति सहस्राब्दी पुरस्कार-सम्मान आकर्षण रहे। से सम्मानित पंचकल्याणाक महोत्सव की समाप्ति के अवसर पर परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने अपने ___ गत 6 फरवरी 2002 को प्रो. डॉ. राजाराम जैन आशीर्वचन में कहा कि सम्यक् सुख के लिये समाचीन आरा (बिहार) तथा मानद निदेशक, श्री कुन्दकुन्द भारती कारण होना आवश्यक है। एकता के बिना कोई भी शोध संस्थान, नई दिल्ली को राष्ट्रपति भवन के अशोक कार्य नहीं हो सकता है। समाज में कोई भी कार्य होता सभागार में राष्ट्रपति सहस्राब्दी पुरस्कार से सम्मानित है, एकता से होता है। एकता के साथ वात्सल्य होता किया गया। प्राकृत, जैन-विद्या एवं दुर्लभ प्राकृत-पाण्डुलिपियों है। हमेशा-हमेशा मुस्कान का नाम वात्सल्य नहीं कहा के श्रमसाध्य एवं धैर्यसाध्य सम्पादन कार्यों का मूल्यांकन जा सकता है। अपने एक लक्ष्य की ओर कठिन कर भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित करने का गतवर्ष साधना करते रहिए, एक दिन फल मिलता है। उक्त निर्णय लिया था। अपने क्षेत्र का भारत का यह सर्वोच्च उद्गार आचार्य श्री विद्यसागर जी महाराज ने बण्डा नगर सम्मान-पुरस्कार माना जाता है। के मंडी प्रांगण में आयोजित रविवारीय प्रवचन के दौरान ध्यातव्य है कि डॉ. जैन ने वैशाली के राजकीय व्यक्त किये। प्राकृत शोध संस्थान में 6 वर्षों तक सेवा कार्य कर मगध विश्व विद्यालयान्तर्गत ह.दा. जैन कॉलेज आरा उन्होंने कहा कि पंचकल्याणक के पूर्व, बीच में (बिहार) में लगभग 30 वर्षों तक प्राकृत एवं संस्कृत के और अब विदाई समारोह वाला रविवार आया है, न्याय शिक्षण का कार्यकर युनिवर्सिटी प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष सिद्धांत के अनुसार कार्य उपादन और निमित्त से होते के रूप में जनवरी 1991 में अवकाश ग्रहण किया था। हैं। बंडा पंचकल्याणक त्रय गजरथ महोत्सव समाज में इस बीच उनके लगभग 30 ग्रन्थ तथा 250 शोध एकता के कारण ठीक ढंग से सम्पन्न हो गया। दृष्टि निबन्ध प्रकाशित हुए। 20 के लगभग पी-एच.डी. एवं दोषों पर न जाये, गुणों की गवेषणा करनी चाहिये। डी. लिट् स्तर के शोध कार्यों में निर्देशन कार्य किया, प्रभावना के लिये धार्मिक कार्य अनिवार्य होते हैं, एकता | साथ ही आल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस के प्राकृत एवं के बिना कार्य नहीं हो सकता। पंचकल्याणक तीन | जैन विद्या विभाग की कर्नाटक विश्व विद्यालय में सन -मार्च 2002 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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