Book Title: Jinabhashita 2002 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ बालवार्ता विपत्ति में मित्र का साथ नहीं छोड़ना चाहिए 'डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती' किसी गाँव में राजा और राजू नाम के दो बालक राजू का उलाहना सुनकर राजा को अपनी गलती रहते थे। उनमें गहरी मित्रता थी। वे एक साथ स्कूल का अहसास हुआ। पश्चात्ताप में उसके आँसू बह निकले। जाते. एक साथ खेलते। छुट्रियों के दिन साथ-साथ | उसने राज से क्षमा माँगते हुए कहा कि अब वह कभी-भी बिताते। जब वे दोनों बड़े हुए तो व्यापार करने लगे। | विपत्ति में मित्र का साथ नहीं छोड़ेगा। व्यापार में दोनों ने खूब मेहनत की। राजा के भाग्य ने राजा की क्षमा भावना देखकर राजू भी कठोर न साथ दिया, जिससे राजा कुछ ही दिनों में करोड़पति सेठ रह सका, उसने राजू को गले लगा लिया। उसके मन बन गया। इधर राजू परिश्रम तो खूब करता, किन्तु भाग्य | में विचार आया कि "भूल तो सबसे होती है, भूल का ने उसका कभी साथ नहीं दिया। इस विषय में जब भी प्रायश्चित्त करना सबसे बड़ी महानता है।" दोनों की कोई चर्चा चलती, तो राजू हमेशा राजा से मेरे प्यारे बच्चो! इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती कहता कि "लक्ष्मी हमेशा पुण्य के निमित्त से ही प्राप्त है कि हमें कभी विपत्ति में किसी का साथ नहीं छोड़ना होती है। मैंने पूर्व जन्म में कोई पाप किया होगा, जिसके चाहिए तथा भूल होने पर क्षमा माँग लेनी चाहिए। कारण दरिद्रता मेरा पीछा नहीं छोड़ती है।" राजा राजू एल-65, नया इन्दिरा नगर -'ए' के विचारों से सहमत भी होता, किन्तु उसे हतोत्साहित बुरहानपुर-450331(खण्डवा) म.प्र. कभी नहीं करता। वह व्यापार के नये-नये रास्ते सुझाता और उसकी भरपूर मदद भी करता। दोनों के परस्पर जानने योग्य बातें सौजन्य और सहयोग को देखकर गाँववासी उनकी मित्रता १. 'मूकमाटी' (महाकाव्य) के रचयिता आचार्य श्री विद्यासागर की मिसालें देते। जी हैं। एक दिन की बात है कि राजा और राजू व्यापार २. 'दिव्य जीवन का द्वार' कृति के लेखक मुनि श्री के सिलसिले में नगर जा रहे थे। चलते-चलते वे थककर प्रमाणसागर जी हैं। चूर हो गये थे, उन्हें जोरों की भूख भी लगी थी किन्तु अभी नगर में पहुँचना संभव नहीं था, अतः दोनों ने वहीं | ३. 'आत्मान्वेषी' कृति के लेखक मुनि श्री क्षमासागर जी जंगल में विश्राम करना उचित समझा। दोनों भोजन साथ में लिये थे। पास ही एक कआँ था, वहीं से पानी छानकर | ४. 'नग्नत्व क्यों और कैसे' कृति के लेखक मुनिपुंगव श्री लोटे में भर लिया और प्रेमपर्वक भोजन किया। रास्ते की सुधासागर जी हैं। थकान और भोजन के उन्माद में कब उन्हें नींद आ गयी, । ५. 'महायोगी महावीर' कृति के लेखक मुनि श्री समतासागर पता ही नहीं चला। जी हैं। इधर राजू सोता ही रहा, उधर राजा की नींद खुल स्मरणीय दोहे गयी। तभी राजा ने देखा कि एक भालू उधर ही आ रहा है। भालू को अपनी ओर आता हुआ देखकर राजा साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । तुरन्त पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से भालू को राजू के जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप।। निकट आता हुआ देखने लगा। इधर राजू की भी आँख गाली आवत एक है, जावत होय अनेक । खुल गयी, उसने देखा कि राजा पास में नहीं है, दूसरी जो गाली फेरे नहीं, रहे एक की एक ।। ओर देखा तो अपने पास आता हुआ भालू दिखा। मौत मित्र क्षमा सम जगत में, नहीं जीव का कोय। को अपने समीप आता हुआ देखकर राजू को जब कुछ अरु बैरी नहिं क्रोध सम, निश्चय जानो लोय।। और नहीं सूझा तो उसने भी मौत का वरण करना इष्ट मान लिया और संयम के साथ साँस रोककर वहीं क्या आप जैन हैं ? निश्चेष्ट पड़ा रहा। इधर भालू आया और राजू के कान के पास सूंघकर आगे बढ़ गया। उसके मन में क्या यदि हाँ, तो सोचें कि क्या आप प्रतिदिन देवदर्शन आया; यह राजू और पेड पर बैठा राजा नहीं समझ सका। | करते हैं? रात्रि में भोजन तो नहीं करते हैं? मनियों की जब भालू वहाँ से चला गया, तो राजा ने पेड़ से वन्दना करते हैं? किसी की निन्दा तो नहीं करते हैं? नीचे आकर राजू से पूछा कि -"राजू, भालू ने तुम्हारे तीर्थयात्रा का भाव रखते हैं? शास्त्रों का स्वाध्याय करते कान में क्या कहा था?" राजू ने उत्तर दिया, "भालू | हैं? यदि इनके उत्तर हाँ में हों तो आप गर्व से कहिए ने मेरे कान में कहा कि धोखेबाज मित्र का कभी | कि "मैं जैन हूँ।" विश्वास नहीं करना चाहिए। वह तुम्हें कभी भी मौत के मुँह में पहुँचा सकता है।" प्रस्तुति: डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती' 30 मार्च 2002 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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