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प्रश्न आस्था का
माणिकचन्द्र जैन पाटनी
मान्यता एवं आस्था के विपरीत यदि आधुनिक | तीर्थों का शोध चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब शोध वैशाली को भगवान महावीर को जन्म स्थली मान | हमारे हाथ से कई महत्त्वपूर्ण तीर्थ कुण्डलपुर, पावापुरी, रही है, तो यह हमारी संस्कृति पर चोट है और अनुचित आदि भी निकल जायें। है। कुण्डलपुर जन्म स्थली संबंधी प्राचीन मान्यता भी तो
शोध का उद्देश्य तो यह होना चाहिये कि वह किसी शोध, अनुसंधान पर ही आधारित थी। शोध
अपने मूल इतिहास एवं सिद्धान्तों को सुरक्षित रखते हुए अवश्य की जाये और वह स्वागत योग्य भी है पर यह
वर्तमान को प्राचीनता से परिचित कराये। वैशाली में न शोध आस्थाओं पर कुठाराघात करने वाली नहीं होनी
तो महावीर स्वामी का कोई प्राचीन मंदिर है और न ही चाहिये।
उनके महल आदि की कोई प्राचीन इमारत है जबकि पटना बिहार प्रांत में कुण्डलपुर और वैशाली दोनों जिले में स्थित कुण्डलपुर में भगवान महावीर के गर्भ, अलग-अलग राजाओं के अलग-अलग नगर थे तथा जन्म, तप, कल्याणक हुए थे, इस प्रकार की मान्यता कई कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ एवं वैशाली के राजा चेटक शताब्दियों से चली आ रही है वहाँ भगवान का का अपना-अपना विशेष अस्तित्व था।
शिखरबंद मंदिर है और वार्षिक मेला भी चैत्र सुदी १२ राजा चेटक की महारानी सुभद्रा से दस पुत्र व से 14 तक जन्मकल्याणक मनाने के लिए होता है। सात पुत्रियाँ हुईं। इनमें प्रियकारिणी "त्रिशला" का | सम्मेदशिखर जी की यात्रा पर जानेवाले सभी यात्री विवाह श्रेष्ठ नाथवंशी कुण्डलपुर नरेश सिद्धार्थ के साथ कुण्डलपुर जाना अपना परमधर्म समझते हैं। सभी जैन कर दिया गया। किसी भी कन्या का विवाह हो जाने धर्मावलम्बी प्रतिदिन प्रात: भगवान महावीर के पूजन में पर उसका वास्तविक परिचय सुसराल से होता है न कि "कुण्डलपुर में जन्म लियो" व सायंकाल आरती में नाना, मामा के वंश और नगर से। अतएव महावीर की "कुण्डलपुर अवतारी" का नाम उल्लेख करते हुए इस पहचान ननिहाल वैशाली और नाना चेटक से नहीं वरन् | तीर्थ के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं। पिता की नगरी कुण्डलपुर एवं पिता सिद्धार्थ राजा से | दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थों को छोड़कर अन्य प्रमाणों मानना शोभास्पद है। अतः महावीर को कुण्डलपुर का | के आधार पर प्रमाणिकता भले ही बदल जाय, पर युवराज ही स्वीकार करना होगा न कि वैशाली का। दिगम्बर जैन धर्मानुरागी बंधुओं की आस्था व मान्यता तो दिगम्बर जैन धर्म के अति प्राचीन प्रमाण मौजूद हैं जिनमें अपरिवर्तनीय ही रहेगी और वे कुंडलपुर को ही भगवान महावीर का जन्म स्थल कुण्डलपुर ही माना गया है। । महावीर की जन्म स्थली मानते हुए वहाँ जाकर अपना
भगवान महावीर के ननिहाल में यदि कोई अवशेष माथा टेकते रहेंगे। दिगम्बर धर्म के नेतृत्व एवं उपासकों मिले हैं, तो वे जन्मभूमि के प्रतीक न होकर ये पौराणिक का यह परम कर्तव्य है कि वे आगम ग्रंथों में उल्लिखित, तथ्य दर्शाते हैं कि तीर्थंकर महावीर के अस्तित्व को जन-जन की आस्था के केन्द्र कुंडलपुर (नालंदा) के वैशाली में भी उस समय मानकर उनके नाना, मामा सभी विकास एवं संरक्षण का दायित्व ग्रहण करें। गौरव का अनुभव करते हुए सिक्के आदि में उनके चित्र
राष्ट्रीय महामंत्री दिगम्बर जैन महासमिति उत्कीर्ण कराते थे तभी वे आज पुरातत्त्व के रूप में प्राप्त
16-अ, नेमीनगर, इन्दौर -452009 हो रहे हैं।
दिगम्बर परम्पशुनसार तीर्थंकर तो अपनी माता-पिता के इकलौते पुत्र ही होते हैं अर्थात् उनके कोई भाई नहीं। पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय। होता। अतएव माता-पिता के स्वर्गवासी होने के पश्चात् || ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥ कुण्डलपुर की महिमा वैशाली में मामा आदि जाति बन्धुओं ने प्रचारित कर वहाँ कोई महावीर का स्मारक निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय। बनवाया हो, तो अतिशयोक्ति नहीं है। संभव है कि उस बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करत सुभाय ॥ स्मारक के अवशेष वहाँ मिल रहे हों। बन्धुओ ! इस तरह निराधार एवं नये इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन |
-मार्च 2002 जिनभाषित
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