________________
आहार दान की विसंगतियाँ
ब्र. महेश जैन सुना जाता है कि आज से 200/300 वर्ष पूर्व | बाल्टी द्वारा सीधे उसी कुए में क्षेपण करे, जहाँ से पानी अपने क्षेत्रों में जैन साधुओं का अभाव सा था, कहीं लाया गया हो। पानी को साफ एवं मोटे छन्ने से छाना दक्षिण भारत में एक-दो साधु देखे जाते थे, उस समय | जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान में ऐसा बिल्कुल भी नहीं जो भी जैन विद्वान थे, वे दिगम्बर साधुओं के दर्शन के | हो रहा है। श्रावक जो छन्ना पानी छानने में प्रयोग करता लिए तरसते ही रह गये। समय बीतता गया। इस सदी | है वह पतला एवं छिरछिरा होता है। उससे पानी छानने में एक सिंहवृत्ति के साधु हुए, जिनका नाम था आचार्य | की विधि बनती ही नहीं है। यदि छन्ना मोटा भी है तो शान्तिसागर जी महाराज। उनकी अनुकंपा से आज तक उसकी जिवानी यथास्थान क्षेपण नहीं की जाती है। वह परम्परा सतत चल रही है। आज हमारे सौभाग्य से | अधिकतर कुए घर से दूर होते हैं। वहाँ से पानी लाया वर्तमान में 800/900 साधु व आर्यिका आदि भारत में जाता है और उसकी जिवानी को नाली में बहा दिया यत्र-तत्र बिहार कर रहे हैं। तथा धर्म का प्रचार-प्रसार | जाता है। हैण्डपंप के पानी की जिवानी को यथास्थान प्रचुरता से हो रहा है।
पहुँचाने का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः त्रस जीवों की पहले साधुओं का अभाव होने के कारण गाँव एवं रक्षा नहीं हो पाती है व छन्ना पतला होने से साधु को शहरों में साधुओं के दर्शन ही नहीं होते थे व हमें आहार | दिये गये भोजन में त्रस हिंसा का दोष लगता है एवं जीवों विधि आदि का कोई ज्ञान नहीं था। यही कारण था कि | की घोर हिंसा होती है। आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने दीक्षा लेने के उपरान्त | 2. दूध - आज का श्रावक साधुओं के लिए शुद्ध कई वर्षों तक मात्र दूध व चावल ही लिया। जब इस | दूध की व्यवस्था कर ही नहीं पाता है। मैंने कई संघों संबंध में उनसे पूछा गया तो पूज्य आचार्यश्री ने बताया | में जाकर देखा है कि लोग साधुओं को अशुद्ध दूध कि आहार दाताओं को शुद्धि विषयक ज्ञान ही नहीं है, पिलाते हैं। एक क्षेत्र पर 15/20 साधुओं का संघ रुका अन्य वस्तुएँ कैसे ग्रहण की जायँ? वर्तमान में परिस्थितियों | हुआ था। वहाँ के क्षेत्र प्रबन्धक तीन-चार किलोमीटर दूर ने बहुत पलटा खाया है। आज भारत में हर 100/50 से 25/30 लीटर दूध कढ़वाकर मँगवाते थे और दूध सारे कि.मी. की दूरी पर कोई न कोई साधु संत हमें मिल | चौकों में बाँटा जाता था। दूध का कढ़ना प्रात: 5.30 जाते हैं व हमारे शहर-गाँवों में पधारते रहते हैं। श्रावक बजे शुरु हो जाता था और श्रावक के यहाँ पहुँचते पहुँचते जन अपना कर्त्तव्य समझकर साधुओं लिए आहार बनाते आठ बज जाते थे। ऐसे दूध को कैसे आहार के योग्य हैं, पर ऐसा देखा जाता है कि आहार संबंधी शुद्धि का कहा जा सकता है? कच्चे दूध की मर्यादा मात्र अन्तर्मुहूर्त प्रवचन सुनकर व पुस्तकों को पढ़कर भी, आलस्य से (48 मिनिट) की है। इतने समय में दूध गर्म हो जाना भरा हुआ श्रावक, अपनी सुविधानुसार साधु को आहार | चाहिए। लेकिन जिस प्रकार दूध मँगाया जाता है उसमें देता है, न कि आगम व प्रवचनानुसार। क्योंकि मैं कई | मर्यादा का पालन नहीं होता। एक स्थान पर यह देखकर बार मुनि संघों के दर्शनार्थ जाता रहता हूँ व हमारे शहर | अत्यन्त दुख हुआ कि श्रावक डेयरी का थैलीवाला दूध में भी मुनि संघ आते रहते हैं। मैंने आहर शुद्धि के विषय ही गर्म करके आहार में दे रहे थे। में श्रावकों के चौकों का निरीक्षण किया व उनकी मैं समझता हूँ कि शुद्ध दूध प्राप्त करने की क्रियाओं को देखा एवं उनसे चर्चा की, मुझे वहाँ बहुत समस्या सही है, लेकिन यदि हम थोड़ा सा आलस्य छोड़ सी अशुद्धियाँ देखने-सुनने को मिलीं, जिससे चित्त में बड़ा सकें तो दूध की शुद्धि बन सकती है। सर्वश्रेष्ठ तो यही सन्ताप हुआ। तब यह लेख लिखने की भावना बनी है। है कि हर चौकेवाला स्वयं गर्म जल लेकर जाये एवं शुद्ध हमें विचार करना है कि साधुओं को दिया जाने वाला दूध कढ़वाकर लाये। एवं जहाँ पर पीछियाँ अधिक हों आहर कहाँ तक आगम सम्मत है?
और क्षेत्र पर ठहरी हों और दूध कहीं अन्यत्र से सभी 1. जल - आहार में जो जल उपयोग में लिया चौकों वालों के लिए लाना पड़ता हो, वहाँ प्रबन्धकों को जाता है, वह कुए का या किन्हीं संघों में हैण्डपंप का चाहिए कि वे जहाँ दूध निकाला जा रहा हो, उसी स्थान लिया जाता है। (हम इस विषय पर चर्चा नहीं करेंगे कि । पर बड़ा भगौना एवं एक बड़ा गैस का चूल्हा रखें। हैण्डपंप का जल उपयोग में लिया जाय या नहीं) श्रावक जैसे-जैसे दूध नपता जाए, उसे छानकर वहीं भगौने में गर्म का कर्तव्य है कि पानी छानकर जिवानी को कुन्डेवाली कर लें और फिर श्रावकों को वितरित कर दें। ऐसा करने
-मार्च 2002 जिनभाषित
13
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org