Book Title: Jinabhashita 2001 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 5
________________ हैं, उस गीत की अश्लील धुन में भी भक्ति गीत या मुनि-आर्यिकाओं इस फिल्मी संगीत और नृत्य के आकर्षण से जो भीड़ इकट्ठी के स्तुतिगीत रचकर गाये जाते हैं। होती है और भीड़ का जो मनोरंजन होता है उसे दृष्टि में रखकर ही वर्तमान में, सिद्धचक्र, इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम आदि महापूजाएँ | तारीफ करने वाले कहते हैं कि अमुक-अमुक विधान में आनन्द की फिल्मी संगीत के माध्यम से ही सम्पन्न की जाती हैं। इसके लिये | वर्षा हो रही है, धर्म की बहुत प्रभावना हो रही है। वस्तुतः यह धर्म विशेष प्रबन्ध किया जाने लगा है। प्रतिष्ठाचार्य या विधानाचार्य पेशेवर | की प्रभावना नहीं, फिल्मी संगीत की प्रभावना है। यदि विश्वास न हो संगीत पार्टियों को अनबन्धित कर लेते हैं। उन्हें दस-दस हजार रुपये | तो एक बार बिना संगीत पार्टी के कोई विधान कराके देख लीजिए। तक दिलवाये जाते हैं। प्रतिष्ठाचार्यों का प्रतिष्ठाचार्यत्व इन संगीत | श्रोताओं या दर्शकों के लाले पड़ जायेंगे। सम्पूर्ण कार्यक्रम में पार्टियों से ही फलता-फूलता है। संगीत पार्टियों के सभी सदस्य फिल्मी | विधानाचार्य, इन्द्र-इन्द्राणियों, माली और दो-चार बूढ़े स्त्री-पुरुषों के धुनों पर जैनभजन और जैनपूजाएँ गाने में दक्ष होते हैं। उन्हें सिद्धचक्र | अलावा एक भी नवयुवक-नवयुवती वहाँ दिख जाये तो कहियेगा। आदि सभी विधानों की पूजाएँ प्रायः कण्ठस्थ होती हैं और उनमें सभी | विधानों की पूजा लम्बी होती है और उनकी लय पुराने छन्दों में होती प्राचीन छन्दों और राग-रागिनियों में निबद्ध पूजाओं को प्रचलित | है। इसलिए पूजा के पदों को सुनना मनोरंजक नहीं होता। ऐसे लोकप्रिय फिल्मी धुनों में ढाल लेने की अद्भुत प्रतिभा होती है। ये | अमनोरंजक कर्मकाण्ड में केवल इने-गिने अतिश्रद्धालु लोग ही अधिक भक्तामर, महावीराष्टक आदि संस्कृत स्तोत्रों तक के वसंततिलका, देर तक बैठ सकते हैं। इतनी लम्बी बैठक साधारण श्रद्धावाले लोगों शिखरिणी जैसे छन्दों को ताक पर रखकर उन्हें शृंगाररसात्मक के वश की बात नहीं। फिल्मीधुनों में गाने और गवाने का, कुलवधू को बाजारू औरत बना । विधानाचार्य इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को भलीभाँति जानते हैं। देने जैसा, वीभत्स कार्य करते हैं। ये विधानाचार्यों के लिए बहुत इसीलिए वे फिल्मी संगीत का मसाला डालकर विधान के कार्यक्रम सहायक होते हैं। विधानाचार्य महोदय सामने पोथी खोले बैठे रहते | को मनोरंजक बनाने की कोशिश करते हैं। और ऐसा करने पर जो हैं। संगीतपार्टी वाले आधुनिक वाद्ययन्त्रों के तीक्ष्ण संगीत के साथ | भीड़ जमा होती है वह स्पष्टतः श्रवणेन्द्रिय के विषयसुख का आस्वादन फिल्मी धुनों में पूजा के पद गाने का काम करते हैं। इन्द्र-इन्द्राणी द्रव्य | करने के लिय जमा होती है, पूजा या विधान में चित्त लगाने के लिय की रकाबी हाथ में लिए शरीर को हिलाते-डुलाते रहते हैं। पूजा का | नहीं, किन्तु विधानाचार्य प्रचारित करते हैं कि उनमें धर्म के प्रति रुचि पद जब पूर्ण होता है तब विधानाचार्य मन्त्र बोलते हुए 'जलं, चन्दनं बढ़ रही है। वस्तुतः यहाँ भी हम माया से ठगाये जा रहे हैं। उसके या अर्घ निर्वपामीति स्वाहा' ऐसा जोर से चिल्लाते है। उसे सुनकर वशीभूत हो श्रवणेन्द्रिय सुख के उपाय को धर्मरुचि जगाने का उपाय इन्द्र-इन्द्राणी भी जोर से 'स्वाहा' ध्वनि का उच्चारण करते हुए द्रव्य समझा जा रहा है। अफसोस है कि हमने पूजा- भक्ति के पवित्र 'चढ़ा देते हैं। विधानाचार्य और इन्द्र-इन्द्राणियों को केवल इतना ही | अनुष्ठानों को बाजारू संगीत की शहद में डुबाकर कोरे मनोरंजन का बोलना पड़ता है, बाकी सम्पूर्ण पूजा गाने का काम संगीतपार्टी वाले | साधन बना लिया है और उन्हें वास्तविक उद्देश्य से भटका दिया है। करते हैं। पूजा- भक्ति का वास्तविक उद्देश्य है भगवान् के गुणस्तवन से आत्मा संगीतपार्टी वाले प्रायः अजैन होते हैं। सिद्धचक्रादि विधानों में | को पवित्र करना, विषयानुराग और कषायों के मैल को धोना, जैसा उन्हें चाँदी काटने का अच्छा अवसर मिलता है। उन्हें मालूम होता | कि आचार्य समन्तभद्र ने कहा हैहै कि विधानों में वे लोकप्रिय फिल्मी धुनों में पूजा या भजन गाकर | न पूजयार्थस्त्वयि वीतरागे न निन्दया नाथ विवान्तवैरे। लोगों का मनोरंजन करने के लिये बुलाये जाते हैं, ताकि विधान में | तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्नः पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः। श्रोताओं या दर्शकों की अधिक से अधिक भीड इकट्ठी हो और दो किन्तु पूजा-भक्ति के अनुष्ठानों का मनोरंजनीकरण हमारे तीन घंटों तक वहाँ जमी रहे, क्योंकि यह विधान की सफलता का लक्षण है। इसलिये वे पूजा के बीच-बीच में फिल्मी धुनों पर बनाये विषयानुराग को ही पुष्ट करता है। गये नये-नये धार्मिक गीत छेड़ देते हैं और इन्द्र-इन्द्राणियों को उन इतना ही नहीं हम चातुर्मास स्थापना, दीक्षा दिवस और पिच्छी धुनों पर नृत्य करने के लिये प्रेरित करते हैं। इन्द्र-इन्द्राणी भी भक्ति परिवर्तन जैसे वैराग्य-प्रबोधन के अवसरों का भी मनोरजनीकरण करने के नाम पर अपने स्थूल शरीर का ख्याल किये बिना नृत्य करने लगते से नहीं चूकते। उन्हें भी हम फिल्मी संगीत में पिरोये हुए गीत-नृत्यादि हैं और पाँच-दस मिनट के लिए फिल्मी संगीत की लय पर किये जाने के विविध कार्यक्रमों का आयोजन कर 'स्टेज शो' और 'वेरायटी शो' वाले नृत्य का मनोरंजक दृश्य उपस्थित हो जाता है। फिल्मी संगीत में बदल देते हैं। चातुर्मास हेतु धन इकट्ठा करने के लिये बोलियाँ लगाई पर मुग्ध होने वाले रसिक श्रोता और दर्शक तन्मय हो जाते हैं। संगीत जाती हैं। उनमें लोगों को अधिक से अधिक बोली लगाने के लिये समाप्त होने पर नृत्य करने वालों के रिश्तेदार उनपर रुपये निछावर प्रेरणा देने हेतु अनेक श्लोक, दोहे, सूक्तियाँ आदि सुनाई जाती हैं, कर संगीतपार्टी को दान कर देते हैं। इस प्रकार संगीत पार्टी को दुहरी जिनमें धन की निस्सारता, नश्वरता और उसे सार्थक बनाने के उपायों कमाई होती है। इस लालच से वे पूजा को बीच में बार-बार रोककर का वर्णन होता है। यह बहुत उपयोगी है। किन्तु आजकल इसकी जगह नृत्य कराने वाले गीत छेड़ते रहते हैं। इससे सारा कार्यक्रम मनोरंजक फिल्मी गानों की भद्दी पैरोडियाँ बनाकर सुनाने का प्रचलन हो गया बन जाता है। है, जैसे -सितम्बर 2001 जिनभाषित 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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