________________
प्रवचन। संध्या में पश्चात् / सकी है। इस की कार्यशाला ताई
श्रावक संस्कार शिविर : संयम की
आज प्रथम सत्र था जिसका उद्घाटन महासभा जीवदया विभाग के
संरक्षक डॉ. डी.सी. जैन, दिल्ली ने दीप प्रज्वलन कर किया। इस . ओर कदम
अवसर पर संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेठी, जैन परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की विदुषी शिष्या महिलादर्श की प्रधान सम्पादिका डॉ. नीलम जैन, संस्था के निदेशक पूज्य आर्यिका पूर्णमती माताजी के सान्निध्य में दिगम्बर जैन मंदिर | ज्ञानमल शाह, पुरातत्त्व संपर्क अधिकारी कमल कुमार रावका के साथ टिनशेड, टी.टी. नगर में दिनांक 23.8.2001 से दिनांक | ईडर से पधारे श्री कनकभाई दोषी, अनिल गांधी, हितेन्द्र भाई कोठारी 19.2001 तक 'श्रावक संस्कार शिविर' सम्पन्न हुआ। लगभग | तथा मुकेश जैन तथा समाज के अन्य लोग उपस्थित थे। 160 श्रावक सहभागी बने। शिविर अवधि में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन इस अवसर पर प्रशिक्षण देने हेतु इन्टेक की ओर से सर्वश्री करते हुए दसधर्मों को जीवन में उतारने का अभ्यास किया। 8 वर्ष ओमप्रकाश जी अग्रवाल, श्रीमती ऊषा अग्रवाल, श्री अशोक पाण्डेय, की उम्र से लेकर 75 वर्ष की उम्र तक के भैया-बहन शामिल थे। सबने गृह त्याग का संकल्प लेकर शिविर स्थल पर ही रात-दिन निवास | उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए डॉ. ओम प्रकाश जी किया। प्रातः 4 बजे घंटी टनटनाती थी। प्रतिदिन ब्र. भैया रूपेश | अग्रवाल ने कहा कि शास्त्र संरक्षण बहुत ही पुनीत कार्य है। हम लोग जी मंदिर में एकत्रित सभी शिविरवासियों को प्रभु स्तुति करवाते थे। मंदिरों में जाते हैं तो यह देखने को मिलता है कि वहाँ पर अनेकों स्तुति के पश्चात् धर्म सभा भवन में प्रतिक्रमण व सामायिक की क्रियायें शास्त्र हैं। ईडर में करीब 8 हजार ग्रन्थ हैं। एक से बढ़कर एक वे अच्छी सम्पन्न होती थीं। तत्पश्चात् प्रभात भेरी से धर्म प्रभावना एवं जन तरह से रखे हुए हैं लेकिन उनमें थोड़े से परिवर्तन की जरूरत है। जागृति का कार्य सम्पन्न होता था। प्रभात फेरी से लौटने पर पूज्य उनका रख-रखाव कैसे हो, उसके बारे में सभी को जानकारी होना आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी गुरुभक्ति के साथ उपवास की आज्ञा जरूरी है। मैं महासभा के अध्यक्ष श्री सेठी जी को धन्यवाद देता हूँ प्रदान करती थीं। तत्पश्चात् दैनिक क्रिया - स्नानादि से निवृत्त हो कि इस तरह की कार्यशाला तीर्थ संरक्षिणी महासभा के अंतर्गत हो सामूहिक पूजन, माताजी के विशेष प्रवचन, आहारादि के पश्चात् सकी है। इस तरह की यह पहली कार्यशाला है। इस कार्य को करने प्रतिकमण सामायिक पाठ तथा दोपहर में पुनः प्रवचन। संध्या में पुनः के लिये तीर्थ संरक्षिणी महासभा को एक ध्रुव फण्ड की स्थापना करना प्रतिकमण व सामायिक पाठ। रात्रि को धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम चाहिए। श्री अग्रवाल जी ने कहा कि यह वरन पूरे भारत वर्ष का काम व शिविर वासियों में से किसी एक के द्वारा एक धर्म पर प्रवचन। | है,केवल लखनऊ के लिये नहीं। भाई राजेन्द्र जी की नाटिकाओं ने भी खूब धर्म प्रभावना की। इस | शास्त्रों के संदर्भ में डॉ. नीलम जैन ने कहा कि देव और गुरु शिविर में सतना, डूंगरगढ़, बाँसवाड़ा, खण्डवा, सनावद आदि नगरों के बीच में शास्त्रों को रखा गया है। गुरु के स्वरूप को बताते हैं शास्त्र। के भैया-बहनों ने भी भाग लिया। इसमें अनेक शिविरार्थियों ने छः | हमारे अनेक जेन शास्त्र हैं जो स्वर्णाक्षरों में लिखे हैं। हमारा दायित्व छ: निर्जला उपवास किये व शेष चार जलोपवास किये। कुछ भाई- | हो जाता है कि उनको सुरक्षित रख कर हम आगे आने वाली पीढ़ी बहनों ने दस-दस जलोपवास किये। किसी ने आठ, किसी ने पाँच के लिये मार्गदर्शक बनें। आज उनका संरक्षण करना हमारा प्रथम व अनेक लोगों ने तेला (तीन उपवास) सभी शिविरार्थियों के पारणे | कर्तव्य हो जाता है। का कार्यक्रम भव्य स्तर पर हुआ। पारणा एवं चाँदी के प्रतीक चिन्ह | पुरातत्त्व संपर्क अधिकारी एवं बैठक का संचालन कर रहे श्री आदि का प्रबन्ध भी श्री डॉ. डी.के. जैन, भोपाल के सौजन्य से हुआ। | कमल कुमार जी रावका ने कहा कि देश में शास्त्रों का भंडार भरा
दिनांक 2.9.2001 को सम्पूर्ण भोपाल जैन समाज ने | पड़ा है जिसमें हस्तलिखित शास्त्र अधिक संख्या में आज भी मौजूद सामूहिक क्षमावाणी उत्सव आर्यिका संघ के सान्निध्य में महामहिम | हैं, लेकिन वे सभी शास्त्र आज अलमारियों में कैद हैं। शायद वर्ष राज्यपाल की उपस्थिति में मनाया। लगभग दस हजार लोगों की | में एक बार भी उन्हें देखा नहीं जाता है और वे शास्त्र, जो कि हमारी उपस्थिति ने क्षमावाणी समारोह की गरिमा में चार चाँद लगाये। | अमूल्य निधि हैं, कीड़े-मकोड़े और दीमकों की भेंट चढ़ रहे हैं। करीब
आर्यिका रत्न श्री पूर्णमती माताजी व संघ के सान्निध्य में दिनांक एक वर्ष पूर्व हमारी मुलाकात डॉ. ओम प्रकाश जी अग्रवाल साहब 30.9.2001 से 8.10.2001 तक कल्प द्रुम महामण्डल विधान से हुई। आपने शास्त्र संरक्षण की बातें बताई कि जो शास्त्र गल गये का विशाल एवं भव्य आयोजन हो रहा है।
हैं, दीमक लग गई है, जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं, उन्हें सुधारा जा सकता
श्रीपाल जैन दिवा | है। हमने आपकी प्रयोगशाला में जाकर काम करने की पद्धति को देखा तीर्थ संरक्षिणी महासभा द्वारा जैन शास्त्रों के | तो हमें पूरा विश्वास हो गया कि बिगड़े शास्त्रों को सुरक्षित कर सकते संरक्षण हेतु कार्यशाला का आयोजन
हैं। श्री रावका जी ने समस्त जैन समाज से निवेदन किया कि अपनी
प्राचीन धरोहर को तन-मन-धन से बचायें। लखनऊ ।। अगस्त। प्राचीन तीर्थ/मंदिर/मूर्ति जीर्णोद्धार
तीर्थ संरक्षिणी महासभा के निदेशक श्री ज्ञानमल जी शाह ने कार्यों में संलग्न संस्था श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (तीर्थ संरक्षिणी)
| कहा कि महासभा ने गत तीन वर्षों में प्राचीन तीर्थों के जीर्णोद्धार कार्य महासभा ने आज अपने केन्द्रीय कार्यालय नंदीश्वर फ्लोर मिल्स,
की जवाबदारी ली है और किसी हद तक अपनी जवाबदारी संभालने ऐशबाग, लखनऊ के नवीन सेठी कांफ्रेंस हाल में प्राचीन शास्त्रों,
में सफल भी हुई है। उसका श्रेय समाज के सभी श्रेष्ठीगण को जाता पांडुलिपियों के संरक्षण हेतु इन्टेक के महानिदेशक डॉ. ओ.पी. | है, जिन्होंने महासभा के ध्येय को समझा व उसे सफल करने में पुरा अग्रवाल के निर्देशन में एक कार्यशाला का शुभारंभ किया। कार्यशाला
| योगदान दिया। आज भारत के हर प्रान्त में जीर्णोद्धार कार्य चालू है, का आयोजन || से 13 अगस्त तक किया गया। कार्यशाला का | जिसमें महत्त्वपूर्ण कार्य कर्नाटक, तमिलनाड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, 28 सितम्बर 2001 जिनभाषित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org