Book Title: Jinabhashita 2001 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ श्रमण संस्कृति की रक्षा व रक्षाबन्धन साल में चारित्र में प्रवेश कियों ने प्रलोभन मुनि पुगवार जी महाराज.ती की पुण्यधरा अनामया जी में ह ह हाडौती । यदन का राज्य मा का ससंघ चातुमानगरी कोटा में दारो तरफ हर्ष काम मुनि की आचार्य गुरुवर 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य | को 10,000 से भी ज्यादा श्रद्धालु अपनी आँखों से साक्षात देख मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज, क्षुल्लक 105 श्री | रहे थे, मुनिश्री ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि जैन गम्भीरसागर जी महाराज, क्षुल्लक 105 श्री धैर्यसागर जी महाराज | दर्शन में रक्षा बन्धन पर्व श्रमण संस्कृति के रक्षापर्व के रूप में मनाया का ससंघ चातुर्मास हाड़ौती की पुण्यधरा चर्मण्यवती नदी के तट पर | जाता है. इसके महत्त्व को विस्तार से बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि बसे औद्योगिक नगरी कोटा में दादावाड़ी नसियां जी में हो रहा है। चतुर्थ काल में चारित्रचूड़ामणि परमपूज्य अंकपनाचार्य ने ससंघ वर्षा इस चातुर्मास से कोटा नगर में चारों तरफ हर्ष का माहौल है हाड़ौती | योग के लिये हस्तिनापुर में प्रवेश किया तो वहाँ के पद्म राजा से सात की धरा कोटा में यह पहला अवसर है जब किसी मुनि की प्रवचन | दिन का राज्य माँगकर बलि आदि मंत्रियों ने प्रलोभन में, मुनियों को सभा में अपार जन मारने के लिये उनके समूह उमड़ रहा है। चारों तरफ अग्नि रविवार के दिन तो जला दी। निरन्तर समाज द्वारा की गई चारों तरफ आग बैठने की व्यवस्था की गर्मी से 700 भी कम पड़ जाती मुनिराज मूर्छित हो है। मुनि श्री अपने गये तब इनकी अंदाज में शास्त्र रक्षा हेतु अपनी युक्त प्रवचन से योग साधना का श्रावक को संस्का परित्याग करते हुए रित कर रहे हैं, कई वात्सल्यमूर्ति श्री बार तो प्रवचन सभा विष्णुकुमार जी 2 घंटे तक चलती महाराज ने उनकी है लेकिन श्रावक रक्षार्थ विक्रिया अभिभूत होकर ऋद्धि के प्रभाव से समय को भूल जाता बलि आदि मंत्रियों है। श्री दिगम्बर जैन को परास्त करके धर्म प्रभावना समिति के प्रचार संयोजक महेन्द्र कासलीवाल ने बताया | चारित्रचूड़ामणि परमपूज्य श्री अंकपनाचार्य आदि 700 मुनियों के कि पावन वर्षा योग में पूरे देश से जन सैलाब उमड़ रहा है जो देखते चरणों में नतमस्तक करवाया और उन्हें समीचीन धर्म का स्वरूप ही बनता है। जैन समाज कोटा ने इस बार मुनि श्री के सानिध्य में समझाकर सच्चा श्रावक बनाया। इसी उद्देश्य को लेकर परमपूज्य रक्षाबन्धन पर्व को एक अलग अन्दाज में मनाया, सभी श्रावक बन्धुओं मुनिपुगंव 108 श्री सुधासागर जी महाराज हम सभी श्रावकों में ने मंदिर प्रांगण में अपने अपने हाथों पर रक्षा सूत्र बाँधकर प्रतिज्ञा परमपूज्य अंकपनाचार्य आदि 700 मुनिराजों के प्रति बहुमान एवं की कि मुनियों की रक्षा के लिये अगर हमें प्राणों की आहुती भी देनी | श्रद्धा को जागृत कर 700 मुनियों को अर्घ समर्पित कराया। पड़े तो हम तैयार रहेंगे। तत्पश्चात् मुनिश्री के आह्वान पर सकल दिगम्बर । अन्त में मुनिपुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने सकल जैन समाज कोटा की ओर से 34 परिवारों ने (प्रत्येक परिवार की दिगम्बर जैन समाज से आये श्रावक बन्धुओं को सम्बोधित करते ओर से 700 श्रीफल) व सभी श्रावक बन्धुओं ने श्रीफल बादाम से हुए कहा कि इसी भांति हर वर्ष श्रमण संस्कृति के बहुमान हेतु अपने अर्थ समर्पित किये। इस तरह लगभग 25-30 हजार नारियलों से अपने नगरों, कस्बों में श्रमण संस्कृति रक्षा पर्व (रक्षाबंधन) को मनाये, अर्घ समर्पित किये। सभी 700 मुनीराजों के अ? का उच्चारण मुनि यही हमारे समाज की ओर से परमपूज्य अंकपनाचार्य आदि मुनिराजों श्री सुधासागर जी महाराज व क्षुल्लक 105 श्री गंभीरसागर जी महाराज के लिये सच्ची श्रद्धा होगी। अन्त में दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति व क्षुल्लक 105 श्री धैर्यसागर जी महाराज ने किया और मात्र 2 घंटों के कार्याध्यक्ष राजमल जी पाटोदी, मुख्य संयोजक हुकम जैन 'काका', में यह सारे अर्घ चढ़ाये। प्रचार संयोजक महेन्द्र कासलीवाल ने बताया महामंत्री श्री रमेश जैन तिजारिया, स्वागताध्यक्ष ऋषभ मोहिवाल, कि यह विश्व का प्रथम अवसर है जहाँ रक्षाबन्धन पर्व पर 25-30 महावीर मास्टर सा., राजमल सर्राफ, महावीर कोठारी आदि ने हजार श्रीफल श्रावकों के द्वारा समर्पित किये गये। नारियलों का ढेर उपस्थित सकल दिगम्बर जैन समाज का आभार प्रकट किया। मुनिश्री देखकर मानो ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात् मेरु पर्वत दिख रहा के द्वारा श्रमण संस्कृति पर यह चौथा आयोजन था जो अब तक के हो, यह अर्घ व श्रीफल चारित्रचूड़ामणि परम पूज्य अंकपनाचार्य आदि सभी रिकार्ड तोड़ चुका है। 700 मुनियों की रक्षा की स्मृति में समर्पित किये गये। इस पूरे दृश्य महेन्द्र कासलीवाल प्रचार संयोजक, श्री दिगम्बर जैन धर्म प्रभावन समिति, कोटा सितम्बर 2001 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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