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प्रसारित किये हैं, संभवतः ये लोगों की जानकारी में नहीं है। ये केवल मात्र सुझाव नहीं है, जब ये सुझाव रिपोर्ट का हिस्सा बनकर संसद के सामने आयेंगे, तब किसी पार्टी की या सांसद की हिम्मत नहीं होगी कि इनके विरोध में एक भी स्वर उठा पाये। ये सुझाव संविधान में संशोधन का रूप लेंगे एवं संविधान का स्थाई हिस्सा बन जायेंगे, जिन्हें हमारी सुप्रीम कोर्ट भी मान्यता देने में बाध्य हो जायेगी। जिन सुझावों का प्रतिकूल असर पड़ने वाला है, उनमें से कुछ इस प्रकार है संविधान के अनुच्छेद 15 (4) एवं 16 (4) के प्रावधान जो अभी मात्र सामर्थ्यकारी है, उन्हें आज्ञायक बना दिया जाये अर्थात् अनु. जाति एवं जनजाति के लिये पदों के आरक्षण के लिये प्रशासनिक दक्षता भी आवश्यक नहीं रहे। संविधान में समानता के अधिकार को सुरक्षित करने वाले अनुच्छेद 14 में नया खंड 14 (2) जोड़कर राज्य केन्द्र एवं राज्यों को यह सक्षमता प्राप्त हो जाये कि वह किसी भी व्यक्ति समूह, समुदाय समूह के लिये समानता का लक्ष्य दिखाकर उनके लिये कोई भी प्रावधान बना सके एवं उनके लिये कोई भी नीति या उपाय अमल में ला सके। ऐसा अधिकार तो सरकारों को पूर्णतः निरंकुश बना देने वाला है एवं पक्षपात का पूरा रास्ता खोल देगा और अदालतें कुछ भी नहीं कर सकेंगी। उच्च न्यायालय अर्थात् सभी हाईकोर्स में एवं सुप्रीम कोर्ट में अनु.जा. एवं अनु. ज. जाति के जजों की नियुक्ति सुनिश्चित कर दी जाये अर्थात् इन अदालतों में भी इन समुदायों को आरक्षण, इनके लिये कोटा व्यवस्था की जावे। इन अदालतों में न्यायाधीशों का विभिन्न जाति एवं समुदायों के आधार पर बँटवारा किया जावे। इसके अलावा वर्तमान संविधान समीक्षा आयोग के समक्ष विचाराधीन और भी सुझाव है । आरक्षण मुक्ति मोर्चा यात्रा की अगुवाई कर रहे हैं जस्टिस सौभाग्यमल जैन (दिल्ली), लक्ष्मण तिवारी, प्रमुख यात्रा संयोजक श्री बसंत कुमार बांगण, अध्यक्ष माहेश्वरी सभा श्री अनिल जैन, मांगीराम शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष अ.भा. ब्राह्मण महासभा, नरेन्द्र सिंह राजावत, राजकुमार जैन आदि हैं। (दैनिक भास्कर, जबलपुर, 10 सितम्बर 2001 से साभार)
जातिगत आरक्षण समानता के
अधिकार का हनन
जातिगत आरक्षण समानता के अधिकार का हनन है। राजनीतिक लाभ हेतु अस्त्र के रूप में उपयोग में लाई जा रही यह प्रणाली सामाजिक बुराईयों को जन्म दे रही है। प्रतिभायें निराशाजनक दौर से गुजर रही हैं और व्यवस्था का स्वरूप कमजोर हो रहा है। बेहतर यह है कि जाति विशेष को सेवा, मदद या अन्य मामलों में खुला आरक्षण देने की बजाय उन्हें अच्छी शिक्षा देकर और योग्य बनाने के प्रयास किये जायें।
ये विचार आरक्षण समाप्ति अभियान से जुड़े श्री एच. एस. श्रीवास्तव ने यहाँ एक संवाददाता सम्मेलन में व्यक्त किये।
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने आरक्षण को अल्पसमय के लिये अनुमति दी थी, लेकिन राजनैतिक स्वार्थों के चलते इसे 2010 तक बढ़ा दिया गया है।
संविधान समीक्षा आयोग के प्रस्तावित सुधारों के आधार पर अब तो इसे मूल अधिकार बनाया जा रहा है। इसके तहत आरक्षण सीमा को अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इससे सामान्य 30 सितम्बर 2001 जिनभाषित
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श्रेणी में आने वाली समाज की भावी पीढ़ी का भविष्य अंधकार में घिर जायेगा, योग्यता के बावजूद वे वाजिब हक से वंचित रह जायेंगे।
उन्होंने कहा कि एक ओर सरकार वर्णभेद को सामाजिक बुराई मानती है, वहीं आरक्षण प्रक्रिया के द्वारा समाज में स्वयं दीवारें बनाई जा रही हैं, इससे एकता और अखण्डता को खतरा पैदा हो सकता है। हीन भावना से ग्रसित होकर सामान्य वर्ग की प्रतिभायें उग्र स्वरूप भी धारण कर सकती है, आरक्षण का सामाजिक विरोध जरूरी है। समाजसेवी बद्रीप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि आरक्षण के बल पर आज अपात्र लोग भी उच्च पदों पर बैठे हैं, इससे व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। बेहतर यह है कि आरक्षण देने की बजाए सरकार व्यवस्था को सुधारें।
आरक्षित वर्ग के लिये सस्ती, सुलभ और बेहतर शिक्षा उपलब्ध करायें ताकि वे सक्षम होकर व्यवस्था को गति देने में मदद करें। इसका जो वर्तमान स्वरूप है वह राजनीति से प्रेरित व दुराभाव से भरा हुआ है।
उन्होंने बताया कि नई दिल्ली के संयुक्त संस्था मंच ने आरक्षण अभियान की शुरूआत की है। इसके अंतर्गत जनजागरूकता हेतु आरक्षण मुक्ति यात्रा निकाली जा रही है, इसका नगर आगमन 10 सितम्बर को हो रहा है, तिलवारा पुल पर इसका अपरान्ह 2.00 बजे भव्य स्वागत किया जायेगा।
शोभायात्रा का नेतृत्व जस्टिस सौभाग्यमल जैन, माँगीराम शर्मा, लक्ष्मण तिवारी समेत अन्य विद्वतजन कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार भगवतीधर वाजपेयी ने आरक्षण को बुराई निरूपित करते हुए इसके न्यायसंगत विरोध में एक साथ उठ खड़े होने का आव्हान किया है। ( नवभारत, जबलपुर 9 सितम्बर 2001 से साभार)
टीकमगढ़ जैन समाज का ऐतिहासिक निर्णय
कुरीतियाँ समाज के वास्तविक स्वरूप को समाप्त करती हैं। धर्म और संस्कृति की पहचान को धूमिल करती हैं। जैन समाज भी कुरीतियों के मकड़जाल में अपनी पहचान खोता जा रहा है। रात्रिकालीन शादियों और रात्रिकालीन सामूहिक भोज के आयोजन से जैन समाज जैनत्व की पहिचान खोता जा रहा है। इसलिए गाजर घास की तरह उगी कुरीतियों पर कुठाराघात होना चाहिए। यह विचार परमपूज्य आचार्य शिरोमणि 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री 108 समतासागर जी 108 प्रमाणसागर जी एवं ऐलक श्री 105 निश्चयसागर जी महाराज ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए अभिव्यक्त किये।
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डॉ. नरेन्द्र विद्यार्थी ट्रस्ट द्वारा अहिंसा वर्ष पर ट्राइसिकिल एवं वैशाखियाँ प्रदत्त
छतरपुर। इस वर्ष भगवान महावीर की 2600 वीं जयंती विविध आयोजनों के साथ अहिंसा वर्ष के रूप में मनाए जाने के तारतम्य में डॉ. नरेन्द्र विद्यार्थी चेरीटेबल ट्रस्ट, छतरपुर (म.प्र.) ने अध्ययनरत निर्धन विकलांग बच्चों को ट्राइसिकिल तथा वैशाखियाँ प्रदान कीं और उनके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना की । प्रगतिशील विकलांग संसार छतरपुर के तत्त्वावधान में निराश्रित व्यक्तियों को सायंकालीन निःशुल्क भोजन कराने की योजना का भी शुभारंभ हुआ। राकेश बड़कुल
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