Book Title: Jinabhashita 2001 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ आदर्शकथाएँ वाणी आदमी की पहचान यशपाल जैन एक बार एक राजा अपने मंत्री और सेवक के साथ वन-विहार को गया। बड़ा हरा-भरा रमणीक वन था। सघन वृक्षों के बीच जलाशय थे। पशु निर्भय होकर विचरण कर रहे थे। राजा वहाँ की दृश्यावली को देखकर मुग्ध रह गया। तभी उसे थोड़ी दूर पर एक हिरण दिखाई दिया। राजा ने अपना घोड़ा उस ओर बढ़ा दिया। हिरण ने यह देखा तो उसने चौकड़ी भरी। उसका पीछा करने के लिये राजा ने अपने घोड़े को एड़ लगाई। दौड़ते-दौड़ते राजा बहुत दूर निकल गया। उसे थकान हो गई और वह उस स्थान की ओर बढ़ा, जहाँ अपने मंत्री और सेवक को छोड़ आया था। उधार राजा बहुत देर तक नहीं लौटे तो मंत्री ने सेवक से कहा कि जाओ, राजा को खोजकर लाओ। सेवक चल दिया। थोड़ी दूर पर एक अंधे साधु अपनी कुटिया के बाहर बैठे थे। सेवक ने कहा, 'ओरे अंधे, इधर से कोई घुड़सवार तो नहीं गया?' साधु बोले, 'मुझे पता नहीं।' जब काफी देर तक सेवक नहीं लौटा तो मंत्री को चिन्ता हुई और वह राजा की खोज में निकल पड़ा। संयोग से वह उसी साधु की कुटिया पर आया और उसने पूछा 'ओ साधु, क्या इधर से कोई गया है?' साधु ने उत्तर दिया, “हाँ, मंत्रीजी, अभी यहाँ होकर एक नौकर गया है।' मंत्री आगे बढ़ गया। कुछ ही क्षण बाद स्वयं राजा वहाँ आया। उसने कहा, 'ओ साधु महाराज, इधर से कोई आदमी तो नहीं गये?' साधु ने कहा, 'राजन् पहले तो इधर से आपका नौकर गया, फिर आपका मंत्री गया और अब आप पधारे हैं।' इसके पश्चात् जब तीनों मिले तो उन्होंने उस साधु की चर्चा की। सबको आश्चर्य हुआ कि नेत्रहीन होते हुए भी साधु ने उन्हें कैसे पहचान लिया! वे साधु के पास गये और अपनी शंका उनके सम्मुख रखी। साधु ने मुस्कराकर कहा, 'आप सबको पहचानना बड़ा आसान था। आपके नौकर ने कहा, 'ओरे अंधे', मंत्री ने कहा, 'ओ साधु' और आपने कहा, 'ओ साधु महाराज'। राजन्! आदमी की शक्ल-सूरत से नहीं, बातचीत से उसके वास्तविक रूप का पता चलता है। आपके संबोधनों से आपको पहचानने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई।' लाख रुपये की बात शेख सादी के नाम से अधिकांश लोग परिचित हैं। उनकी कहानियाँ आज भी बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं और जीवन में उनसे शिक्षा मिलती है। शेख सादी के बचपन की एक घटना है। वह अपने पिता के साथ मक्का जा रहे थे। जिस दल में वह शामिल थे, उसका नियम था कि आधी रात को उठकर वे लोग प्रार्थना किया करते थे। ___ एक दिन रात को शेख सादी और उनके पिता उठे। उन्होंने प्रार्थना की, लेकिन कुछ लोग अब भी सो रहे थे। यह देखकर शेख सादी को बहुत बुरा लगा। उन्होंने अपने पिता से कहा, 'देखिये तो, ये लोग कितने काहिल हैं। प्रार्थना के समय किस तरह सोये पड़े हैं।' पिता ने लड़के की बात सुनकर उसकी ओर घूरकर देखा, फिर कहा, 'सादी, तू न जागता तो अच्छा होता। उठकर दूसरों की निन्दा करने से न उठना कहीं अच्छा है!' पिता की बात सुनकर शेख सादी बहुत लज्जित हुए और उस दिन के बाद उन्होंने कभी किसी की बुराई नहीं की। • • आचार्य श्री विद्यासागर के सुभाषित जहाँ पर तेरा-मेरा, यह-वह, सब विराम पा जाता है वस्तुतः वही अध्यात्म है। लेखक, वक्ता और कवि होना दुर्लभ नहीं है, दुर्लभ तो है आत्मानुभवी होना। सोचिये! स्वयं को छाने बगैर सारे संसार को छानने का प्रयास आखिरकार तुम्हारे लिये क्या देगा? मैं यथाकार बनना चाहता हूँ व्यथाकार नहीं, और मैं तथाकार बनना चाहता हूँ कथाकार नहीं। ‘सागर बूंद समाय' से उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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