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नारी लोक
जैन संस्कृति एवं साहित्य का मुकुटमणि कर्नाटक और
उसकी कुछ ऐतिहासिक श्राविकाएँ
प्रो. (डॉ.) श्रीमती विद्यावती जैन
तक वह स्वयं भी उस कार्य की दृढ़ संकल्पी माता कालल
समाप्ति पर्यन्त व्रताचरण, तप एवं देवी गतांक में कर्नाटक की ऐतिहासिक श्राविकाओं के
स्वाध्याय पूर्वक दिन व्यतीत करती कर्नाटक को दक्षिणांचल की। अंतर्गत विदुषी कवियित्री कन्ती देवी एवं दानचिन्तामणि रही और जब मूर्ति-निर्माण का कार्य अतिशय तीर्थभूमि के निर्माण का श्रेय | अत्तिमव्वे के यशस्वी जीवन पर प्रकाश डाला गया पूर्ण हुआ, तो भक्ति-विभोर होकर जिन यशस्विनी महिमामयी महि- था। प्रस्तुत अंक में अन्य तीन प्राचीन श्राविकाओं की
उसने सर्व-प्रथम देवालय-परिसर लाओं को दिया गया है, उनमें प्रातः स्वर्णिम कीर्तिगाथा प्रस्तुत है।
स्वयं साफ किया, धोया-पौंछा और स्मरणीया तार्थस्वरूपा माता कालल
देव-दर्शन कर अरिहनेमि तथा उसके देवी (10वी सदी) का स्थान सर्वो
परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया पार है। यह वह नारी है, जिसने पूर्वजन्म में
धन्य है. वह माता कालल देवी, | और अपनी सास-माता के पास जाकर गद्गद सुकर्म किये थे और फलस्वरूप वीर पराक्रमी
जिसके दृढ़ संकल्प और महती प्रेरणा से विश्व- वाणी में हर्षोत्फुल्ल नेत्रों से उन्हें उसकी सुखद सेनापति चामुण्डराय जैसे देवोपम श्रावकशिविश्रुत, रूप-शिल्प और मूर्ति-विज्ञान की
सूचना दी। रोमणि पुत्ररत्न की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त अद्वितीय कलाकृति को वीर सेनापति चामु
भक्त गुल्लिकाज्जयी किया था। ण्डराय ने निर्मापित कराया। उस सौम्य,
निष्काम भक्ति में कृत्रिम प्रदर्शन नहीं, वह प्रतिदिन शास्त्र स्वाध्याय के लिये
सुडौल, आकर्षक एवं भव्य-मूर्ति को देखकर दृढ़ प्रतिज्ञ थी। उसने एक दिन आचार्य
बल्कि मन की ऋजुता, कष्टसहिष्णुता एवं केवल जिनभक्त ही नहीं, सारा विश्व ही
स्वात्म-सन्तोष की जीवन-वृत्ति परमावश्यक अभिभूत है तथा उसका दर्शन कर अतिशय अजितसेन के द्वारा आदिपुराण में वर्णित
है। वैभव-प्रदर्शन में तो मान-कषाय की भव्यता एवं सौन्दर्य पर आश्चर्यचकित रह पोदनपुराधीश बाहुबलि की 525 धनुष उत्तुंग जाता है। इसे विश्व का आठवाँ आश्चर्य माना
भावना का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में हरित्वर्णीय पन्ना की भव्य मूर्ति का वर्णन सुना
अन्त नैहित रहना स्वाभाविक है। इसका और भावविभोर हो उठी। इसकी चर्चा उसने गया है।
सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, परमश्रेष्ठ गोम्मटेश की अपने आज्ञाकारी पुत्र से की और उसके दर्शनों धर्म परायणा अजितादेवी
मूर्ति के प्रथम महामस्तकाभिषेक के समय की की इच्छा व्यक्त की तो वह अपने हजार कार्य पूर्वजन्म के सुसंस्कारों के साथ-साथ |
वह घटना, जब वीरवर चामुण्डराय ने केशरछोड़कर अपनी माता की मनोभिलाषा पूर्ण महिला में यदि धर्मपरायणता एवं पति
युक्त शुद्ध दुग्ध के घड़ों के घड़े गोम्मटेश करने हेतु अपने गुरुदेव सि.च. नेमिचन्द्र के
परायणता का मिश्रण हा जाय, तो माहला के के महामस्तक पर उड़ेल दिये किन्तु वह साथ उस मूर्ति का दर्शन करने के लिये जिस अन्तर्बाह्य शील-सौंदर्य समन्वित
उनकी कमर से नीचे तक न आ सका। पंडित, तक्षशिला के पास पोदनपुर की यात्रा के लिये व्यक्तित्व का विकास होता है, उसी का चरम
महापण्डित, साधु, मुनि, आचार्य, उपस्थित निकल पड़ा। विकसित रूप था अजितादेवी (10वीं सदी)
राजागण सभी आश्चर्यचकित। अनेक उपाय यात्रा काफी लम्बी थी। चलते-चलते का।
किये गए कि महामस्तकाभिषेक सर्वांगीण हो, वे सभी कटवप्र के बीहड़वन में रात्रि-विश्राम वह गंग नरेश के महामंत्री एवं प्रधान किन्तु सभी प्रयत्न असफल एवं सभी लोग के लिये विरमित हो गये। रात्रि के अंतिम प्रहर सेनापति वीरवर चामुण्डराय की धर्मपत्नी थी। | निराश एवं उदास। अब क्या हो? किसी की में उन तीनों ने एक सदृश स्वप्न में देखा कि वह जितनी पतिपरायणा थी, उतनी ही | भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शुभएक देवी उन्हें कह रही है कि 'जहाँ तुम लोग धर्मपरायणा भी। उसके पति चामुण्डराय कार्य में यह विघ्न क्यों? यह कष्टदायी उपसर्ग विश्राम कर रहे हो, उसी के सामने वाली जब-जब प्रजाहित अथवा राष्टरक्षा के कार्यों क्यों? पहाड़ी के शिखरान पर एक अभिमंत्रित से बाहर रहते थे, तब उनके आंतरिक कार्यों
सभी की घोर मंत्रणा हुई। देर तक शरसन्धान करो। वहीं से तुम्हें बाहुबलि के की निगरानी की जिम्मेदारी उन्हीं की रहती थी।
आकुल-व्याकुल होते हुए यह निर्णय किया दर्शन हो जायेंगे।' प्रातःकाल होते ही धनुर्धारी कहते हैं कि जिस समय शिल्पि-सम्राट गया कि आज उपस्थित सभी भव्यजनों को चामुण्डराय ने शैल-शिला पर णमोकार-मन्त्र
अरिहनेमि अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर अभिषेक का अवसर प्रदान किया जाए। जो का उच्चारण कर शर-सन्धान किया और ऐसी
अहर्निश गोम्मटेश की मूर्ति के निर्माण में भी चाहे, मंच पर आकर महामस्तकाभिषेक अनुश्रुति है कि बाण के लगते ही पत्थर की
संलग्न था, तो अजितादेवी उसकी सुविधाओं | कर ले। परतें टूटकर गिरी और उसमें से गोम्मटेश का
का बड़ा ध्यान रखती थी। जब तक उस मूर्ति भीड़ में सबसे पीछे सामान्य धूमिल शीर्षभाग स्पष्ट दिखाई देने लगा। का निर्माण-कार्य पूर्ण सम्पन्न नहीं हुआ, तब | वस्त्र धारण किये हुए एक दरिद्र वृद्धा, जो बड़ी
-सितम्बर 2001 जिनभाषित 19
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