Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ अजंता, एल्लोरा या कोणार्क की शिल्प कलाकृतियों को भी लज्जित होना पड़ता है। मंत्रीश्वर वस्तुपालतेजपाल ने अपने जीवन काल में कुल 5000 जिनालयों का निर्माण करवाया एवं सवा लाख जिनबिंब भरवायें। एक भाई वह था जिसने मृत्यु की शय्या पर लेटे हुए भी अपनी अंतिम इच्छा के रूप में जिन मंदिर बनवाने की भावना प्रगट की और एक भाई वह था जिसने अपने भाई की इच्छा को पूर्ण करने के लिए अपने दिन-रात एक कर दिए। दोनों भाइयों के मन की शुभ भावना को देखकर मन कह उठता है कि “ भाई हो तो ऐसा”। प्रभु भक्ति की होड़ महामात्य वस्तुपाल एवं तेजपाल की बंधु-जोड़ी ने अपनी धर्मपत्नी ललितादेवी तथा अनुपमादेवी के साथ सात लाख यात्रिकों सहित गिरनारजी का छः री पालित संघ निकाला। कुछ दिनों में श्रीसंघ आबालब्रह्मचारी देवाधिदेव श्री नेमिनाथ प्रभु के चरणारविंद में पहुँच गया। प्रवेश के दिन महादेवी अनुपमा के शरीर पर कुल बत्तीस लाख सोना मोहरों के आभूषण शोभित हो रहे थे। जिनपूजा करते-करते अनुपमा के हृदय में प्रभु के प्रति ऐसे भाव आये कि मैं मेरे सर्वालंकार प्रभु के चरणों में चढ़ा दूँ। उसने एक साथ सर्व अलंकार उतारकर जल से शुद्ध कर प्रभु के चरणों में रख दिए। उसी वक्त एक करोड़ पुष्पों से परमात्मा की पूजा करके बाहर निकले हुए तेजपाल ने अनुपमा की भक्ति से खुश होकर बत्तीस लाख सोना मोहर खर्च कर अनुपमा को सर्व आभूषण नये बनवाकर देने का वचन दिया। अल्प समय में ही उसे सर्व अलंकार बनवाकर दिये । एकदम निरालंकार बनी हुई अनुपमा देवी पुनः सालंकार बनकर शोभित होने लगी। गिरनार की यात्रा पूर्ण कर सब युगादिदेव श्री आदिनाथ के दर्शन करने शत्रुंजय की ओर चले। चलतेचलते एक दिन सब पालीताणा नगर में आ पहुँचे। सुबह गिरिराज पर चढ़े। वहाँ नहा-धोकर पूजन सामग्री लेकर सब रंगमंडप में आ पहुँचे। जैसे-जैसे पूजा का वक्त नज़दीक आता गया महादेवी अनुपमा अपने हृदय पर काबू न रख पायी । “हे प्रभु! हे नाथ ! यह तो बता, तुझसे अधिक दुनिया में और कौन है ? मेरे प्यारे प्रभु ! तू ही मेरे लिये सर्वस्व है | मेरा जो कुछ है, वह तेरा ही है।” अनुपमा बोलती गयी और गले के हार, कान की बूटी, चूड़ियाँ, कंगन, कड़े, कुंडल, अंगुठियाँ एवं सोने का कटिसूत्र आदि अलंकार उतार कर क्षणभर में तो बत्तीस लाख सोना मोहरों के ये नये गहने भी प्रभु चरणों में समर्पित कर दिये। - देवरानी का भक्तिभाव देखकर जेठानी ललितादेवी का हृदय भी द्रवित हो उठा। वह भी गहने उतारने लगी। देखते ही देखते उसने भी बत्तीस लाख के आभूषण प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिये । देवरानी 004)

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 200