Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 10
________________ क्षायिक प्रीति भक्ति एवं विश्वमंगल का अनमोल नजराना - पद्मनंदी Caddis Q0P सुबह उठते ही जिनके मुख से सर्वे जीवों मोक्षे जाओ ये शब्द निकलते है वो है पद्मनंदी। प्रभु की प्रीति भक्ति जिनके जीवन में बचपन से ही थी। प्रभु की प्रीत से जीवन भी प्रभु के चरणों में समर्पित करने हेतु दीक्षा लेने की भावना हो गई थी लेकिन संयोग ऐसे बने कि माता-पिता की वृद्धावस्था एवं सेवा के कारण संयम मार्ग पर अग्रसर न बन सके। अत: आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर अपना जीवन प्रभु-भक्ति में समर्पित कर दिया। 15 वर्ष की उम्र से प्रतिदिन 6 घंटे प्रभु के साथ व्यतीत करने लगे। प्रभु प्रीत में से प्रभु के अभिषेक में इन्हें आनंद की अनुभूति होने लगी। पूर्व भव के कल्याणकों की साधना इस भव में उदय में आई हो इस तरह प्रभु की अभिषेक धारा विश्वमंगल में परिणमने लगी। पद्मनंदी का यह अभिषेक बाह्य न होकर चौद राजलोक के जीवों को मोक्ष में ले जाने की एक विशिष्ट प्रक्रिया रूप बन गया। इसका प्रमाण है इनके स्तवन। ___ उनकी दिनचर्या पर नज़र करे तो सुबह का नाश्ता मात्र 5 मिनिट में फिर प्रात: 8 बजे से 2 बजे तक प्रभु के अभिषेक के साथ कभी प्रभु के पंचकल्याणक की भावधारा चलती है, तो कभी गुणों को नमस्कार की भावधारा, कभी क्षपक श्रेणी, वीतरागता, केवलज्ञान के आनंद वंदन के भावों में, तो कभी सर्वे जीवों मोक्षे जाओ की विश्वमंगल धारा में मग्न बन जाते है। दोपहर का चाय-नाश्ता 5 मिनिट में निपटाकर प्रभु के स्तवन बनाते है या प्रभु प्रीति की प्यासी आत्माएँ इनके पास प्रभु महिमा सुनने आए तो उनके साथ प्रभु के स्वरुप दर्शन में ओत-प्रोत बन जाते है। शाम का भोजन 15-20 मिनिट में पूर्ण कर 6 से 8.30 बजे तक प्रभु भक्ति में लीन बन जाते है। इस प्रकार दिन में प्रभु के प्रति अहोभाव धारा से विश्व मंगल धारा चलती है। जब सो जाते है तब प्रभु के प्रीत की संवेदना में योग निद्रा में लीन बनते है। इस तरह शरीर संबंधी एवं व्यवहार संबंधी सारे कार्य शीघ्र पूर्ण कर अपनी भक्ति में सदा अप्रमत्त बने रहते है। प्रेम, उदारता, कारुण्य आदि गुण जिनके रोम रोम में ठाँस-ठाँस कर भरे हुए है। जब पालीताणा जाते है तब डोली करने के बाद यदि कोई दूसरा डोली वाला आ जाए तो उसे अपने चप्पल पकड़ने के लिए देकर उसे भी अपने साथ ले जाते है। आए हुए व्यक्ति को निराश नहीं करना, हर व्यक्ति को संतोष देना इनके जीवन का मूल मंत्र है। - सा. मणिप्रभाश्री

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