Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश [क्षु० जिनेन्द्र वर्णी] भावि मरणकी आशंकासे देवकीके छ. पुत्रोंको मार दिया (३४/७)। अन्तमें देवकीके वें पुत्र कृष्ण द्वारा मारा गया (१६/४५) । ४ श्रुताकंचन-१. सौधर्मस्वर्गका हवाँ पटल-दे० स्वर्ग/५३२, कंचन कूट वतारके अनुसार आप पाँचवें ११ अंगधारी आचार्य थे। समय-वी. व देव आदि-दे० कांचन। नि. ४३६-४६८ (ई० पू०६१-५६)-दे० इतिहास/४/४। कंजा-भरतक्षेत्र आर्य खण्डकी नदी-दे० मनुष्य/४। कंसक वर्ण-एक ग्रह -दे० ग्रह । कजिक व्रत-समय--६४ दिन । विधि-किसी भी मासकी कच्छ-१. भरत क्षेत्र आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । पडवासे प्रारम्भ करके ६४ दिन तक केवल कांजी आहार (जल व कच्छ परिगित-कायोत्सर्गका एक अतिचार-दे० व्युत्सर्ग/१। भात ) लेना। शक्ति हो तो समयको दुगुना तिगुना आदि कर लेना। नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप करना। (वर्द्धमान पुराण), (व्रत कच्छवद-पूर्व विदेहस्थ मन्दर वक्षारका एक कूट-दे० लोक/५/४५ विधान संग्रह/पृ० १००)। कच्छविजय-मान्यवान् गजदन्तस्थ एक कूट व उसका रक्षक देव कंटक द्वीप-लवण समुद्र में स्थित एक अन्तर्वीप-दे० मनुष्य/४।। -दे० लोक/५/४६ कंडरा-औदारिक शरीरमें कंडराओंका प्रमाण--दे० औदारिक/१/७ कच्छा -पूर्व विदेहका एक क्षेत्र-दे० लोक/५/२ । कच्छावती-पूर्व विदेहका एक क्षेत्र-दे० लोक/५/२ कदक-व. १३/५.३,२६/३४/१० हस्थिधरणट्ठमोद्दिदवारिबंधो कंदओ कज्जला-सुमेरु पर्वतके नन्दनादि वनों में स्थित वापियाँ णाम । हरिण-वाराहादिमारणदुमोद्दिदकंदा वा कंदओ णाम। -हाथी के पकड़नेके लिए जो वारिबन्ध बनाया जाता है उसे कंदक कहते -दे० लोक५/६॥ हैं। अथवा हिरण और सूअर आदिके मारनेके लिए जो फदा तैयार कज्जलाभा-कज्जलावत् । -दे० लोक/५/६ ॥ किया जाता है उसे कन्दक कहते है। कज्जली-एक ग्रह-दे० ग्रह। कंदमूल-१. भेद-प्रभेद--दे० वनस्पति/१ । २. भक्ष्याभक्ष्य विचार कटक-ध. १४/५,६,४२/४०/१ वंसकंबीहि अण्णोण्णजणणाए जे -दे० भक्ष्याभक्ष्य/४। किज्जति घरावणादिवारणं ढंकणहूँ ते कड्या णाम । बाँसकी कमदप-स.सि./७/३२/३६६/१४ रागोद्रेकात्महासमिश्रोऽशिष्टवाक्प्रयोग' चियोके द्वारा परस्पर बुनकर घर और अवन आदिके ढाँकनेके लिए कन्दर्पः। -रागभावकी तीव्रतावश हास्य मिश्रित असभ्य वचन जो बनायी जाती हैं, वे कटक अर्थात् चटाई कहलाती हैं। बोलना कन्दर्प है। (रा. वा./७/३२/१/५५६), (भ. आ./वि./१८०/३६८/९)। कटु कटु संभाषणकी कथंचित् इष्टता-अनिष्टता-दे० सत्य/२। कंदपदेव-मू. आ./११३३ कंदप्पभाभिजोगा देवीओ चावि आरण कट्ठ-पंजाब देश (यु. अनु./प्रा.३६/५० जुगल किशोर )। चुदोत्ति.../११३३ । -कन्दर्प जातिके देवोंका गमनागमन अच्युतकणाद-१. वैशेषिकसूत्रके कर्ता -दे० वैशेषिक । २. एक अज्ञानस्वर्ग पर्यन्त है। वादी-दे० अज्ञानवाद। कस-१. एक ग्रह-दे० ग्रह । २. तोलका एक प्रमाण-दे. गणित/- कण्व-एक अज्ञानवादी-दे० अज्ञानवाद । I/२/२ ३.(ह. पु./पर्व श्लो०) पूर्वभव सं०२ में वशिष्ठ नामक तापस कथंचित्-द्र सं./टी./अधिकार रकी चूलिका/५/६ । परस्परसापेथा (३३/३६)। इस भवमें राजा उग्रसेनका पुत्र हुआ (३३/३३)। क्षत्वं कथंचित्परिणामित्वशब्दस्यार्थः । परस्पर अपेक्षा सहित होना, मज्जोदरोके घर पला (१६/१६)। जरासंधके शत्रुको जीतकर जरा यही 'कथंचित् परिणामित्व' शब्दका अर्थ है। संधकी कन्या जीवशाको विवाहा ( ३३/२-१२,१४)। पिताके पूर्व व्यवहारसे क्रुद्ध हो उसे जेलमें डाल दिया (३३/२७)। अपनी बहन २. कथंचित् शब्दको प्रयोग-विधि व माहात्म्य देवकी वसुदेवके साथ गुरु दक्षिणाके रूपमें परिणायी ( ३३/२६)। -दे० स्याद्वाद/४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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