Book Title: Jainattva Kya Hai Author(s): Udaymuni Publisher: Kalpvruksha View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय प्राचीन काल से आज के अत्याधुनिक भौतिक युग में मनुष्य जीवन का रहस्य हमेशा हमारे मन और अन्तरात्मा में कौतुहल बनाये रहता है। भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के बीच एक साधारण मनुष्य को यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि आखिर सत्य क्या है ? संवाद के आधुनिक संसाधनों तथा आधुनिक भौतिक विज्ञान से हमें यह तो समझ आ ही चुका है कि संसार एक है मनुष्य जाति एक है अन्तर है तो मात्र क्षेत्र, परंपरा या विचारधारा का है। फिर यह प्रश्न उठता है कि आखिर मनुष्य जीवन क्या है ? क्या आत्मा का अस्तित्व है ? क्या हमारा जीवन मात्र, बचपन से जवानी तक शिक्षा, जवानी में सांसारिक भोग तथा वृद्धावस्था में वानप्रस्थ या धर्म या अन्य मतानुसार जीवन, यही है ? आज का आधुनिक विज्ञान बड़े पैमाने पर इस रहस्य की खोज में लगा हुआ है। हम भी इस विज्ञान की खोज की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इस रहस्य की गुत्थी सुलझ जाये। परन्तु हे देवानुप्रिय क्या हमने कभी वीतराग श्रमण भगवान महावीर के उस अलौकिक विज्ञान को जानने का प्रयत्न किया ? उसे जान कर नित नये प्रयोग किये ? उस वीतराग, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी महावीर के वचनों में संसार के समस्त रहस्यों के समाधान बिखरे पड़े हैं। आवश्यकता है तो मात्र उन्हें एक सूत्र में पिरोकर आज के संदर्भ में प्रस्तुत करने की जो आज की तार्किक पीढ़ी को सरलता से ग्राह्य हो जाये। इसी क्रम में एक सशक्त प्रयास प्रज्ञा महर्षि श्री उदय मुनि जी महाराज द्वारा इस संक्षिप्त पुस्तक में भगवान महावीर द्वारा उद्घाटित संसार के तत्व ज्ञान का सरल, संक्षिप्त और शास्त्र सम्मत सार वर्णित कर किया है। पाठक इसे भगवान महावीर द्वारा उद्घाटित उस विशाल ज्ञान-सागर को अनुभव करने का मात्र प्रयास मानें। भगवान महावीर द्वारा उद्घाटित महाराज श्री का यह प्रयास वन्दनीय है, अनुकरणीय अन्त में "कल्पवृक्ष" की स्थापना मात्र अरिहंतों की वाणी के प्रसार तथा उनकी तथा निर्गन्थों की पर्युपासना हेतु आध्यात्म योगी जिन शासन सूर्य प्रवर्तक श्री शान्तिस्वरूप जी महाराज की प्रेरणा-आशीर्वाद, भीष्म-पितामह,तपस्वीरत्न, राजर्षि श्री सुमति प्रकाश जी महाराज तथा हम सबके आदरणीय सम्मेदशिखर जी के अधिष्ठायक देव समकितधारी श्री भौमिया जी महाराज के पावन आशीर्वाद से हुई है। केवली भाषित धर्म की सर्वत्र प्रभावना तथा वैज्ञानिक अनुसंधान हो जो समस्त मनुष्य जाति को लाभान्वित करे। आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर करे यही हार्दिक मंगल भावना है। "कल्पवृक्ष" e-mail : kalpvraksha@gmail.com (3)Page Navigation
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