Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ एवं बौद्ध ग्रन्थों के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रन्थों यथा - वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत आदि में वनों में निवास करने वाली संन्यासीनियों के उल्लेख हैं किन्तु किसी प्रकार के भिक्षुणी संघ का अस्तित्व नहीं मिलता । जैन एवं बौद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना का विवेचन भी इसी अध्याय में है । भिक्षुणी संघ में प्रवेश को क्या योग्यताएँ थीं तथा नारियों के भिक्षुणी ( संन्यासिनी) बनने के क्या कारण थे- दोनों संघों के सन्दर्भ में इसका तुलनात्मक विवेचन किया गया है । द्वितीय अध्याय में भिक्षुणियों के आहार एवं वस्त्र सम्बन्धी नियमों की चर्चा की गयी है । तृतीय अध्याय में यात्रा एवं विहार ( उपाश्रय) सम्बन्धी नियमों का वर्णन है । इसी अध्याय में वर्षावास सम्बन्धी नियमों का भी उल्लेख है । चतुर्थ अध्याय में भिक्षुणियों के दैनिक कृत्यों का वर्णन किया गया है । पंचम अध्याय में भिक्षुणियों के शील सम्बन्धी नियमों का विवेचन है । षष्ठम अध्याय में संगठनात्मक एवं दण्ड प्रक्रिया सम्बन्धी नियमों की मीमांसा की गई है । सर्वप्रथम जैन भिक्षुणी संघ एवं बौद्ध भिक्षुणी - संघ की संगठनात्मक व्यवस्था का वर्णन किया गया है, तत्पश्चात् भिक्षुणियों से सम्बन्धित दण्ड प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है । अन्त में दोनों संघों के नियमों की समानता तथा अन्तर को स्पष्ट करते हुए उनकी विवेचना की गई है | सप्तम अध्याय में भिक्षुणियों तथा भिक्षुओं के पारस्परिक सम्बन्धों का चित्रण है । अष्टम अध्याय जैन एवं बौद्ध भिक्षुणी संघ के विकास एवं भिक्षुणियों की सामाजिक स्थिति से सम्बन्धित है । सर्वप्रथम जैन एवं बौद्ध भिक्षुणीसंघ के प्रसार की रूप-रेखा प्रस्तुत की गई है। इसमें अभिलेखों के माध्यम से भी जैन एवं बौद्ध भिक्षुणी संघ के प्रसार को दिखाने की चेष्टा की गई है । इसी सन्दर्भ में बौद्ध भिक्षुणी संघ के पतन सम्बन्धी कारणों की भी विवेचना की गई है । नवम अध्याय उपसंहार के रूप में है । इस अध्याय में भिक्षुणी - संघ के सामाजिक महत्त्व को प्रदर्शित किया गया है तथा इस तथ्य की विवेचना की गई है कि तत्कालीन युग में भिक्षुणी संघ की क्या उपयोगिता थी तथा उसका ऐतिहासिक महत्त्व क्या था । प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध को पूर्ण कराने का श्रेय आदरणीय गुरु डॉ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 282