Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ चक्रबोर्ति), अर्ली बुद्धिस्ट मोनासिज्म (सुकुमार दत्त), अर्ली मोनास्टिक बुद्धिज्म (नलिनाक्ष दत्त) आदि पुस्तकें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जिनमें श्रमण परम्परा का एक सम्यक् चित्र उपस्थित होता है, परन्तु इन पुस्तकों में भिक्षणियों एवं उनके संघ के नियमों का वर्णन अत्यन्त अल्प हआ है। इसी प्रकार हिस्ट्री ऑफ जैन मोनासिज्म (एस० बी० देव) में विद्वान् लेखक ने श्रमण-परम्परा के उद्गम को दिखाते हुये जैन भिक्षुओं के आचार सम्बन्धी नियमों की विस्तृत विवेचना की है साथ ही जैन भिक्षुणियों से सम्बन्धित नियमों का भी विवेचन किया है, परन्तु यह वर्णन संक्षिप्त है जिससे जैन भिक्षणियों का एक स्पष्ट चित्र उपस्थित नहीं होता । वीमेन अण्डर प्रिमिटिव बुद्धिज्म (आई० बी० हार्नर) तथा विमेन इन बुद्धिस्ट लिटरचर (बी० सी० ला) पुस्तकें केवल बौद्ध भिक्षुणियों से सम्बन्धित हैं। किसी भी पुस्तक में जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों के आचार-नियमों की तुलना का कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया गया । यह आवश्यक था कि लगभग एक ही काल में विकसित तथा एक ही श्रमणपरम्परा से सम्बन्धित इन दो महत्त्वपूर्ण भिक्षुणी-संघों के आचार नियमों का तुलनात्मक रूप से विवेचन किया जाये। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में दोनों धर्मों के भिक्षुणो-संघों का एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। उनके संन्यस्त जीवन के प्रत्येक पक्ष पर दोनों धर्मों की दृष्टि से प्रकाश डाला गया है । इस अध्ययन में बौद्ध भिक्षुणियों के सन्दर्भ में गुस्तव राथ द्वारा सम्पादित महासांघिक भिक्षुणी-विनय का प्रचर उपयोग किया गया है। थेरवादी तथा महासांघिक निकाय के नियमों की तुलना से हम बौद्ध भिक्षुणियों से सम्बन्धित मूल नियमों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस दृष्टि से इस पुस्तक का अभी तक किसी ने उपयोग नहीं किया था । प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में साहित्यिक साक्ष्यों के अतिरिक्त आभिलेखिक साक्ष्यों का भी बहुलता से उपयोग हुआ है। देश के विभिन्न भागों से प्राप्त इन अभिलेखों की सहायता से जैन तथा बौद्ध भिक्षुणी-संघ के प्रसार को प्रदर्शित किया गया है। भिक्षु-भिक्षुणी सम्बन्धों पर भी साहित्यिक एवं अभिलेखीय सामग्री के अध्ययन से प्रचुर प्रकाश पड़ता है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध नौ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में इस बात का विवेचन है ! कि महावीर एवं बुद्ध के युग के पूर्व किसी प्रकार के भिक्षुणी-संघ का अस्तित्व था या नहीं ? जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 282