Book Title: Jain Vidya evam Prakrit
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 6
________________ सम्पादकीय परिसंवाद ४ 'जनविद्या एवं प्राकृत' मार्च १९८१ में प्राकृत एवं जैनागम विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आर्थिक सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की निष्पत्ति है। इस संगोष्ठी में स्थानीय तीनों विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों के अतिरिक्त सुदूर दक्षिण से मैसूर, धारवाड़; राजस्थान से उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, लाडनूं; मध्यप्रदेश से इन्दौर, उज्जैन, जबलपुर, सागर, रीवा; बिहार से पटना, भागलपुर, वैशाली; उत्तरप्रदेश से लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, आगरा, रुड़की, मेरठ, उड़ीसा से भुवनेश्वर तथा दिल्ली के विद्वान् सम्मिलित हुए। समागत विद्वानों में जैन और बौद्ध श्रमणधारा के पारम्परिक शास्त्रीय विद्वानों के साथ ही प्राचीन भारतीय इतिहास, कला, संस्कृति, पुरातत्व, धर्म, दर्शन, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश भाषा और साहित्य, भाषाविज्ञान, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान तथा आधुनिक विज्ञान के मनीषी विद्वान् शामिल थे। संगोष्ठी के संयोजक-निदेशक के रूप में प्रारम्भिक वक्तव्य में मैंने कहा था कि “जहाँ तक हमारी जानकारी है पिछले पचास वर्षों में काशी में प्राकृत एवं जैनविद्या पर विचार करने के लिए ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के इतने विद्वानों का समागम प्रथम बार हो रहा है।" गत संगोष्ठी और इस प्रकाशन के अन्तराल में प्राकृत एवं जैनागम विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आर्थिक सहयोग से मार्च १९८७ में जनविद्या और प्राकृत के अध्ययन की दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर दो अन्य आयोजन सम्पन्न हुए१. जैनविद्या एवं प्राकृत का अन्तरशास्त्रीय अध्ययन संगोष्ठी तथा २. 'प्राकृत अध्ययन पाठ्यक्रम अल्पावधि सत्र'। ये आयोजन पिछले लगभग तीन दशकों में भारत के विभिन्न अंचलों में जैनविद्या और प्राकृत पर आयोजित संगोष्ठियों, सम्मेलनों, शिविरों आदि में विद्वानों द्वारा अभिव्यक्त विचारों के परिप्रेक्ष्य में अग्रिम चरण हैं। भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी में इस प्रकार के राष्ट्रीय आयोजनों की एक विशेष अर्थवत्ता है। परम्परागत शास्त्रीय अध्ययन के विद्याकेन्द्र सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में ऐसे आयोजनों की निजी सार्थकता है। यह विश्वविद्यालय परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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