Book Title: Jain Vidya 02 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 2
________________ मुखपृष्ठ चित्र परिचय इस अंक के मुखपृष्ठ पर जैनविद्या संस्थान के पाण्डुलिपि विभाग में उपलब्ध पुष्पदन्त की रचनाओं की दो पाण्डुलिपियों की अन्त्य प्रशस्तियों के चित्र प्रस्तुत किये गये हैं जिनका भाव निम्न प्रकार है 1. ऊपर - महापुराण । इस प्रति में 32x102 सेमी. के आकार के 398 पत्र हैं प्रशस्ति का भाव - यह प्रति संवत् 1391 विक्रमी की ज्येष्ठ कृष्णा नवमी गुरुवार को योगिनीपुर (दिल्ली) में सुल्तान महम्मदशाह के राज्यकाल में प्रयोतक ( अग्रवाल) रूपी आकाश में चन्द्रमा के समान स्व० महिपाल एवं उसके परिवारवालों ने ज्ञानावरणकर्मक्षयार्थ तथा भव्यजनों के पढ़ने के लिए लिखवाई थी तथा गौडान्वयी कायस्थ पंडित गंधर्व्व के पुत्र चाहड़- राजदेव ने इसकी प्रतिलिपि की थी । संवत् 1460 की वैशाख शुक्ला तेरस को खण्डिल्ल ( खण्डेलवाल ) वंश के गणपति के पुत्र खेमल ने भ० पद्मनंदिदेव के आदेश से गुणकीर्ति को प्रदान की । 2. नीचे - महापुराण । इसमें 292 x 1272 सेमी. के आकार के कुल 257 पत्र थे । प्रति सचित्र थी। इनमें से पत्र संख्या 14, 15, 56, 94, 96, 97, 104, 145, 168, 183, 201 एवं 255 नहीं हैं जिन पर चित्र थे । - प्रशस्ति का भाव यह प्रति वि० सं० 1461 के भाद्रपद कृ० नवमी बुधवार को योगिनीपुर में श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वय, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ मूलसंघ के भ० श्री रत्नकीर्तिदेव के पट्टधर रायराजगुरु मण्डलाचार्य वादीन्द्र त्रैविद्य परमपूजार्चनीय भ० श्री प्रभाचन्द्रदेव के पट्टधर अभयकीर्तिदेव प्रार्थिका क्षेमसिरि की प्रायिका अध्यात्मशास्त्ररसिरसिका भेदाभेदरत्नत्रयश्राराधक चारित्रपात्री भव्यजनप्रबोधक दीनदुष्टसंतापनिवर्तक चतुरासीजीवदयापर आत्मरहस्यपरिपूर्ण अजिंका धर्म्मसिरि नैगावे स्थानात् सहिलवालान्वये परमश्राविक एकादश प्रतिमाधारक सा० वीधू तस्य भार्या प्रियंवद गल्हो के पुत्र देवगुरुभक्त अनेक गुण संपूर्ण जीवदयातत्पर कुलमण्डलोपकारक धर्मकार्यविषयतत्पर सा० जोल्हा के सहोदर सा० सूढा, मोल्हा, धिरदेव । सा० जोल्हा की भार्या हरो के प्रथम पुत्र जिनपूजापुरन्दर सा० सतन 1 प्रशस्ति अपूर्ण है ।Page Navigation
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