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२१ देवाधिदेवः-पु. देवानामप्यधिदेवो देवाधिदेवः-देवताओं का भी देव होने से ईश्वर का नाम देवाधिदेव है।
२२ बोधिदः-पु. वोधिः जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिस्तां ददाति इति बोधिदःजिनप्रणीत शुद्ध धर्मरूप वोधि वीज का देने वाला होने से ईश्वर का नाम वोधिद है।
२३ पुरुपोत्तमः-पु. पुरुषाण उत्तमः पुरुषोत्तमः-पुरुषों के वीच सर्वोत्तमता को धारण करने वाला होने से ईश्वर का नाम पुरुषोत्तम है।
२४ वीतरागः-पु. वीतो गतोरागोऽस्मात् इति वीतरागः-अंगनादिके राग से रहित होने के कारण परमात्मा का नाम वीतराग है।
२५ श्राप्तः । पु. जीवानां हितोपदेशदातृत्वात् आप्त इव प्राप्तः-जीवों के प्रति हितोपदेश करने वाला होने से ईश्वर का नाम प्राप्त है, इस प्रकार श्रीअर्हन् देव के सार्थक अनेक नाम भव्य जनों के पाठ के लिये कथन किए गए हैं तथा इन नामों के द्वारा आत्म-विकाश करने के लिये भक्त जनों को परम सहायता प्राप्त हो जाती है। जिस प्रकार जीवन्मुक्त श्रीअर्हन् देवों का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार सिद्ध परमात्मा भी देव पद में गर्मित हैं । क्योंकिसिद्ध परमात्मा अजर, अमर, पारंगत, सिद्ध, वुद्ध, मुक्त, ज्ञानस्वरूप, सर्वज्ञ
और सर्वदर्शी है, वे ज्ञानात्मा द्वारा सर्व-व्यापक हो रहे हैं। यद्यपि द्रव्यात्मा उनका लोकाग्र भाग में स्थित है। परन्तु ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा और उपयोगात्मा द्वारा वे लोकालोक में व्यापक है. अतः सर्व पदार्थ उन के ज्ञान में व्याप्य हो रहे हैं। वे अनंत गुणों के धारी हैं केवल अर्हन् देव शरीरधारी होते हैं परन्तु सिद्ध भगवान् अशरीरी हैं । यदि ऐसे कहा जाय कि-सिद्ध परमात्मा और अहन् देवों में जव उक्त गुणों की साम्यता है तो फिर उनको अर्हन् देवों से पृथक् क्यों स्वीकार किया गया है ? इस के उत्तर में कहा जाताहै कि-अर्हन् देव तो ज्ञानावरणीय १, दर्शनावरणीय २, मोहनीय ३, और ४ अन्तराय इन चार कमाँ से मुक्त होकर केवल नान और केवल दर्शन अर्थात् सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होते हैं; परन्तु सिद्ध भगवान् बानावरणीय १, दर्शनावरणीय २, वेदनीय ३, मोहनीय ४, आयुष्य ५, नामकर्म ६, गोत्र कर्म ७ और अन्तराय कर्म ८, उक्त आठों कर्मों से रहित होते है। वे सदा निजानंद में निमग्न रहते हैं। योगीजन जव अंतिम श्रेणी पर पहुंचते हैं, तव उन्हीं को ध्येय बना कर अपने आत्मा की शुद्धि करते हैं। कारण कि-श्ररूपी आत्मा अपने शान द्वारा ही अरूपी पदार्थो को देख चा जान सकता है। अतएव सिद्ध श्रात्मा परम सुख की राशि हैं।
प्रश्न-हमने तो यह सुना हुअा है कि-जैन मत में जो चौवीस तीर्थकर देव हुए हैं, वे ही जैनों के ईश्वर परमात्मा हैं । इन के अतिरिक्त कोई भी ईश्वर