Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 303
________________ ( २७४ ) के अन्तःकरण में नाना प्रकार की भाषाओं के वर्षों की आकृतियां परस्पर एक रूप होकर ठहरती हैं उसी प्रकार मुक्तात्माएँ भी परस्पर आत्मप्रदेशों द्वारा सम्मिलित होकर विराजमान है । यदि कोई शंका करे कि जिस प्रकार एक पुरुष के अन्तः करण में भाषाओं के वर्गों की प्राकृतियां स्थित हैं, उसी प्रकार एक ईश्वर के रूप में अनेक मुक्तात्माएँ भी विराजमान कह सकते है ? इस के उत्तर में कहा जासकता है कि-जव सिद्ध पद अनादि स्वीकार किया गया तव सर्व सिद्ध परस्पर एक रूप होकर ठहरते हैं: क्योकिसिद्धात्मा पुद्गल से रहित स्वगुण में विराजमान है। कर्म क्षय का नाम ही मोक्षपद है कर्मफल का नाम मोक्षपद नहीं है । इसी लिये किसी एक जीव की अपेक्षा से सिद्धपद सादि अनंत मानागया है और बहुत से सिद्धों की अपेक्षा से सिद्धपद अनादि अनन्त प्रतिपादन किया गया है । अतः सिद्ध भगवान् अपुनरावृत्ति वाले होते है-कारण कि-बद्ध आत्माएँ स्थिति युक्त होते हैं, न तु मुक्तात्मा । लौकिक पक्ष में भी देखा जाता है कि जो आत्माएँ दुष्ट कर्मों के प्रभाव से कारागृह में जाती हैं उनकी तो स्थिति वांधी जाती है. परन्तु जव वह कारागृह का दंड भोग कर मुक्त होती हैं तव राजकीय पत्र आदि (गैज़ट) में फिर यह नहीं लिखा जाता कि-अमुक आत्मा अमुक दिन कारागृह से मुक्त की गई अथवा अमुक समय पर फिर कारागृह में आएगी। अतएव सिद्ध हुआ कि-मुक्तात्मा का फिर संसार में आगमन युक्तियुक्त नहीं है, यदि कोई कहे कि यदि मुक्तात्माएँ फिर संसार में नहीं आएँगी तो संसारचक्र में जीवों का अस्तित्व भाव नहीं रहेगा। कारण कि जिस पदार्थ का समय २ पर व्यय ही हो रहा है उस की समाप्ति अवश्य मानी जायेगी? इस शंका के उत्तर में कहा जासकता है कि-श्रात्मा (जीव)अनंत है और जो अनंत पदार्थ है उसका कदापि अंत नही होसकता. क्योंकि-- यदि अनंत का भी अंत माना जायगा तव उस पदार्थ का अंत आजाने से. अनंत न कहना चाहिए। यदि तर्फ किया जाए कि-काल द्रव्य भी तो अनंत है क्योंकि-अनंत काल अनंत पदार्थ को लेलेगा ? इसके उत्तर में कहा जासकता है कि ईश्वरकर्तृत्ववादियों ने माना हुआ है कि-अनंतवार ईश्वर परमात्मा ने सृष्टि उत्पादन की और अनंत ही वार सृष्टि का प्रलय किया ॐ नाट-जो लोग मोक्ष से पुनरावृत्ति मानते हैं. वास्तव में उन लोगो ने स्वर्ग को ही मोक्ष समझा है । क्योकि-स्वगायात्मा पुनरावृत्ति करता रहता है और उन, लोगों की मोक्षावधि जो मानी हुई है उस अववि से जनसूत्रकारों ने स्वर्ग की अवधि कई गुणा अधिक प्रतिपादन की है।

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