Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 315
________________ ( २६१ ) जाता है तव उस जीव का देवगति परिणाम कहा जाता है। इस कथन करने का सारांश इतना ही है कि उक्त चारों गतियों में जीव का परिणत होना प्रतिपादन किया गया है। अव इसके अनन्तर सूत्रकार इन्द्रिय परिणाम विषय कहते हैं जैसेकि इंदियपरिणामेणं भंते कतिविधे प. १ गोयमा ! पंचविधे प.त. सोतिदियपरिणामे चक्दियपरिणाम घाणिदियपरिणामे जिभिदियपरिणामे फासिंदियपरिणामे। भावार्थ हे भगवन् ! इन्द्रिय, परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! इन्द्रिय परिणाम पांच प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकि-श्रुतेन्द्रिय परिणाम, चक्षुरिन्द्रिय परिणाम, घ्राणेन्द्रिय परिणाम, रसनेन्द्रिय परिणाम और स्पर्शेन्द्रिय परिणाम । उक्त पांचों इन्द्रियों में जीव का ही परिणमन होता है । इसीलिये फिर जीव उक्त पांच इन्द्रियो द्वारा पदार्थों के वोध से वोधित हो जाता है। यदि ऐसे कहा जाए कि-जव श्रुतेन्द्रिय शब्दों को नहीं सुन सकता अर्थात् वधिर हो जाता है तो क्या उस समय उस इन्द्रिय में जीव का परिणमन नहीं होता । इसके उत्तर में कहा जाता है कि-जीव का परिणमन तो अवश्यमेव होता है, परन्तु श्रोत्रविज्ञानावरण विशेष उदय में आजाता है। इसी कारण वह वधिर होता है। क्योकि यदि जीव का परिणमन न माना जाय तो क्या वह शस्त्रादि द्वारा छेदन किये जाने पर दुःख नहीं अनुभव करता है। अवश्यमेव अनुभव करता है। अतएव सिद्ध हुआ कि इसी प्रकार पांचों इन्द्रियों में जीव परिणत हो रहा है । आत्मा असंख्यात प्रदेशी होने पर लर्व शरीर में व्यापक हो रहा है इसलिये उसका परिणत होना स्वाभाविक वात है । साराँश इतना ही है कि-जो पांचों इंद्रियों द्वारा ज्ञान होता है वही जीवं परिणाम कहा जाता है क्योंकि-जीव के परिणत हुए विना ज्ञान किस प्रकार प्रगट हो ? अतएव जीव परिणाम पांचों इंद्रियो द्वारा किया जाता है। अवसूत्रकार इंद्रिय परिणाम के पश्चात् कषाय परिणाम विषय कहते हैं: कसाय परिणामेणं भंते कतिविधे प.? गोयमा! चउविहे प. तं.कोहकसायपरिणामे माणकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोहकसाय परिणाम। भावार्थ हे भगवन् ! कषाय परिणाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? हे गोतम ! कषाय परिणाम चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसेकि-क्रोध कपाय परिणाम, मानकपाय परिणाम, मायाकषाय परिणाम

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