Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 305
________________ ( २८१ ) प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् ! क्या अकर्मक जीवों की भी गति स्वीकार की जाती है ? इस पर श्री भगवान् उत्तर प्रदान करते हैं कि-हाँ, गौतम ! अकमक जीवों की भी गति स्वीकार की जाती है। जव श्री भगवान् ने इस प्रकार से उत्तर प्रतिपादन किया तव श्री गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया किहे भगवन् ! किस प्रकार अकर्मक जीवों की गति मानी जाती है ? तव श्री भगवान ने प्रतिपादन किया कि हे गौतम ! कर्ममल के दूर होने से, मोह के दूर करने से, गति स्वभाव से, बंधनछेदन से, कन्धन के विमोचन से, पूर्व प्रयोग से, इन कारणों से अकर्मक जीवों की गति जानी जाती है। अय उक्त कारणों से दृष्टान्तों द्वारा स्फुट करते हुए शास्त्रकार वर्णन करते हैं। से जहानामए-केइ पुरिसे सुकं तुंवं निच्छिडं निरुवहयंति आणुपुवीए परिकम्मेमाणे २ दब्भेहिय कुसेहि य वेढेइ २ अहहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ २ उण्हे दलयति भूति २ सुकं समाणं अत्थाह मतारमपोरसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! से तुंचे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गुरुपत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए सलिलतलमतिवइत्ता अहेघरणितल पठाणे भवइ ?, हंता भवइ, अहेणं से तुवे अट्ठएहं मट्टियालेवेणं परिक्खएणं धरणितलमतिवइत्ता उप्पि सलिलतलपइठाणे भवइ ?, हंता भवइ, एवं खलु गोयमा! निस्संगयाए निरंगणयाए गइ परिणामेणं अकम्मस्स गई पन्नायति । भावार्थ- श्रीभगवान् गौतमस्वामी को उक्त विषय पर दृष्टान्त देकर शिक्षित करते हैं, जैसे कि हे गौतम ! कोई पुरुप शुष्क [सुक्का तुंबा जो छिद्र से रहित, वातादि से अनुपहत उसको अनुक्रम से परिक्रम करता हुआ दर्भ कुशा से वेटन करता है फिर आठ वार मिट्टी के लेप से उसे लेपन देता है। फिर उसे वारम्बार धूप में सुखाता है। जव तुंवा सर्व प्रकार से सूख गया फिर अथाह और न तैरने योग्य जल में उस तुवे को प्रक्षेप करता है, फिर हे गौतम ! क्या वह तुवा जो उन आठ प्रकार के मिट्टी के लेप से गुरुत्वभाव को प्राप्त होगया है और भारी होगया है, अतः गुरुत्व के भार से पानी के तल को अतिक्रम करके नीचे धरती के तल में प्रतिष्ठान नहीं करता है ? भगवान् गौतम जी कहते हैं कि-हाँ, भगवन् ! करता है अर्थात् पानी के नीचे चला जाता है। पुनः भगवान् वोले कि हे गौतम ! क्या वह तुंवा आठ मिट्टी के लेपों को परिक्षय करके धरती के तल को अतिक्रम करके जल के ऊपर नही आजाता है ? इसके उत्तर में गौतम स्वामी जी कहते हैं कि-हाँ भगवन् !

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