Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ ( २५३ ) । २ जीवतत्त्व - जिस में जीवतत्त्व के लक्षण न पाए जायँ, उसी का नाम अजीवतत्व है अर्थात् वीर्य तो हो परन्तु उपयोग शक्ति जिस में न हो उसी का नाम अजीवतत्त्व है । जीवतत्व के गुणों से विवर्जित केवल जड़ता गुण सम्पन्न अजीवतत्त्व माना जाता है । क्योंकि यद्यपि घटिकादि पदार्थ समय का ठीक २ ज्ञान भी कराते हैं, परन्तु स्वयं वे उपयोग शून्य होते हैं । अतएव धर्म, धर्म, आकाश, काल, पुद्गल ये सब जीवतत्त्व में प्रतिपादन किये गए है; किन्तु धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये सब अरूपी अजीव कथन किये गये हैं । श्रपितु जो पुद्गलद्रव्य है वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त होने से रूपी द्रव्य माना गया है । इस लिये यावन्मात्र पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं वे सव पुद्गलात्मक हैं । पुद्गल द्रव्य के ही स्कध, देश, प्रदेश और परमाणुपुद्गल संसारी क्रियाएँ करते है। इन्हीं का सब प्रपंच होरहा है क्योंकि - पुद्गल द्रव्य का स्वभाव मिलना और बिछुड़ना माना गया है, इस लिये प्रायः पुद्गल द्रव्य ही उत्पाद, व्यय और धौव्य गुण युक्त प्रत्यक्ष देखने में आता है। सो इसी को रूपी अजीव द्रव्य कथन किया गया है । ३ पुण्यतत्त्व - जो संसारी जीवों को संसार में पवित्र और निर्मल करता रहता है उसी को पुण्यतत्त्व कहते हैं । क्योंकि - शुभ क्रियाओं द्वारा शुभ कर्म प्रकृतियों का संचय किया जाता है । फिर जब वे प्रकृतियां उदय में आती हैं तब जीव को सब प्रकार से सुखों का अनुभव करना पड़ता है । सो उसी को पुण्यतत्त्व कहते हैं । किन्तु वे पुण्यप्रकृतियां नव प्रकार से बांधी जाती हैं जैसेकि - अन्नपुण्य - अन्न के दान करने से । १ । पानपुण्य- पानी (जल) के दान से | २ | लयनपुण्य - पर्वतादि में जो शिलादि के गृह बने हुए होते हैं तथा प्रर्वत मे कृत्रिम गुहादि के दान से | ३ | शयनपुण्य- :- शय्या वसति के दान से | ४ | वस्त्रपुण्य - वस्त्र के दान से । ५ । मनोपुण्य - शुभमनोयोग प्रवर्त्ताने से । ६ । वचनपुण्य - शुभ वचन के भाषण से । ७ । कायपुण्य-काम के वश करने से । नमस्कारपुण्य-नमस्कार करने से । । सो उक्त नव प्रकार से जीव पुण्य प्रकृतियों का संचय करता है जिस के परिणाम में वह नाना प्रकार के सुखों का अनुभव करने लग जाता है और संसार पक्ष में वह सर्व प्रकार से प्रायः प्रतिष्ठित माना जाता है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335