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जन सिद्धान्त दीपिका
१५. गन्द, बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप, उद्योत. प्रभा आदि पुद्गल के धर्म है।
पुद्गलों का संघात और भेद होने से जो ध्वनिरूप परिणमन होता है, उसे शब्द कहते है। वह दो प्रकार का है-- प्रायोगिक और वैनसिक । किमी प्रयत्न के द्वारा होने वाला शब्द प्रायोगिक है । यह दो प्रकार का है-भाषात्मक और अभापामक । म्वभावजन्य शब्द को वस्खसिक कहते हैं, जैसे---- मेघ का शब्द म्वाभाविक है।
प्रकाराला में शब्द के तीन मंद किए जाने है, जैसे . जीव शब्द, अजीवशब्द और मिश्रशन्द ।
पद अमू-आकाश का गुण नही हो सकता, क्योंकि इस धान्द्रिय के द्वारा ग्रहण किया जाता है। श्रोत्रन्द्रिय के दाग अमनं विषय का ग्रहण नही हो मकना । इममे यह मिद्ध होता है कि शन्द मूनं है । मूनं द्रव्य अमूर्त आकाश का गुण नहीं हो सकता।
मण्लप ---मिलने को बाध कहते है। इसके भी दो भेद है. प्रायोगिक और वैमिकः । प्रायोगिक बन्ध मादि और बमिक बन्ध मादि और अनादि दोनों प्रकार का होता है।
मोमय भी दो भेद है अन्तिम मूक्ष्म, जैम-- परमाणु । आपक्षिक मूक्ष्म, जैमें .. नारियल की अपेक्षा आम छोटा होता है।
म्यौल्य भी दो प्रकार का है .. अन्तिम स्थल, जैसे-- ममूचे लोक में व्याप्त होनेवाला प्रचित्त महाम्कन्ध । आपक्षिक स्थल, जमे आम की अपेक्षा नारियल बड़ा होता है।
मम्थान का अर्थ है--- आकृति । वह दो प्रकार का होता है। इन्यम्थ---नियन आकार वाला, जैसे- चतुष्कोण आदि । अनिन्धम्थ-अनियत आकार वाला।