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जैन सिदान्त दीपिका
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मन के सामान्य बोध को अचक्षु दर्शन कहते हैं।
अवधि और केवल के सामान्य बोध को क्रमशः अवधि दर्शन और केवलदर्शन कहते हैं।
मनःपर्याय से केवल मन की अवस्थाएं जानी जाती हैं और वे अवस्थाएं विशेष होती हैं अतः मनःपर्याय का दर्शन नहीं होता।
२७. जिनके द्वारा अपने-अपने नियत विषय-शब्द आदि का ज्ञान
होता है, उसे इन्द्रिय कहते हैं ।
२८. इन्द्रिय पांच है : (१) स्पर्शन
(२) रसन (३) प्राण
(४) चक्षु (५) श्रोत्र
२९. प्रत्येक इन्द्रिय के दो-दो भेद होते है :
(१) द्रव्य-इन्द्रिय (२) भाव-इन्द्रिय
३०. व्यन्द्रिय दो प्रकार का होता है :
१. निवृत्ति-इन्द्रिय २. उपकरण-इन्द्रिय
इन्द्रियों की बाए एवं बाभ्यन्तर आकृतियों को नितिइन्द्रिय कहते हैं, जैसे-कर्णन्द्रिय की बाप बाकृति कणंशकुनी है और उसकी बान्तरिक आकृति कदम्ब के फूल बसी होती है।