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बन सिदान्त दीपिका
वेदनीय को अपेक्षा से) नाम और गोत्र की आठ मुहूर्त और प सब कर्मों की अन्तर्मुहूर्त की होती है।
एक कोडाकोड़ सागर की स्थिति के पीछे सौ वर्ष का अबाधाकाल होता है अर्थात् सौ वर्ष तक वह कर्म उदय में नहीं आता।
८. कर्मों के विपाक को अनुभाग बन्ध कहते हैं। ___रस, अनुभाग, अनुभाव और फल-ये सब एकार्यवाची शब्द हैं । विपाक दो प्रकार का होता है--तीव्र परिणामों से बंधे हुए कर्म का विपाक तीव्र और मन्द परिणामों से बंधे हुए कर्म का विपाक मन्द होता है।
यद्यपि कर्म जड़ हैं तो भी पथ्य एवं अपथ्य आहार को नरह उनमे जीवों को अपनी क्रियाओं के अनुसार फल की प्राप्ति हो जाती है । कर्म-फन भुगताने के लिए ईश्वर की कलना करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
६. कर्मों के दल-मंचय को प्रदेशबन्ध कहते हैं।
१०. शुभ कर्म को पुण्य कहते हैं।
सात वेदनीय आदि शुभकर्मों को पुण्य कहा जाता है।
११. अणुभ कर्म को पाप कहते हैं।
ज्ञानावरण आदि अशुभ कर्मों को पाप कहा जाता है।
१. यह नियम आयुष्य कर्म पर लागू नहीं होता।