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जैन सिमान्त दीपिका
(२) वर्षावग्रह
म्यम्बन केरा पचन के ग्रहण-अव्यक्त भान को पचनावग्रह कहा जाता है।'
म्यम्बनावग्रह की अपेक्षा कुछ व्यक्त किन्तु जाति, इम्य, गुण आदि की कल्पना से रहित जो अयं का ग्रहण होता है, उसे अविग्रह कहा जाता है, जैसे—यह कुछ है।'
११. 'अमुक होना चाहिए' इस प्रकार के प्रत्यय को ईहा कहा जाता है।
यह पदार्थ अमुक है या दूसरा? यह संशय है, जो अवग्रह और ईहा के बीच में होता है । इसके पश्चात् अन्वय-व्यतिरेक (विधि निषेध) पूर्वक 'अमुक होना चाहिए' इस प्रकार के प्रत्यय को ईहा कहा जाता है, जैसे—यह शब्द होना चाहिए।
१२. 'अमुक ही है ऐसे निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय कहा जाता है,
जैसे-यह गन्द ही है।
१. व्यञ्जन के द्वारा व्यञ्जन का अवग्रह, इममें मध्यमपद का लोप
करने पर व्यञ्जनावग्रह शब्द सिद्ध होता है। इसकी स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है।
२. अर्थावग्रह की स्थिति एक समय को है।
३. अवग्रह निर्णयोन्मुख है इसलिए प्रमाण है । मनध्यवमाय निर्णयो
न्मुख नहीं है, अतः वह प्रमाण नहीं है।