________________
महतो भगवन्त इनहिताः सितारण सिडिस्थिता। माचार्या जिनशासनोप्रतिकराः पूना उपाध्यायकाः ॥ श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा रत्नबया-राधकाः।
पंचते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलं ॥ (इन्द्रों द्वारा पूज्य भगवान् अग्हंन, मिति (अप्टगुण म्प सम्पन्नता) में स्थिति मिद परमेष्ठि, जिनशामन के उन्नतिकारक आचार्य, मिदान्त के पाठक उपाध्याय और गन्नत्रय (मम्यग्दर्शन, मम्यग्जान, मम्यक् चारित्र) के धारक मुनिवर ! माधु परमेष्टी ! प्रतिदिन नुम्हारे (हमारे भी) मंगल को करें।)
'अहा सिद्धापरिया उनमाया साहु पंचपरमेट्ठी। ते बिहु बिहि आवे तम्हा आता हु मे सरणं ॥
-आचार्य कुन्दकुन्द, मोमपाइ ६।१०४ (अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और माध ये पांच परमेष्ठी हैं। ये पांचों परमेष्ठी भी जिम कारण आत्मा में स्थित हैं, वह कारण आत्मा ही मेरे लिए गरण हो।)
ते धन्ना जिजधम्म जिविलु सम्बदुक्याणासपरं। परिवजा विधिनिया विसुखमणसा गिरावेता॥
-भगवती माराधना ('जिन्होंने निर्मल मन से, निस्पह होकर, धैर्य धारण कर सर्व दु:खों का अन्त करने बाला वृषभदेव और महावीर प्रतिपादित 'जिनधर्म' धारण किया है, वे पुरुष धन्य हैं।')
U