Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 13
________________ FOR (अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के मौजन्य से प्राप्त) णमो अरहंताणं अरहंतों को नमस्कार णमो सिद्धाणं सिद्धों को नमस्कार णमो आइरियाणं आचार्यों को नमस्कार णमो उबजमायाणं उपाध्यायों को नमस्कार णमो लोए सव्वसाहणं लोक में सर्वसाधुओं (श्रमण मुनियों) को नमस्कार माहात्म्य एमो पंच णमोकारो मव्व पावप्पणामणो। मंगलाणं व ममि पढमं हवई मंगलं ।। (यह पंच नमकार (मंत्र) मवं पापा की निजंग करने वाला है और ममगला में प्रथम, उत्तम मंगल है।) जिणमामणस्म मारो चउरमपुज्वाण जो ममदागे। जस्म मणे णमोकारो समारो नस्य किं कुणई ॥ (अपर्गाजत महामन्त्र णमोकार 'जन गामन' का मार है और चौदह पूर्व जिनागम का सम्यक-ममानोन उद्धार है. ऐसे महामन्त्र गमांकार जिमकं चिन में महा स्थित है. मनार-मागर उमका क्या बिगाड़ मकना है, अर्थात् कोई अनिष्ट नहीं कर मकना।)

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