Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 19
________________ प्रतीक चिह स्वस्तिक "स्वस्तिक भी एक रहस्यमय प्रतीक है। इसका उद्भव भारतीय संस्कृति में भी पूर्व हुआ था। ऋग्वेद मबमे प्राचीन है। उसमें जहां तहां म्वस्तिक का विवरण है। विद्वानों की धारणा है कि स्वस्तिक की उत्पनि ऋग्वेद में भी प्राचीन है।" "स्वस्तिक शब्द 'मु-अस' धातु मे बना है। 'सु' का अर्थ है मुन्दर-मंगल और 'अम्' अर्थात् अस्तित्व या उपस्थिति । तीनों लोकों, तीनों कालों तथा प्रत्येक वस्तु में जो विद्यमान हो. वही मुन्दर-मंगल-उपस्थिति का स्वरूप है-यही भावना है स्वस्तिक की।" चतुर्गति नामांकन और उन्नति-वर्शक भावपूर्ण प्रतीक जैन-शामन स्वस्ति-कल्याणमय है। इसका प्रतीक ग्वग्निक भी तदनम्प है। म्वनिक चिह्न अपना महन्वपूर्ण स्थान रखता है। म्वग्निक का भाव है--ग्नि कगतीति विस्तिक: अर्थात् जो म्वम्नि-कल्याण को करे। प्रत्येक शुभ कार्य में स्वग्निफादर्शन का महन्व है। यह मंमार में मुक्ति तक की मभी अवस्था की ओर प्राणियों का ध्यान आकर्षित करता है । देव, मनुष्य, तियंच और नारक ये चार गतियां हैं, जिन्हें यग्निक के चारों कोण इंगित करते हैं। तीन बिन्दु मोक्षमार्ग के मागंभूत मम्यग्दर्णन, मम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र को लक्षित करते हैं और अर्धचन्द्र मिशिला का प्रतीक है। इस प्रकार जन-गासन का फलित रूप स्वस्तिक के द्वाग मनं म्प मे मामने आ जाता है और हमें मंमार में उठकर मोक्ष के प्रति उद्यमशील होने का पाठ पढ़ाता है। अनः इमं ग्वग्निक नाम दिया गया है। यह सर्वथा मगलकारी है। ग्वग्निक के सम्बन्ध में प्रसिदि है कि-- 'नर-मुर-तिरंड नारक योनिए परिभ्रमति जीव लोकोऽयम् । कुराला स्वस्तिक रचनेतीव निदर्शयति धीराणाम् ॥' -यह जीव इस लोक में मनुष्य, देव, नियंञ्च तथा नारकः योनियां (चतगतिक) में परिभ्रमण करता रहता है, मानोइमी को म्वग्निक की कुणन ग्चना व्यन करती है।' नित्य शुभ मंगल म्वम्निक चिह्न जन-धर्म का 'आदि चिह्न है और उनके दाग प्रनिनिन्य इमका ना कायों में प्रयोग किया जाता है। यह चिह्न जैन-धर्म के प्रन्या एवं मन्दिग में अधिक दिखाई पड़ना है। नियों की अक्षत-गृजा में यह चिह्न आज भी बनाया जाता है। १काम्बनी-श्री अनवर आगंवान, नवम्बर १९ER.प. :-उदीमा में जन-धर्म, डा. नानीनागयण माह, पृ. १५

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