Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 22
________________ महन किरणों वाले धर्मचक्र का वर्णन किया है, जो नीथंकरों के आगे-आगे चलता है। इनके अतिरिक प्राचीन कलाकृतियों में जिन बिम्बों के ऊपर तथा चरणों में भी धर्मचक्र मिननं है, जिनकी पूजा करने हा श्रावकगण दिखाए गए हैं। हमने चौबीम तीर्थरों के प्रतीक आरे वाले धमंचक्र को म्बीकार किया है। 'भेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः। काले काले पष्टिं बितरतु मघवा व्याधयो यान्तु नाराम् ।। दुनिलं पौर्यमारी मणपि जगतां मास्म भूज्जीवलोके। अनेनं धर्मचक्र प्रसरतु मततं सर्वोत्यप्रवापि ॥'(मणं प्रजाओं का कल्याण हो। भमिपाल. धार्मिक और बलवान रहकर शासन में प्रभावशील हो। यथाममयों में आवश्यकतानुमार मेघ वर्षा करें। ममम्न गंगों का नाश होवे । चांगे. महामारी और अकालमन्य नथा दुष्काल जगत् में क्षण भर कष्ट देने के लिए भी न हो अर्थात् मवंदा और मवंथा जगन् में मुकाल रहे। मवंजीवों को मुख-शान्ति प्रदान करने वाला जिन-शामन' रूपी धर्मचक्र जो उत्तम क्षमादि दशांग पूर्ण है. विश्व में मयंकाल प्रमाग्नि रहकर अनन्त मुखों को देता रहे।) 'ओं मनो धर्मचक्राधिपतये सौभाग्यमस्तु संसारमा शातिरस्तु ।' सम्पूजकानां प्रतिपालकाना यतीन सामान्य तपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्यरामः करोतु शान्ति भगवान् जिनेनाः॥ (हे तीपुर वृषभदेव-महावीर जिनेन्द्र, कृपया आप पूजा-अर्चा करने वालों, प्रतिपालकों, यतीन्द्रों, मामान्य तपस्वियों तथा देश, राष्ट्र, नगर, ग्राम के शासकों के लिए नित्य शान्तिकारक हों।) Int 104PM MainRIHARATtter. APP "योजक गगने पति पति पत्। नत्रावृतम्, संमत टीका १३५

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