Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 31
________________ महापरिणिव्वाण सुस (णिसीहिया-दण्डग) गनो निगाणं ३, गमो मिसीहियाओ ३, गमोत्पुरे ३, मरहत ! मिड ! पुर! गोरप ! जिम्मल ! सममण! सुभमण ! सुसमत्व! समजोग ! समाव। सल्लपट्टा। सल्लघत्ता! गित्मय। गिराय। निहोस। निम्मोह! निमम ! निस्संग । निस्सल । मागमायमोसमद्दन । तबप्पहावण । गगरपण। सीलसावर । अगंत! अप्पमेय। नमो भगवदो महदि महावीर प्रमाण पुरारिसिजो कि पमोत्यु रेगमोत्पुढे मोत्यु ॥१॥ (जिनेन्द्रों को नमस्कार हो, जिनेन्द्रों को नमस्कार हो, जिनेन्द्रों को नमस्कार हो। निवीधिकाओं को नमस्कार हो, निवीधिकाओं को नमस्कार हो, निवाधिकाओं को नमस्कार हो। हे अहंन्त ! हे मिद! हे बुद्ध! हे कममलहन! हे निमंल! हे ससमन, हे शुभमन, हे सुममर्य, हेममयोग, हे समभाव, हे शल्य विनाशक, हे शल्यपातक, हे निभंय, हे नीराग, हे निर्दोष, हे निर्मोह, हे निर्मम, है नि:संग, हे निशल्य, है मानमायामृषामदंक, हे तपः प्रभावन, हे गुणरत्न, हे सीलसागर, हे अनन्त, हे अप्रमेय, हे भगवान् महान् महावीर बुषि-बुढों के ऋषि ! आपको नमस्कार हो-नमोऽस्तु हो, नमोस्तु हो, नमोस्तु हो !!) मन्त मंगलं मरहंता य सिहायता व जिणा य केबलियो मोहिनामिनो मनपन्जपणामिणो परसपुर गामिणो सुबनिदि समिता य, तबो व पारसविहो तबती, गुणाय गुणवतोय महारिती तित्वं तित्यारा य, पचय पत्नी यना नानीय, रस सनीय, संजनो संजाय, विषमो विणीरा य, वेवासो गंभचारी प, गुत्तीमो गुत्तिनंतो य, मुत्तोबो देव मुत्तिनंतो य, सनिवीबो व समिविनंतोष, सलमयपरसमविद् ति बगाय, बीजमोहा मनीषबंतो घ, बोहिया व बुद्धिनंतो घ, बेईबाबायपाणि एदे सम्मन्न मंगलं होतु ॥२॥ (अहंन्त, सिड, बुद्ध, जिन, केवली, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायविज्ञानी, चतुर्दशपूर्वगामी, श्रुत समिति समृड, बारहविधतप तपस्वी गुण गुणों वाले महर्षि तीर्ष, तीर्थर, प्रवचन, प्रवचनवाले, जान-मानी, दर्शन-दणंनी, संयम-संयमी, विनय विनयी, ब्रह्मचर्यबासी ब्रह्मचारी, गुप्तियां गुप्तियों वाले, मुक्ती मुक्तीवाले, समितियां ममितिबाले, स्वसमय बौर परसमययता, नीति शांतिधारी अपक, भीगमोह और भीणमोहवाले, बोधितबुद्ध, बुद्धिशाली, प्रत्यरपत्य ये मेरे लिए मंगलशाली या कारी हों।)

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