Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 26
________________ ऋपभडव से महावीर 'धमनीयकोन्योऽस्तु म्याद्वादिभ्यो नमो नमः । ऋपमादिमहावीगन्नेभ्यः स्वात्मोपलब्धये ॥ -..'प्रमंतीय ना. धवन ने धान. पादयान Fपना. मलार पावनि जिन्नी नया-म: नि: बारबार नमो नम । प्रम नोयंड्र ऋपनदेव और आलम तांदूर वर्धमानमाधार को एक पाषाण में यगन मति के रूप में उत्कीर्ण कर शिल्पो मे. नया उपर्यतः संगान श्लोक में इन दोनों तीर्थदरों को एक माय भक्तिपूर्ण स्तुति कर कवि ने नीर्थदरों को अविस्छन्न परम्परा की शृंखला का ऐतिहासिक कम में दिग्दर्शन कराया है।

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