Book Title: Jain Shasan ka Dhvaj
Author(s): Jaykishan Prasad Khandelwal
Publisher: Veer Nirvan Bharti Merath

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Page 21
________________ धर्म-चक्र विजगवल्लभः श्रीमान भगवानाविपूरुषः । प्रबके विजयोद्योगं धर्मचक्राधिनायकाः ।। --आनायं जिनमेन, महागण २५।६।। अप पुण्यः समाकृष्टो भन्यानां निःस्पृहः प्रभुः । देश-देशं तमाछेत्तं व्यचरर भानुमानिव ।। पवातिशय सम्पन्नो विजहार जिनेश्वरः। तव रोगग्रहातंक शोकशंकापि दुलंभा॥ धमंशांपदय : १।१६६. १७३ 'विनोकनाथ धमंच के अधिनायक भगवान् आदि गुरूप बाभना तीथंकर ने अधर्म पर विजय का, धर्म प्रभावना का उद्योग प्रारम्भ किया । नि.म्पह, प्रभु ने गयं के ममान नाना देशों में व्याप्त अज्ञानान्धकार के निवारणार्थ विनरण किया। निणयं। में सम्पन्न भगवान वपभदेव ने जहा विहार किया, वहा गण-गानि का प्रमार रहा, क्योंकि प्रम के मंगलविहार प्रदेश में गंग, ग्रहपीडा. भय नया शांक की आणका के लिए भी स्थान नहीं था।' सम्मइंसनतुंबं दुवालसंगारवं जिणि गाणं। बयमियं जगे जयह धम्मचक्कं तबोधा॥ --भगवनी प्रागपना, IT.." -जिनेन्द्र वृषभदेव महावीर का धर्मचक्र जगत में जयवन्न र प्रतित हो रहा है। इम धर्मचक्र का मम्यग्दर्शन कप मध्य नंव (केन्द्र) है। आनागगादिक हातण अंग उमके अरे (आग) है । पंच महावत आदि मप उमयं. नाम (धुग) है। नप रूप उमका आधार है। मा भगवान जिनन्द्रदेव का धमंचक अष्टकमों को जीतकर पग्म विजय को प्राप्त होता है। जन-शामन में धर्मचक्र के विविध प मिलते है। शास्त्रों में धमंचत्र. के इन कपों का स्पष्ट वर्णन मिलता है। शिवकोटि आचार्य की 'भगवती आगधना' में बारह आरे वाले धर्मचक्र की चर्चा मिलती है। ये बारह आ जिनवाणी के द्वारणांग के प्रतीक है। चौबीम आरं वाला धर्मचक्र चौबीम नीयंग का प्रतीक है। पांडम आरं वाला धर्मचक्र भी प्राचीन प्रतिमाओं के माय मिलता है। पांडम कारण भावनाओं में नीर प्रकृति का बन्ध होता है। महाकवि अमग ने बदमानग्नि में मयं की भांति भाम्बर

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