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राजा की वृद्धि को और पांच हाय ऊंची मुभिक्ष एवं राज्यबाट को करने वाली है। वस्त्र में बनी तथा चागें और भलीभांनि फहगती हुई ध्वजा अति लक्ष्मीप्रद तथा राज्य में यण, कौनि एवं प्रताप को विकोणं करने वाली है। यह ध्वजा कृपक. बालक, गोरक्षक. म-नार्ग की मद्धि करने वानी और गायक के लिए धान्य ऐश्वर्यादि मुनदायिनी एव विजय प्रदायिनी है।
निम्नांकित मंत्र का पाठ करकं ध्वजारोहण किया जाता है
'मों गमो अरहताणं स्वस्तिमा भवतु सर्वलोकस्य शान्तिभवतु स्वाहा।' वजारोहण करने वाला कहता है
'भीमग्जिनस्य जगदीश्वरताम्बजस्य । मोनथ्वजादि रिपुजाल जयध्वजस्य ॥ तन्यामार्शनजनागमनध्वजस्य ।
चारोपणं विधिवाविवधे ध्वजस्य ॥'(जो ध्वजा वृषभदेव महावीर आदि ८ नीथंकर और जन-शामन की जगदीश्वरता. कामदेव गव ममूह पर विजय नथा जिबिम्ब के दर्शनाथियों के आवाहन आदि की प्रतीक है. मैं मी ध्वजा का विधिवन आरोहण करना है।)
इति ध्वजारोहविधि समेरी संतारनं यो विदधाति भव्यः । स मोगलममीनयनोत्पलाना नमवनेमित्वमुपति नूनम् ।।'
(भंगे वादिव के घांपपूर्वक जो भव्य पुरुप ध्वजारोहण विधि को सम्पन्न करताकराता है, वह मोक्षलक्ष्मी के नेत्री के नागपन अर्थात् प्रिय-भाव को अवश्य प्राप्त करता है. उसे मुनि अवश्य प्राप्त होती है।)
जैन-शामन में ध्वज की प्रथा अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है। जनशासन के ध्वज के नीचे मभी साधर्मी बन्धु ममान है. न कोई छोटा है न वडा। श्रमणश्रमणा और श्रावक-श्राविका चतुः मंघ एक ही जन-शामन की छत्र-छाया में स्थित है।
'शिवमस्तु सर्वजगता परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं तिष्ठतु जिनशासनं सुधिरम् ॥'
-आचार्य नेमिचन्द्र, प्रतिष्ठातिलक :१७
(सर्व लोकों का कल्याण हो. जीवमात्र पर-हित में तत्पर रहें। दोषों का नाश हो, जन-शासन चिरकाल तक पृथिवी पर प्रवर्तित रहे।)