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में शान्ति, स्फूर्ति तथा नव चेतनाका जागरण होता हों। जैनधर्मका तुलनात्मक अभ्यास करनेपर विदित होता है कि जैनधर्म स्वय विज्ञान (Science) है। उस आध्यात्मिक विज्ञानके प्रकाश तथा विकाससे 'जडवादका अन्धकार दूर होगा तथा विश्वका कल्याण होगा।
जैन - शासनमे भगवान् वृषभदेव आदि तीर्थकरोने सर्वागीण सत्यका साक्षात्कार कर जो तात्त्विक उपदेश दिया था, उसपर सक्षिप्त प्रकाश डाला गया है।
जैन ग्रन्थोका परिशीलन आत्मसाधनाका प्रशस्त-मार्ग तो बतायगा ही, उससे प्राचीन भारतकी दार्शनिक तथा धार्मिक प्रणालीके विषयमे महत्त्वपूर्ण बातोका भी वोध होता है । स्व० जर्मन विद्वान् डा० जैकोबीने यह बात दृढतापूर्वक प्रतिपादित की है कि जैनधर्म पूर्णतया मौलिक तथा स्वतन्त्र है तथा अन्य धर्मोसे पृथक् है । इसका अभ्यास प्राचीन भारतके दर्शन और धार्मिक जीवनके अवबोधार्थ आवश्यक है -
"In conclusion let me assert my convicton that Jainism is an original system, quite distinct, and independent from all others; and that therefore, it is of great importance for the study of Philosophical thought and religious life in ancient India.""
आशा है विचारक बन्धु इस पुस्तकको ध्यानपूर्वक पढेंगे, और अपने अनुभवसे मिलान करते हुए विचारेगे, कि इसमे उनके कल्याणकी कितनी सामग्री है। 'बाबावाक्य प्रमाणम्' का प्रतिबन्ध विचारकोके सत्यको
Originally published in the Transactions of the third International Congress for History of Religions, Vol II pp. 59-66, Oxford 1908 and reprinted in the Jain Antiquary of June 1944.