Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 01 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ अर्हम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जे शिंगभाईकी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात ) वर्ष १३ विक्रम सं. २००४ : वीरनि. स. २४७४ : ४. स. १४८ अंक ४ શેષ શુદ્ધિ ક : शुडेवार : ૧૫મી જાનેવારી 1 खामणाकुलकम् । संपादक :- पूज्य मुनि महाराज श्रीकांतिविजयजी जो कोइ मए जीवो चउगइसंसारभवकडिल्लंमि । दूहविओ मोहेणं तमहं खामेमि तिविहेण ॥ १ नरपसु य उववनो सत्तसु पुढवी नारगो हो । जो कोइ मए जीवो दूहविओ तं पि खामेमि ॥ २ ॥ घाणचुणमाई परोप्परं जं कयाई दुक्खाई । कम्मवसरण नरए तं पि य तिविहेण खामेमि ॥ ३ ॥ निद्रयपरमा हम्मियरूवेणं बहुविहाई दुक्खाई । जीवाणं जणियाई मूढेणं तं पिखामि ॥ ४ ॥ हा ! हा ! तइया मूढोन याणिमो जं परस्स दुक्खाई । करवत्तयछेयणभेयहिं केलीए जणियाई ॥ ५ ॥ जं किं पि मए तइया कलंकलीभावमागएण कथं । दुक्खं नेरइयाणं तं पिय तिविहेण खामेमि ॥ ६ ॥ तिरियाणं चिय मझे पुढवीमाईसु खारभेएस | अवरोप्परसत्थेणं विणासिया ते वि खायेमि ॥ ७ ॥ बेइंदियते इंदियच उरिंदियमाइणेगजाई । जे मक्खिय दुक्खविआ ते वि य तिविहेण खामेमि ॥ ८ ॥ जलयर मज्झगएणं अणेगमच्छाहरूवधारणं । आहारट्ठा जीवा विणासिया ते वि खामेमि ॥ ९ ॥ छिन्ना भिन्ना य मए बहुसो दुट्ठेण बहुविहा जीवा । जे जलमज्झगएणं ते वि य तिविण खामेमि ॥ १० ॥ सप्पसरीसवमज्झे वानरमज्जारसुणहसरहेसु । जे जीवा वेलविआ दुक्खता ते वि खामेमि ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only क्रमांक १४८Page Navigation
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