Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ नागौर-यव-पश्चिार थे, पर बहुत से संग्रह बिक कर अन्य स्थानों में पहुंच चुके हैं, अतः अब यहां साधारण संग्रह है। अब यहां बबू कोटडीमें हस्तलिखित ग्रन्थोंका थोडा संग्रह है, पर उसकी व्यवस्था अच्छी नहीं है। अतः नागौरके श्री संघका कर्तव्य है कि उनकी विवरणात्मक सूची तैयार करवावे व योग्य व्यक्तियोंको दिखलानेका प्रबंध ठीक किया जाय, जिससे वे प्रकाशमें आवे । सं. १९०५ में यहां ७०० घर थे, पर अभी ओसवाल समाजके ४०० धर हैं और ५ श्वेतांबर जैन मन्दिर हैं । हमारे संग्रहमें एक नागपुरीय चैत्य परिपाटी है जिसमें उस समय *७ मंदिर होनेका पता चलता है । यह चैत्य परिपाटी यहां प्रकाशित की जा रही है। उक्त चैत्य परिपाटीका रचनासमय संभवतः १७ वों शताब्दिका है । उस समय यहां १ शांति, २ ऋषभ, ३ वीर, ४-५ ऋषभदेव, ६ पार्श्वनाथ और ७ महावीर ( नारायण वसही ) मंदिर थे+ पर वर्तमानमें ५ मंदिरोमें ४ ऋषभदेवके और १ शांतिनाथ भगवानका है । इतने थोडे समयमें भी मंदिरोंको संख्या व मूलनायकजीमें परिवर्तन हो जाना परिवर्तनशील कालका ही प्रभाव समझना चाहिये। अभी जो मंदिर हैं उनमें ज्यादा प्राचीन अवशेष नहीं हैं। गणधरसार्धशतक बृहवृत्तिमें भी श्रीजिनवल्लभसूरिने यहांके मंदिरोंमें नेमिनाथ बिम्बकी प्रतिष्ठा की ऐसा लिखा है, पर अभी उसका कोई पता नहीं है। इसके पश्चात् श्रीजिनदत्तसृरिजी भी यहां आये थे और शाह धनदेव श्रावकसे वार्तालाप हुआ था। इसके बाद यहां विक्रमपुरका देवधर आया था, उस समय यहां के देवगृह में देवाचार्यजी विराज रहे थे, उनसे विधिचैत्यके सम्बन्धमें वार्तालाप हुआ था। श्रीजिनलब्धिसूरीजीका स्वर्गवास सं. १४०६में यहीं हुआ था। उनके स्तूपका भी अब पता नहीं है । राज्य परिवर्तन एवं मुगलोंके आक्रमणादिके समय संभव है प्राचीन जैन अवशेषोंको धक्का पहुंचा हो । नागौरके जैन समाजका कर्तव्य है कि नागौरके जैन इतिहासको प्रकाशमें लावे । * नागौरका सबसे प्राचीन उल्लेख कृष्णषिशिष्य जयसिंहमूरिरचित धर्मोपदेशमामात्तिमें पाया जाता है, जो कि सूरिजीने सं. ९१३में भोजराजाके समयमें नागौर में रखी है (जै. सा. से. इ. पृ. १८० )। + सं. १६९३में नागौरमें रचित विमलचारित्रकृत अंजनासुन्दरी चौपाईमें भी ७ मंदिरीका उस्लेख है " नागोर नगीने साते जिणवरु रे, आदि शांति जिण पास । वीर जिणेसरने ग्रणमी करी रे, चौपइ कोध उल्लास ॥ ३९३ ।। (जैन गुर्जर कविओ, भा., . ४.०) For Private And Personal Use Only

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