Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ ] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ [ 0 सांसारिक सुखभोगते हुए शुभ स्वप्नोंसे सूचित छजमल्ल नामक पुत्ररत्न हुआ इस उपलक्षमें म. खीमसीने दानपुण्य और उत्सवादि किये । पृथ्वीके मण्डन रूप रणस्तंभपुर (रणथंभौर) नगरमें कछवाहा नामक महाप्रतापी वंश है। इस वंशमें विजयी पृथ्वीराज और फिर भारमल्ल नामक कीर्तिशाली नरेश हुए। इनके पुत्र महाराजाधिराज जगन्नाथ सम्राट अकबर द्वारा सन्मानित और कछवाहा वंशमें मुकुटके सदृश थे। एक वार इन महाराजाको सभामें किसी सभ्यने महाबुद्धिशाली खीमसीकी महती प्रशंसा करते हुए कहा कि जैसे नंदके चाणिक्य, भीमके विमल, श्रेणिक अभयकुमार और वीरधवलके वस्तुपाल मंत्री सुशोभित थे इसी प्रकार आपके मंत्रीपदके योग्य सचिवेश्वर खीमसी हैं। महाराजाने इनकी प्रशंसा सुनकर हर्षित चित्तसे तत्काल मंत्रीमंडलमें प्रधान बनानेके लिए अपने हाथसे लिखित पत्र द्वारा आमन्त्रण भेजा। ___ महाराजाधिराजका आमन्त्रग पाकर खीमसी तत्काल शुभ मुहूर्तमें अच्छे शकुनोंसे सूचित हो रणथंभौर आये और महाराजासे मिले । वस्त्राभर गादि भेंट करने के पश्चात् महाराजाने उन्हें मंत्रीपदकी नियुक्तिरूप अपने राज्यभारको धुरा समर्पित करने का प्रस्ताव रखा और ज्योतिषी लोगोंसे शुभ मुहूर्त पूछा। सं. १६४८ पोष सुदि हेलि तिथि पुष्य नक्षत्रके दिन निर्दिष्ट शुभ मुहर्तमें बड़े भारी महोत्सवके साथ खीमसीको मंत्रीश्वरपदारूढ करके महाराजाने बड़ा सन्मान दिया और उसे राज्यसंचालन व दुर्दान्त शत्रुओंको वशमें करने आदिकी शिक्षाएं देकर अपने नगर भेजा। .. मंत्रीश्वर गर्ग गोत्रमें मुकुटके सदृश थे । उन्होंने ८४ वणिक्जाति तो क्या पर ब्राह्मण आदि प्रत्येक वर्गके लोगोंको वस्त्र, आभूषण, धनधान्यादिका प्रचुर दान किया । उसे जलधरकी तरह अक्षुण्ण दान देते हुए देख कर लोग साश्चर्य कहते कि रैवतगिरमंडन नेमिप्रभुकी अधिष्ठात्री अम्बिका देवी इनका खजाना परिपूर्ण रखती है। - मंत्रीश्वरने गिरनार प्रमुख समस्त तीर्थोकी यात्रामें, स्नात्रपूजादि विविध पुण्यकार्योंमें प्रचुर द्रव्य व्यय किया । रणथंभौर दुर्गमें कीर्तिस्तंभके सदृश जिनालय निर्माण कराके बड़े आडंबरके साथ तीर्थकर श्रीमल्लिनाथ प्रभुकी प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई। पतनके श्रीमुनिसुव्रतस्वामीके मन्दिरका जीर्णोद्धार करवाके स्वर्ण कलशादिसे मन्डित किया। इसके सिवाय मंत्रीश्वर तीर्थयात्रा, शास्त्रलेखन, प्रतिमाप्रतिष्ठा इत्यादि शुभ कार्योंमें बराबर अपनी चपला लक्ष्मीका सदुपयोग करते रहते थे। उन्होंने शेरपुर नामक रणथंभौरके शाखापुरमें नंदनवनके सदृश सुन्दर बगीचा बनवाया और उसमें स्वच्छ जलका कुंआ भी निर्माण कराया । रावलापुरके पास विशाल और रमणीय तालाव बनवाया । इस प्रकार मंत्रीश्वर संघाधिपति खोमसोके बहुतसे कार्यकलाप हैं। For Private And Personal Use Only

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