Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म १३ ] જેન-ઈતિહાસમેં કાંગડા
[२५१ नगर३६ में आया और वहां महावीर भगवान्के दर्शन किये । इस नगरमें श्रावकोंकी संख्या बहुत थी इस लिये संघ वहां दस दिन ठहरा।
ग्यारहवें दिन चलकर कुछ दिन बाद संघ सप्तरुद्र ३७ नामक बडे प्रवाहवाले जलाशयके पास पहुंचा । यहांसे संघ चालीस कोसका जलमार्ग नावों द्वारा पूर्ण करके देवपालपुर पत्तनमें वापिस आगया । यहां दस दिन तक आनन्दपूर्वक ठहर कर फरीदपुरकी ओर चल पडा ।
पाठक देखते हैं कि वर्तमान अवशेष और विज्ञप्तित्रिवेणिका वर्णन एक दूसरेका कैसा समर्थन करते हैं। वर्तमान अवशेष
विज्ञप्तित्रिवेणि १. किले में अम्बिका देवी मंदिरके पास दो | १. किलेमें आदिनाथ भगवान्का बडा भव्य छोटे २ जैन मंदिर । एकमें आदिनाथकी
____ मंदिर। पासमें शासनदेवीअम्बिकाकी मूर्ति।
| २. नगरमें तीन मंदिर । प्रतिमा जिस पर सं. १५२३ का लेख है।।
१. क्षीमसिंहनिर्मित शान्तिनाथ मंदिर २. नगरमें इन्द्रेश्वरके मंदिरके मंडपमें दो | २. राजा रूपचंदनिर्मित महावीरमंदिर । जिनप्रतिमायें, एक पर पुराना लेख । । ३. आदिनाथका मंदिर ।
इनके अतिरिक्त यात्रासंघने त्रिगर्तदेशके चार और मंदिरोंके दर्शन किये-१. गोपाचलपुर, २. नन्दवनपुर, ३ कोटिल्लग्राम और ४. कोठीपुर । इन सबको मिलाकर त्रिगर्तकी पंचतीर्थी कहना चाहिये ।
याद रखना चाहिये कि कांगडा केवल श्वेताम्बर तीर्थ नहीं था । जैसा कि कनिंघम साहिबने लिखा है, यहांके दीवान दिगम्बर जैन थे। इस लिये यहां पर दिगम्बर मंदिर भी अवश्य बने होंगे जिनके अवशेष सावधानीसे खोज करने पर मिल सकेंगे, यदि वे भूकंपादिसे सर्वथा नष्ट न हो चुके हों।
विज्ञप्तित्रिवेणिमें यह नहीं बतलाया कि संघ किस दिन यात्राके लिये फरीदपुरसे निकला,
यहां कोटिल्लग्रामसे या तो कुटलैहड़का तात्पर्य है जो नादौनसे २० मील दक्षिणको है, या फोटलाका तात्पर्य है जो नूरपुरके पास है । यदि कुटलैहड़ है तो संघ दोआबमें हो कर ही सप्तरुद्र पर भागया होगा, और यदि कोटलासे तात्पर्य है तो संघ नूरपुर, पठानकोटके रास्ते वापिस आया होगा ।
३६. कोठीपुरनगरका निर्णय नहीं हो सका । कोठी या कोटी नामके एक-दो स्थान अव भी मिलते हैं । यह नगर पर्वतोंके मध्यमें था और यहाँ श्रावकोंकी बडी भारी बसती थी। (पर्वतदेशमध्यगं नानाविधश्राद्धसंकुलम् ।)
३७. सप्तरुद्र । यह स्थान ब्यासके किनारे दीपालपुरसे ४० कोस (६०-६५ मील) पूर्वको होना चाहिये जहांसे नावों द्वारा संघ दीपालपुर आया । .
For Private And Personal Use Only