Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 08 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra અંક ૧૧ ] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir એક અલભ્ય મહાકાવ્ય आनंदप्रद - बिन्दु वाण - रसयुक्- शीतांशुवर्षे व्यधात् विज्ञानां हृदयंगमं च सुगमं क्वप्तेन्दिरासंगमम् । काव्यं नव्यमिदं विदं महृदयस्तेषां विनेयाग्रणीः श्रीमत्पण्डितरत्न रत्नकुशलो विद्वज्जनप्रीतये ॥ ५६ ॥ यावचंद्र दिवाकरौ क्षितितमः प्रध्वंसनायोद्यतौ प्रादक्षिण्यमुभौ शुभौ प्रकुरुतः स्वर्णाचलस्याभितः । तावत्मंत्रिशिरोविभूषणमणेः सौभाग्य संकीर्त्तनं काव्यं श्रीरुचिरं चिरं विजयितां सद्वाच्यमानं बुधैः ॥ ५७ ॥ इति श्रीमतपागच्छाधिराज भट्टारक श्री ५ हीरविजयसूरीन्द्र आचार्य श्री ५ श्री विजयसेनसूरि पण्डित श्रीजीवराजगणिशिष्य गण श्रीआनंद कुशलगगीन्द्रशिष्य महाकवि पंडित श्रीरत्नकुशल गणिविरचिते मंत्रिचक्रचक्रवर्ति चतुरनरपुरोवर्ति मंत्रिमुकुटमणि प्रतापतरणि संघाधिपति साह श्रीखीमसीभाग्याभ्युदय महाकाव्येऽपरनाम्नि पुण्यप्रकाशे च नवीनप्रासादनिर्मापणतीर्थयात्रा वापीसरोचनादिपुण्यवर्णन समाप्तोयं ॥ संलिखितं मुकुन्देन ॥ शुभं ॥ श्री ॥ छः ॥ मात्सर्यमुत्सार्य कृतज्ञलोकैः पुण्यप्रकाशभिधकाव्यमेतत् । संशोधनीयं परिवाचनीयं प्रवर्त्तनीयं हृदि धारणीयं ॥ १ ॥ || कल्याणमभ्युदयो भूयात् ॥ श्रीरस्तु ॥ श्रीः || [ २३३ महाकाव्यका संक्षिप्तसार तोडा नामका एक समृद्धिशाली नगर सुशोभित है । वहां ८४ वणिक्जातियोंमें प्रधान अग्रवाल जाति के मंत्रीश्वर अमरसी निवास करते थे । उनके अत्यन्त गुणवान् पुत्र मंत्रीश्वर भादराज हुए, जिन्होंने शत्रुञ्जयादि समस्त तीर्थोंकी यात्रा और नाना पुण्यकार्यों में प्रचुर द्रव्य व्यय किया था। इनके मामलि देवी नामकी विशिष्ट गुणशालिनी धर्मपत्नी थी । एक वार रात्रि के अन्तमें सुखशय्या पर पौढी हुई मामलि देवीने प्रथम सूर्य और फिर चंद्रका शुभ स्वप्न देखा । स्वप्नफलमें भाव तेजश्वी पुत्रोत्पत्तिका फल ज्ञात कर हर्ष पूर्वक गर्भकाल व्यतीत करने लगी । मंत्रीवर उसके दोहदों को शीघ्र पूर्ण करते थे । सं. १६०४ के शुभ दिवसमें ग्रहों के उच्च स्थानमें आने पर मामलि देवीने पुत्ररत्न को जन्म दिया। मंत्रीश्वरने इस अवसर पर बहुतसा दानपुण्य व जीमनवारादि उत्सव किये और पुत्रका नाम खामसी रखा । क्रमशः बालकके बड़ा होने पर उसे पाठशाला में उपाध्यायके पास विद्याध्ययन कराया जिससे वह अल्पकालमें सर्व कला-कौशलमें पारगामी हो गया । For Private And Personal Use Only खीमसी अंगलक्षणादि बड़े सुभग थे | तरुणावस्थामें आने पर पांच सुन्दर कन्याओंके साथ उसका विवाह किया गया । प्रथम स्त्री काश्मीर देवि और दूसरीका नाम लाडी था ।Page Navigation
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