Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरातपागच्छ किस गच्छकी शाखा थी? लेखक-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, बीकानेर जैन प्रतिमालेखों द्वारा अनेकों नवीन बातोंका पता चलता है, जिन बातोंका ग्रंथोमें कहीं उल्लेख तक नहीं मिलता । उनमें बहुतसी जातियां एवं गच्छों के नाम भी ऐसे मिलते हैं जिनके विषयमें अन्य कोई उल्लेख नहीं मिलते, पर उनपर अभी विचार नहीं किया गया। ऐसे गन्छों के नामोंमें 'खरातपा' गच्छ भी एक है । इस गच्छके कई लेख हमारे देखने में आये । पर इस गच्छकी क्या मान्यता थी ? कौन २ आचार्य हुए ? कब यह गच्छ किसके द्वारा किस कारणसे प्रसिद्ध हुआ यह सारा वृत्तांत अज्ञात था। मुनि जयन्तविजयजी संपादित 'श्री अबुर्द प्राचीन जैन लेख सन्दोह' के लेखांक ६० में भी इस गच्छका एक लेखी छपा है । लेखोंके विशेष नामों की सूचीमें मुनिजीने तपागच्छके पश्चात् खरातपा और उसके नीचे वृद्धतपागच्छके लेखोंका निर्देश किया है, अतः यह गच्छ उनकी मान्यता अनुसार तपागच्छकी एक शाखाविशेष प्रतीत होता है । पर वास्तवमें बात यह नहीं है । लेखमें निर्दिष्ट आचार्यका नाम एवं उल्लेख उसे उपकेश गच्छकी शाखा सिद्ध करता है। पर इसकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें निश्चित प्रमाण अभी ही हमारे देखने में आया है। श्रीमान् जिनविजयजी सम्पादित " विविधगच्छीय पट्टावलि संग्रह " के फरमे देखनेको मंगवाने पर उसके पृष्ठ ८ में मुद्रित उपकेशगच्छगुर्वावलीमें इस गच्छके सम्बन्धमें निम्नोक्त महत्त्वपूर्ण उल्लेख नजरमें 'आया, जो कि इस गच्छको उपकेशगच्छकी शाखा प्रमाणित करता है, एवं इस गच्छकी उत्पत्ति त्रिशृंगम ग्राममें महीपाल राजाके समय सं. १३०८ में हुई ज्ञात होती है। यह उल्लेख इस प्रकार है त्रिशृङ्गमाख्ये सद्ग्रामे महीपालस्थितं प्रभौ । 'खरतपा' बिरुदं जातं वस्वभ्राग्न्येक (१३०८) वर्षे च ॥२६।। मुनि ज्ञानसुन्दरजी आदिसे अनुरोध है कि वे इस गच्छकी क्या मान्यतायें थीं आदिके सम्बन्धमें विशेष ज्ञातव्य प्रकाशमें लावें। १ यह लेख इस प्रकार है-" ॥ ऊएसगच्छे सिद्धाचार्यसंताने श्रीखरातपापक्षे भ० श्रीश्रीश्री कक्कसूरिशिष्य प० मुक्तिहंस मु॥ कनकप्रभ" For Private And Personal use only

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