Book Title: Jain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पंडित इन्द्रचन्द्रजी से -- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक - मुनिराज श्री ज्ञानविजयजी दिगम्बर पं० अजितकुमार शास्त्री ने श्वेताम्बर जैनधर्म के लिए यद्वा तद्वा लिख दिया | पं०वीरेन्द्रकुमार ने भी उसका कुछ अनुकरण किया । अब पं० इन्द्रचन्द्रजी ने दि० "जैन दर्शन" नामक मासिक के वर्ष ४ के अन्तिम अंकों में “श्वेताम्बरीय आगम" विषयक लेखमाला शुरू की है। जिनको मूल जैनागम देखने का ज्ञान नहीं है— सिर्फ भाषानुवाद से ही आगमवित् बनना है उनके साथ अधिक चर्चा करनी निरर्थक है, फिर भी लेखक को अपनी अज्ञता का मान कराना चाहिये, ऐसे ख्याल से संक्षिप्तरूप में प्रस्तुत लेख लिखा जाता है । लेखक ने “दि० ३वे० रूप दो विभाग होने में साधु और आगम ये दो प्रधान कारण हैं " ऐसा माना है । अवस्य ! दिगम्बरों को ऐसा ही मानना चाहिए। क्योंकि " दिगम्बर शास्त्र कैसे बने ? " लेख में स्पष्ट लिखा गया है कि दिगम्बर श्रमण आजीवक मत के वंशज हैं ( सत्य प्रकाश व ० १ ) और भ० महावीर स्वामी के निर्वाण से करीब करीब तेरह शताब्दी व्यतीत होने के बाद दिगम्बर शास्त्र का निर्माण हुआ है (सूअ खंधो ) अत एव इन दोनों कारणों से ३० दि० की भिन्नता स्पष्ट है । जैन श्रमण और आजीविक श्रमण की चर्या में एकान्त नग्नता, स्त्री स्पर्श, और पानी पुष्प व फल आदि की प्रासुकता इत्यादि विषयों का मतभेद था । आज भी यही मतभेद है । देखिए - १ - जैन दर्शन में नग्नता या अनग्नता का एकान्त आग्रह नहीं है । दिगम्बर समाज में एकान्त नग्नता का ही आग्रह है, और वह भावलिंग के बजाय द्रव्यलिंग को ही प्रधान मानता है । जैन श्रमण वस्त्र के धारक थे इसके अनेक प्रमाण 'तपगच्छ श्रमग वंशवृक्ष' में छप चुके हैं । For Private And Personal Use Only २- - जैन साधु (२० साधु) स्त्री का स्पर्श करते नहीं हैं । दिगम्बरी साबु स्त्रियों की पूजा-चरण सेवा को स्वीकारते हैं, स्त्री उनके शरीर को साफ भी कर देती है । विना स्त्री स्पर्श के, स्त्रियों को दिगम्बर सम्मत दशधा भक्ति का लाभ मिलता नहीं । इस बात को प्रत्यक्ष देखनी हो तो दि० मुनि जहां विराजमान हों वहां जाकर हरकोई मनुष्य देख सकता है है

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